इलेक्ट्रॉन क्या होते हैं | इलेक्ट्रॉन की खोज |Electrons Kya Hote Hain
इलेक्ट्रॉन क्या होते हैं
इलेक्ट्रॉन की खोज
विद्युत् विसर्जन (Electric discharge)
- वायुमण्डलीय दाब पर सूखी तथा धूलरहित वायु विद्युत् का कुचालक होती है। किंतु कुछ परिस्थितियों में वायु से विद्युत् का प्रवाह होने लगता है। वायु (या गैस) में से विद्युत् प्रवाह को विद्युत् विसर्जन (Electric discharge) कहते हैं।
- विद्युत् विसर्जन का अध्ययन फैराडे (Faraday), विलियम क्रुक्स (William Crookes ), रोण्टजन (Roentgen), जे.जे. थॉमसन (J.J.Thomson) आदि भौतिकविदों ने किया था। इसके लिए विसर्जन नलिका (Discharge Tube) का उपयोग किया जाता है।
विसर्जन नलिका (Discharge Tube)
- यह काँच की लगभग 30 सेमी लम्बी तथा 3 सेमी व्यास वाली नली होती है जिसमें ऐल्युमिनियम के दो इलेक्ट्रोड लगे होते हैं ।
- वायुचूषक पंप की सहायता से इसके अंदर की वायु को बाहर निकाला जा सकता है तथा एक मैनोमीटर की सहायता से किसी भी क्षण पर इसके अंदर वायुदाब को नोट किया जा सकता है ।
- प्रेरण कुण्डली की सहायता से इसके इलेक्ट्रोडों के मध्य लगभग 10,000 वोल्ट का विभवांतर लगाया जाता है।
विसर्जन नलिका (Discharge Tube) |
- सामान्य दाब पर दोनों इलेक्ट्रोडों के मध्य वायु में से कोई विद्युत् विसर्जन नहीं होता।
- किंतु विसर्जन नलिका के अंदर दाब को कम करने पर लगभग 10 मिमी (पारा) दाब पर कर्र-कर्र आवाज के साथ दोनों इलेक्ट्रोडों के मध्य नीली धारियों (Strea-mers)के रूप में विद्युत् प्रवाह होने लगता है।
- दाब को कम करते जाने पर क्रमशः धनात्मक स्तम्भ (Positive Column), ऋणात्मक चमक (Negative Glow), फैराडे का अदीप्त क्षेत्र (Faraday's Dark Space), क्रुक का अदीप्त क्षेत्र, कैथोड चमक (Cathode Glow) आदि दृष्टिगोचर होते हैं।
- जब नलिका के अंदर दाब 0.01 मिमी (पारा) हो जाता है तो पूरी नलिका क्रुक के अदीप्त क्षेत्र से भर जाती है और कैथोड के सामने वाली नलिका का भाग प्रतिदीप्ति से चमकने लगता है।
- प्रतिदीप्ति का रंग काँच की प्रकृति पर निर्भर करता है। वास्तव में इस समय कैथोड से अदृश्य किरणें (या कण) निकलती हैं जो नलिका की दीवार से टकराकर प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती है। कैथोड से निकलने के कारण इन किरणों को कैथोड किरणें कहा जाता है ।
- नलिका में कोई भी गैस भरी हों तथा किसी भी धातु के इलेक्ट्रोड लगे हों कैथोड किरणों के गुणधर्म एक समान होते हैं। सन् 1879 में विलियम क्रुक ने इन किरणों का आविष्कार किया था । उन्होंने स्पष्ट किया कि कैथोड किरणें तीव्रगामी ऋणात्मक कणों की धारा होती है।
- सन् 1887 में जे.जे. थॉमसन ने प्रयोग द्वारा इन कणों के विशिष्ट आवेश (Specific Charge) e/m के मान की गणना की। e/m का मान नली में ली गई गैस अथवा इलेक्ट्रोड में प्रयुक्त धातु पर निर्भर नहीं करता।
- इसका अर्थ यह हुआ कि कैथोड किरणों के कण सभी गैसों के लिए एक समान (1-7589x10'! कूलॉम/ किग्रा) होते हैं।
- सर जे.जे. थॉमसन ने इन कणों का नाम इलेक्ट्रॉन (Electron) रखा। इलेक्ट्रॉन की खोज के लिए सन् 1906 में जे.जे. थॉमसन को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
मिलिकॉन का तेल बूंद प्रयोग (Millikan Oil Drop Experiment)
- सन् 1913 में अमेरिका के वैज्ञानिक आर. ए. मिलिकॉन (R.A. Millikan) ने इलेक्ट्रॉन पर आवेश की मात्रा ज्ञात करने के लिए एक प्रायोगिक व्यवस्था दी जिसे मिलिकॉन का तेल बूंद प्रयोग (Millikan Oil Drop Experiment) कहते हैं ।
- मिलिकॉन ने अपने है प्रयोग को विभिन्न तेल बूंदों के साथ दुहराया तथा उन्होंने पाया कि प्रत्येक बूंद पर आवेश एक न्यूनतम आवेश, जिसे मूल आवेश (Elementary Charge) कहते हैं, का पूर्ण गुणज होता है ।
- मूल आवेश का मान 1-602x10-19 कूलॉम होता है।
- स्पष्ट है कि किसी बूंद पर आवेश की मात्रा को q=-ne से प्रदर्शित किया जा सकता है, जहाँ n = 1,2,3,4,........ तथा e=1-602x10-19 कूलॉम।
- यह विद्युत् आवेश का क्वाण्टीकृत प्रतिरूप को प्रदर्शित करता है अर्थात् विद्युत् आवेश क्वाण्टीकृत (Quantized) होता है ।
- मिलिकॉन के इस योगदान के लिए उन्हें सन् 1923 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
- इलेक्ट्रॉन के elm और e के मान ज्ञात होने पर उसके द्रव्यमान m की गणना सम्भव हुई।
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