पवन क्या होती हैं | पवन के प्रकार | What is Wind in Hindi
पवन क्या होती हैं What is Wind in Hindi
पवनें किसे कहते हैं
- एक स्थान से एक निश्चित दिशा को चलती हुई वायु (Air) को पवन (Wind) कहते हैं. वायुदाब के क्षैतिज वितरण में अन्तर अथवा वायु में घनत्व की भिन्नता होने पर चलती है. फिन्च और ट्रिवार्था के अनुसार, "पवन प्रकृति का वह प्रयत्न है, जिसके द्वारा वायुदाब की असमानता दूर होती है"
- धरातल पर वायु प्रवाह का सम्बन्ध वायुदाब के अन्तर से है. ये हमेशा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं. यदि पृथ्वी स्थिर होती है और उसके सब जगह जल-ही-जल अथवा स्थल-ही स्थल होता, तो सूर्य की किरणें सदैव विषुवत् रेखा पर सीधी चमकतीं. ऐसी अवस्था में विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर तापमान बराबर घटता जाता और विषुवत् रेखा पर न्यून वायुदाब तथा ध्रुवों पर उच्च वायुदाब सदैव बना रहता, लेकिन असमान वितरण के कारण ऐसा नहीं होता है.
- पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण अप- केन्द्रीय बल (Centrifugal Force) की उत्पत्ति होती है और पवन की दिशाएँ बदल जाती हैं. फेरल के नियम (Ferral's Law) के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में चलने वाली पवनें अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं.
पवनों के प्रकार
पवनों
को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
(1) सनातनी या स्थायी पवनें (Plane-tary Winds)
- अयनवृत्तीय प्रदेशों की पवनें (Wind in the Tropics)
- डोलड्रम या शान्त पेटी (Dol- drum)
- व्यापारिक पवनें (Trade Winds)
- पछुआ पवनें (Westerlies)
- ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)
(2) अस्थायी या स्थानीय पवनें (Local Winds)
- मानसूनी पवनें (Monsoon Winds)
- जलीय तथा थलीय समीर (Land & Sea Breezes)
- पर्वत और घाटी समीर (Moun- n & Valley Breeze)
सनातनी या स्थायी पवनें (Plane-tary Winds)
- ये पवनें सदैव एक ही क्रम में वर्ष भर एक निश्चित दिशा की ओर चलती रहती हैं. यद्यपि इनका वितरण पूरे ग्लोब पर होता है तथा म इनकी उत्पत्ति समस्त ग्लोब के तापक्रम तथा पृथ्वी के घूर्णन से उत्पन्न उच्च तथा में निम्न वायुदाब से सम्बन्धित है. अतः इन्हें ग्रहीय पवनें भी कहा जाता है.
(अ) अयनवृत्तीय प्रदेशों की पवनें (Wind in the Tropics)
- अयनवृत्तीय प्रदेशों में सामान्य रूप से 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों वाले भाग को सम्मिलित किया जाता है. समस्त 'अयनवृत्तीय भाग में मौसम सम्बन्धी पवनें समान होती हैं तथा भूमध्यरेखा के समीप डोलड्रम या शान्त पेटी होती है. आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ है कि अयनवृत्तीय पेटी में पहले के सभी है गुण नहीं मिलते, उनमें कुछ परिवर्तन मिला है. व्यापारिक पवनें उष्ण कटिबन्धीय सागरों के पूर्वी भाग में अधिक चला करती हैं.
(ब) डोलड्रम या शान्त पेटी (Dol- drum)
- इसका विस्तार भूमध्यरेखा के दोनों ओर 5° उत्तर व दक्षिण तक पाया जाता है. अधिक गर्मी के फलस्वरूप वायु अधिक उष्ण होकर ऊपर को फैलती है, वायु का प्रवाह भूपृष्ठ से ऊपर आकाश की दिशा में होता है. यहाँ अधिकांश समय पवन शान्त रहती है. इसलिए इसे शान्त पेटी अथवा डोलड्रम कहते हैं. वायु के शान्त होने के कारण पवन के चलने की दिशा में अनिश्चितता पाई जाती है, किन्तु वास्तव में शान्त प्रदेश सम्पूर्ण पृथ्वी पर एकसमान पेटी में नहीं फैला हुआ है.
डोलड्रम या शान्त पेटी का विस्तार
इनका विस्तार भिन्न ऋतुओं
में परिवर्तित होता रहता है. विषुवत् रेखा के निकट इसके तीन उपक्षेत्र हैं
(i) हिन्द प्रशान्त डोलड्रम
(ii) भूमध्यरेखा के निकट अफ्रीका के पश्चिमी किनारे पर
(ii) भूमध्यरेखीय मध्य अमरीका के पश्चिमी
किनारे पर
व्यापारिक पवन क्या होती हैं
(स) व्यापारिक पवनें (Trade Winds)
- दोनों गोलाद्धों में अयनवृत्तीय उच्च बायु दाब से विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब की ओर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवनें या सन्मार्गी हवाएँ कहते हैं. उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व में उत्तर पश्चिम होती है.
- नियमित दिशा के कारण प्राचीन काल में व्यापारियों को पालयुक्त जलयानों के संचालन में पर्याप्त सुविधा मिलने के कारण उनका नाम व्यापारिक पवनें रख दिया गया था. जब ये पवनें चलती हैं तो फेरल के नियमानुसार उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं.
- उपोष्ण कटिबन्ध में अधिक दाब के कारण पवनें धरातल पर उतरती हैं. नीचे उतरने के कारण ये पवनें शुष्क हो जाती हैं और प्रति-चक्रवातीय स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
पछुआ पवनें क्या होती हैं
(द) पछुआ पवनें (Westerlies)-
- अयनवृत्तीय उच्च वायुदाब की पेटी से ध्रुववृत्तीय निम्न वायुदाब की पेटी की ओर चलने वाली हवाओं को पछुआ पवनें कहते हैं. उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ये हवाएँ 35° और 40° अक्षांशों से 60° या 65° अक्षांशों तक चलती हैं.
- इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण पश्चिम से उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर होती है.
- सन्मार्गी पवनों की अपेक्षा पछुआ पवनों का प्रवाह क्षेत्र विस्तृत होता है. इन हवाओं की ध्रुवीय सीमा में परिवर्तन होता रहता है. जहाँ पर ये गर्म तथा आर्द्र पछुआ हवाओं से आने वाली ठण्डी हवाओं से मिलती हैं, वहाँ वाताग्र बन जाते हैं. जिन्हें शीतोष्ण वाताग्र कहते हैं इन वाताग्रों से ही चक्रवात तथा प्रति चक्रवात की उत्पत्ति होती है जिससे मौसम बड़ा अनियमित जाता है.
- उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल भाग की अधिकता के कारण पवन व्यवस्था बड़ी विचित्र हो जाती है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जल भाग अधिक होने के कारण 40°-60° अक्षांशों में यह पवनें बिना ब किसी रुकावट के काफी दूर तक चली जाती हैं. इन अक्षांशों में फैले विशाल समुद्र पर पवनें ग्रीष्म और शीतकाल में समान रूप से प्रचण्ड गति से चलती हैं.40° अक्षांशों में इस प्रचण्ड गति के कारण इन्हें गरजते चालीसा (Roaring Forties) तथा 50° अक्षांशों में इसे भयंकर पचासा (Furious Fifties) तथा 60° अक्षांश पर चीखता साठा (Stricking Sixties) कहा जाता है.
ध्रुवीय पवनें क्या होती हैं
(य) ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)-
- ध्रुवीय पवनें वे हैं जो धुवीय उच्च वायुदाब से उपधुवीय निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं.
- उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व होती है. ग्रीष्मकाल में वायुदाब पेटियों के खिसकाव की के कारण इनका क्षेत्र संकुचित हो जाता है, परन्तु शीतकाल में इनका क्षेत्र विस्तृत हो जाता है. ध्रुवीय पवनें प्रायः ध्रुवों के 70° या 80° अक्षांश तक चला करती हैं.
- ध्रुवों पर अधिक शीत पड़ने के कारण हर समय उच्चदाब का केन्द्र बना रहता है. ये पवनें पूर्व की ओर चलती हैं. उत्तरी गोलार्द्ध में इन्हें नॉर इस्टर्स (Nor Easters) कहते हैं. ध्रुवों में भीतरी प्रदेश जहाँ उच्च वायुदाब के कारण पवनें आकर जमा होती हैं. तूफानों वि से प्रायः रहित होती हैं. जब कभी शीतोष्ण की कटिबन्ध की पवनों का सम्पर्क ध्रुवीय पवनों में से होता है, तो चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात पर की उत्पत्ति होती है.
(2) स्थानीय पवनें (Local Winds)
धरातल पर कुछ ऐसी पवनें चलती हैं जो सदैव एक ही दिशा में नहीं चलती वरन् से समय और ऋतु के अनुसार इसकी दिशा बदलती रहती है इन्हें सामयिक या स्थानीय पवनें कहते हैं ।
स्थानीय पवनों के प्रकार
(i) मानसूनी पवनें (Monsoon Winds)-
- मानसून शब्द मूल रूप से अरबी भाषा के 'मौसिम' शब्द से बना है, जिसका तात्पर्य मौसम से होता है, इसका प्रयोग सबसे पहले अरब सागर पर बहने वाली पवनों के लिए किया गया था जिसकी दिशा छ: माह उत्तर पूर्व से दक्षिण-पश्चिम और शेष छ: माह दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व रहती है.
- इन हवाओं का चलने का कारण धरातल पर जल और स्थल का पाया जाना है. तापमान की भिन्नता से इनके वायुदाब में भी भिन्नता पाई जाती है जिससे पवनों को गति मिलती है और मानसून पवनें चलती हैं लेकिन आधुनिक विचारधारा के अनुसार केवल यही तथ्य मान्य नहीं है.
- फ्लान नामक विद्वान् ने गतिक उत्पत्ति (Dynamic Origin) सिद्धान्त पर आधारित तथ्यों से बताया है कि मानसून पवनों की उत्पत्ति मात्र वायुदाब तथा वायु की पेटियों के खिसकाव के कारण होती है.
मानसून पवन के प्रकार
(1) शीतकालीन मानसून-जो स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं. ये शुष्क और ठण्डी होती हैं.
(2) ग्रीष्मकालीन मानसून -ये समुद्र से
स्थल की ओर चलती हैं, ये वाष्पयुक्त होती हैं और भारत को
वर्षा प्रदान करती हैं.
(ii) जलीय तथा थलीय समीर (Land & Sea Breezes) -
- समुद्र के निकट जलीय और थलीय पवनों का जन्म होता है. जल की अपेक्षा थल शीघ्र गर्म तथा शीघ्र ठण्डा हो जाता है. दिन के समय समुद्र तट का स्थलीय भाग जल की अपेक्षा अधिक उष्ण हो जाता है जिससे थल पर वायुदाब कम हो जाता है और जल पर अपेक्षाकृत अधिक वायुदाब पाया जाता है. इसलिए समुद्र से थल की ओर पवन चलती है. समुद्र से आने के कारण इसे जलीय समीर (Sea Breeze) कहते हैं.
- रात्रि के समय सूर्याताप के विकिरण हो जाने से थल भाग जल भाग की अपेक्षा शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं. इस दशा में थल पर अधिक वायुदाब और जल भागों पर कम वायुदाब पाया जाता है. कम वायुदाब के क्षेत्र में वायु उष्ण होकर आकाश की ओर उठती है और उसका स्थान ग्रहण करने के लिए थल के अधिक वायुदाब क्षेत्र से पवन चलती है जिसे थलीय समीर (Land Breeze) कहते हैं.
(iii) पर्वत और घाटी समीर (Mountain & Valley Breeze) -
- पर्वत और घाटी मध्य पवनों का चलना स्थानीय व्यवस्था ये दैनिक वायुभार में विभिन्नता के कारण चला करती हैं. दिन के समय गर्मी कारण घाटियों की पवनें गर्म होकर की हो ऊपर उठने लगती हैं इस प्रकार घाटी से पर्वतों के ढालों के सहारे-सहारे उठने वाली हवाओं को घाटी समीर Valley Breeze) कहते हैं. ये पवनें अपनी दिनचर्या के अनुसार पर्वतों की चोटियों तक पहुँचती हैं और वर्षा प्रदान करती हैं.
- यही पवनें रात्रि के समय अपने ताप को विकरित कर देती हैं और विकरित के साथ ताप समाप्त होने से ठण्डी हो जाती हैं और शनैः-शनैः पर्वतों के ढालों पर ठण्डी होती हुई घाटियों में एकत्रित हो जाती हैं जिन्हें पर्वतीय समीर (Mountain Breeze) कहते हैं. पर्वतों से घाटी की ओर बहने वाली इस हवा को गुरुत्वाकर्षण पवन (Gravity Wind) या उत्प्रेक्षक पवन Wind) कहते हैं. (Catabatic Wind) कहते हैं ।
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