भारतीय संगीत | भारतीय संगीत की शैलियाँ | Styles of Indian music
भारतीय संगीत
भारतीय संगीत की शैलियाँ
संगीत शब्द की उत्पत्ति
संगीत शब्द की
उत्पत्ति प्राचीन संस्कृत वाड्मय में साम्यक गीतम के रूप में हुई है। भारतीय संगीत
का आरम्भ सामवेद से माना जाता है, वेदों में ही
इसकी जड़ें हैं। संगीत का विकास क्षेत्रीय प्रतिभा के अनुरूप लोक शैली में हुआ और
धीरे-धीरे इसने शास्त्रीय रूप धारण कर लिया। भारतीय संगीत की दो शैलियाँ हैं।
भारतीय संगीत की शैलियाँ
1. कर्नाटक संगीत
2. हिन्दुस्तानी
संगीत
भारतीय संगीत की
मूल विशेषता 'स्वर' का
महत्व है। स्वर का अर्थ है एक समय पर एक ध्वनि गुण का संचालन । स्वर सात होते हैं
षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद, जिनके संकेताक्षर हैं : सा, रे, ग, म
प, ध , नि
।
हिन्दुस्तान संगीत और कर्नाटक संगीत शैली
- हिन्दुस्तान संगीत और कर्नाटक संगीत शैली में रागों की संरचना संबंधी दृष्टिकोण में भी कुछ अंतर है।
- हिन्दुस्तानी शैली की विशेषता है कि इसके राग में वादी एवं समवादी स्वरों का जोर दिया जाता है, जबकि कर्नाटक शैली के राग में ध्वनिगुण के महत्व को घटाने बढ़ाने की परिपाटी है जिससे संगीतज्ञ को प्रतिमान निर्माण में अधिक स्वाधीनता रहती है ।
- हिन्दुस्तानी शैली का परास और विसर्पणन व्यापक है जबकि कर्नाटक में कुंडली तकनीक है और दोनों के बीच मुख्य अंतर यह है कि हिन्दुस्तानी संगीत समय सिद्धांत आधारित है जबकि कर्नाटक संगीत में इस संबंध में उतनी कठोरता नहीं बरती गई है।
- भौगोलिक विभाजन की दृष्टि से उत्तर भारत का संगीत हिन्दुस्तानी और दक्षिण भारत का संगीत कर्नाटक संगीत कहलाते हैं ।
- दोनों पद्धतियों में आज जो विशेषता दिखाई देती है वह है, स्वर उच्चारण की रीति।
- उत्तर की शैली में प्रत्येक स्तर का दीर्घ और ठहरकर उच्चारण किया जाता है जबकि दक्षिण में स्वर रूकने की प्रथा है।
भारतीय संगीत
- ध्रुपद
- टप्पा
- ठुमरी
B कर्नाटक, संगीत
- पादम
- तिल्लाना
- जावलि
हिन्दुस्तानी संगीत के प्रकार
धुपद
- ध्रुपद हिन्दुस्तानी संगीत की प्राचीनतम संगीत रचना है।
- इसका विकास हरिदास एवं तानसेन ने किया स्वामी हरिदास पन्द्रहवीं शताब्दी के अंत में हुए थे और तानसेन के संगीत गुरु थे।
- इसके विषय - भक्ति प्रेरक दार्शनिक ऋतु वर्णात्मक हैं।
- श्रृंगारिक और रसात्मक काव्य का गायन निषिद्ध है।
- इसके प्रमुख वाद्य यंत्र वीणा एवं पखावज हैं।
ख्याल
- खयाल या 'ख्याल' का स्रोत फारस है और इस शब्द का अर्थ है कल्पना यानी सीमाहीन, बिल्कुल स्वतंत्र ।
- ख्याल गायकी का जनक अमीर खुसरो को माना जाता है।
- प्रमुख रूप से यह दो प्रकार का होता है-कव्वाली ख्याल एवं कलावंती ख्याल ।
- 'ख्याल' के श्रृंगार रस, करुण रस और वात्सल्य रस को अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- गायन की इस शैली में पखावज के स्थान पर तबले का उपयोग होता है।
- भारत में ख्याल गायन के चार प्रमुख केन्द्र हैं, जो ग्वालियर घराना, आगरा घराना, अतरौली घराना और किराना घराना के नाम से विख्यात हैं।
ठुमरी
- ठुमरी स्वरूप की दृष्टि से हल्की और प्रायः विषयासक्त है। इसका संबंध राधाकृष्ण भक्ति सम्प्रदाय से रहा है और कत्थक ने इसे सँवारा है।
- 19वीं शताब्दी में नवाब वाजिद अली शाह के जमाने में, जो अत्यधिक रसिक थे, ठुमरी बहुत लोकप्रिय हुई।
- वाजिद अली शाह उदार शासक थे और उनके दरबार में अनेक सुविख्यात नर्तक एवं गायक थे ठुमरी गायन लखनऊ में प्रश्रय प्राप्तकर विकसित हुआ।
टप्पा
- पंजाब में टप्पा एक काफिले के संगीत के रूप में उभरा। इसकी भाषा पंजाबी होती है एवं पंजाबी ताल में यह गीत निबद्ध होता है।
- शारीरिक हावभाव पर भी जोर दिया जाता है ।
कर्नाटक संगीत
तेलंगाना
- कर्नाटक संगीत शैली में तिल्लाना का वही स्थान है जो हिन्दुस्तानी संगीत में तराना का है इसमें भक्ति प्रधान गीतों का गायन किया जाता है। ये गीत शास्त्रीय संगीत एवं लोकगीतों के मध्य एक कड़ी के रूप में विद्यमान हैं।
थेओरम
- दक्षिण भारत में प्रचलित भजनों को थेवारम के नाम से जाना जाता है।
- 15वीं शताब्दी में आन्ध्रप्रदेश में जन्मे तलापक्कम भाइयों द्वारा गाए गए थेवारम गीत आज भी लोकप्रिय हैं।
पादम
- यह कर्नाटक संगीत का प्रमुख राग है, जिसमें प्रेम प्रधान गीतों का गायन किया जाता है ।
- इसे एक रूपान्तक एवं मध्यम श्रेणी का राग माना जाता है जिसके सर्वश्रेष्ठ गीतों की रचना ग्यारहवीं शताब्दी में संस्कृत के प्रमुख कवि जयदेव के अष्टपदी एवं 17वीं शताब्दी में तेलग कवि क्षेत्रम के पादम गीतों के रूप में हुई है.
जावालि
- जावालि भी प्रेम प्रधान गीतों का मध्यम श्रेणी का राग है। इसके गीतों में मानवीय प्रेम का प्रत्यक्ष विवरण प्राप्त होता है। इसके गीत अत्यधिक गेय शैली में लिखे गए हैं।
- संरचना की दृष्टि से यह पादम से थोड़ी भिन्नता लिए हुए है।
विभिन्न गायन की शैलियाँ
धमार
- भगवान कृष्ण की क्रियाओं एवं नाट्य लीलाओं पर आधारित यह एक प्राचीन गायन शैली है । इसमें अधिकतर होली का वर्णन मिलता है। इसमें धमार ताल का प्रयोग किया जाता है ।
गजल
- मिर्जा गालिब को गजलों का जनक कहा जाता है। यह एक अत्यंत लोकप्रिय विधा है। इसमें विशेष रूप से उर्दू भाषा में लिखित रचना को गाया जाता है।
- वर्तमान में हिन्दी में भी गजल लिखने की परम्परा चल पड़ी है। इसमें दादरा, कहरवा आदि प्रचलित तालों का प्रयोग किया जाता है।
दादरा
- श्रृंगारिक रचना दादरा गजल के समान ही होती है इसमें संयोग एवं वियोग श्रृंगार की रचनाएँ होती हैं और ठुमरी का पूट मिलता है। इसमें दादरा, कहरवा ताल प्रयुक्त होता है।
भजन
- यह संत कवियों की आध्यात्मिक रचना होती है जिसको स्वरबद्ध करके गाया जाता है । इसमें सूरदास, कबीर, तुलसीदास, मीराबाई, तुकाराम आदि अनेक संत कवियों की रचनाएँ प्रसिद्ध हैं ।
गीत
- कवियों की गेय रचना को इस शैली के अंतर्गत रखा जाता है जिनको स्वरबद्ध कर प्रस्तुत किया जाता है। इनमें गोपालदास नीरज, हरिवंशराय बच्चन, मैथलीशरण, महादेवी वर्मा, प्रदीप आदि अनेक कवियों की रचनाओं गाया जाता है।
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