1857 के विद्रोह के कारण| 1857 के विद्रोह के परिणाम | Reason of 1857 Revolt in Hindi
1857 के विद्रोह के कारण 1857 के विद्रोह के परिणाम
लार्ड डलहौजी के पश्चात् लार्ड कैनिंग गवर्नर जनरल बनकर भारत आया इसी के शासनकाल में 1857 ई. में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह हुआ। इस विद्रोह का प्रारंभ 13 जनवरी 1857 ई. को प्रारंभिक तौर पर कलकत्ता से हुआ और शीघ्र ही यह विद्रोह मेरठ, कानपुर, बरेली, झाँसी, दिल्ली तथा लगभग समस्त भारत में फैल गया इस विद्रोह का आरंभ भारतीय सैनिकों द्वारा अपने अँग्रेज सैनिक अधिकारियों के विरुद्ध हुआ, किन्तु शीघ्र ही यह विद्रोह के रूप में परिवर्तित हुआ और अँग्रेजी शासन के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह बन गया। यही कारण है कि इस विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है ।
1857 विद्रोह के कारण Reason of 1857 Revolt in Hindi
1. राजनैतिक कारण
2. आर्थिक कारण
3. सामाजिक कारण
4. धार्मिक कारण
5. सैनिक कारण
6. तात्कालिक कारण
1857 की क्रांति के राजनीतिक कारण
1. लॉर्ड डलहौजी ने गोद लेने प्रथा को समाप्त कर देश से विभिन्न स्वतंत्र राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय करने, हड़पने की नीति का अनुसरण किया, जिससे तत्कालीन राजवंशों एवं शासकों में असंतोष व्याप्त हो गया।
2. यद्यपि मुगल बादगाह बहादुरशाह 'जफर' नाममात्र का शासक था किन्तु भारतीय जनमानस में उसकी प्रतिष्ठा यथावत् थी । जब अंग्रेजों ने 1835 ई. के पश्चात् मुगल बादशाह का आदर सम्मान करना बंद कर दिया तो जनता अँग्रेजी शासनतंत्र से क्षुब्ध हो उठी।
3. व्यक्तिगत रूप से अनेक देशी नरेश एवं राजवंश अंग्रेजों से क्षुब्ध थे क्योंकि अँग्रेजों ने जबरन उनके राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया था तथा अनेक नरेशों उदाहरणार्थ बिठूर (कानपुर)नाना साहब की पेंशन सुविधाएँ बन्द कर दी थी ।
4. अंग्रेज अहंकारी थे। वे भारतीयों को असभ्य 'काला कुली' कहते थे; तथा उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते थे भेदभाव पूर्ण व्यवहार करते थे, जिससे अनेक उच्चवर्गीय भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ हो गए ।
5. अंग्रेजों ने नौकरी देने के संबंध
में भारतीयों के साथ भेदभाव किया। उन्हें उच्च एवं महत्वपूर्ण पद प्रदान नहीं किए।
उनकी इस नीति से सरकारी भारतीय कर्मचारी उनके विरुद्ध हो गए । उन्होंने सरकारी
नौकरियों का बहिष्कार किया और विद्रोह में सम्मिलित हो गए। 6. कंपनी के कर्मचारी
भ्रष्ट, शोषणकारी, अन्यायी तथा अत्याचारी थे। उनकी
भ्रष्टता के कारण भारतीय जनता उन्हें घृणा की दृष्टि से देखने लगी थी।
1857 की क्रांति के आर्थिक कारण
1. लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने भारतीय जमींदारों से उन्हें इनाम में मिली भूमि को छीन लिया था इससे अनेक भारतीय जमींदार दरिद्र एवं विपन्न हो गए। इस प्रकार के जमींदारों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध असंतोष व्याप्त हो गया।
2. अंग्रेजों की व्यापारिक नीति के परिणामस्वरूप भारतीय उद्योग धन्धे, कुटीर उद्योग नष्ट हो गए । परिणामस्वरूप इन उद्योग धन्धों कुटीर उद्योगों में लगे लोग बेकार हो गए।
3. बेकारी के कारण इस प्रकार के लोग संगठित होकर अँग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
4. अंग्रेजों की नीतियों के परिणामस्वरूप भारतीय कृषकों की दशा दयनीय हो गई। अँग्रेजों द्वारा स्थापित इकाई बंदोबस्त, रैयतवाड़ी व्यवस्था तथा महलवारी व्यवस्था भारतीय कृषकों के लिए अहितकारी ही साबित हुई।
1857 की क्रांति के सामाजिक कारण
1. 1818 ई. के पश्चात् कंपनी की सरकार ने भारत के सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया। अंग्रेजों ने जाति नियमों की उपेक्षा की। विलियम बैंटिक सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे रूढ़िवादी भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध खलबली मच गई।
2. अंग्रजों द्वारा चलाए गए रेल, डाकतार आदि को भारतीयों ने भ्रमवश गलत अर्थ में लिया । उन्होंने सोचा कि ये साधन मात्र ईसाई धर्म के प्रचार के लिए हैं।
3. अंग्रेजों ने पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य का अधिकाधिक प्रचार किया तथा भारतीय सभ्यता, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य की उपेक्षा की। जिसके परिणामस्वरूप बुद्धिजीवी वर्ग अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया।
4. अंग्रेजों ने भारतीय रजवाड़ों एवं आम लोगों के साथ अच्छा व्यवहार न कर कदम-कदम पर उनकी उपेक्षा की।
5. अंग्रेजों की रंगभेद नीति के कारण
भारतीयों के आत्म सम्मान को ठेस पहुँची।
1857 की क्रांति के धार्मिक कारण
1. अँग्रेज हिन्दू व इस्लाम धर्म की खुलकर आलोचना करते थे, इसलिए हिन्दू व इस्लाम धर्मावलम्बियों को ठेस पहुँची।
2. अंग्रेजों ने शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से ईसाई धर्म का खूब प्रचार कराया। इससे हिन्दुओं और मुसलमानों को संदेह होने लगा कि उनकी आगे आने वाली पीढ़ी ईसाई हो जाएगी। 3. अंग्रेजों ने ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों को सरकारी नौकरी, उच्च पद तथा अनेक सुविधाएँ प्रदान कीं। इससे हिन्दू एवं मुसलमानों को कंपनी सरकार के प्रति शंका होने लगी।
4. हिन्दू धर्म में मान्य गोदप्रथा को
लॉर्ड डलहौजी ने अवैध घोषित कर दिया और भारतीय नरेशों के संतानहीन होने पर उनके
राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। भारतीय नरेशों ने इसे अपना अपमान
समझा। दुर्भाग्य से उस समय कई नरेश संतानहीन थे अत: ऐसे नरेशों ने संयुक्त रूप से
अंग्रेजी शासन का विरोध किया।
1857 की क्रांति के सैनिक कारण
2. प्रथम अफगान युद्ध में अंग्रेजों की पराजय से भारत में भारतीय सैनिकों के आत्मबल में वृद्धि हुई। उन्हें अब विश्वास होने लगा कि अँग्रेजी शक्ति अजेय नहीं है।
3. बंगाल सेना कंपनी की मुख्य शक्ति थी। इस सेना में राजपूत, क्षत्रिय तथा अवध के ब्राह्मण थे । ये स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे इनका विचार था कि अगर अंग्रेजी सरकार उन्हें देश से बाहर भेजेगी तो उनका धर्म नष्ट हो जाएगा। किन्तु अंग्रेजों ने एक कानून द्वारा यह घोषणा कर दी कि सैनिकों को सेवा करने के लिए कहीं भी भेजा जा सकता है इस कानून से भारतीय सैनिकों में असंतोष व्याप्त हो गया ।
4. हिन्दू सैनिकों को अंग्रेज सैनिकों की तुलना में कम वेतन दिया जाता था, जबकि युद्ध के समय उन्हें आगे तथा अंग्रेज सैनिकों को पीछे रखा जाता था। कंपनी की इस नीति से भारतीय सैनिकों में रोष व्याप्त था।
1857 की क्रांति के तात्कालिक कारण
- लॉर्ड कैनिंग के शासनकाल में सैनिकों को एक ऐसे कारतूस का प्रयोग करना पड़ा, जिसमें गाय और सुअर की चर्बी लगी थी, उन कारतूसों को मुँह से काटना पड़ता था। इससे हिन्दू एवं मुसलमान सैनिकों में भारी रोष उत्पन्न हो गया शीघ्र ही इस रोप ने विकराल रूप धारण कर लिया और वह सब एक ज्वालामुखी के रूप में फूट पड़ा ।
1857 की क्रांति के विद्रोह की प्रकृति
- 1857 ई. का विद्रोह भारत के राष्ट्रीय इतिहास की प्रथम महत्वपूर्ण घटना थी इस विद्रोह की प्रकृति के संबंध में इतिहासकारों के अलग अलग मत हैं, किन्तु यह सामान्यत: स्वीकार किया जाता है कि यह मात्र सैनिक विद्रोह नहीं था, अपितु भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था ।
1857 की क्रांति के प्रमुख केन्द्र
दिल्ली - यहाँ पर विद्रोह का नेतृत्व बहादुर शाह 'जफर' ने कि
कानपुर - यहाँ विद्रोह के अग्रणी नेता नाना साहब थे ।
लखनऊ - यहाँ बेगम हजरत महल के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।
इलाहाबाद - यहाँ पर हुए विद्रोह का नेतृत्व लियाकत अली ने किया।
झाँसी - झाँसी में विद्रोह का नेतृत्व महान वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने किया जो युद्ध क्षेत्र में अँग्रेजों से लड़ती हुई 17 जून, 1858 ई. को । यहाँ पर हुए विद्रोह को विलियम टेलर तथा मेजर विंसेट ग्वालियर में वीरगति को प्राप्त हुईं।
जगदीशपुर - बिहार स्थित जगदीशपुर में विद्रोह का नेतृत्व कुँवर सिंह ने किया आयर ने दबाने में सफलता प्राप्त की।
1857 की क्रांति की असफलता के कारण
- 1857 ई. में व्यापक पैमाने पर हुए इस विद्रोह में भारतीय सैनिकों की संख्या अंग्रेजों की सैनिकों की संख्या से कहीं अधिक थी यही कारण रहा कि प्रारंभ में अनेक स्थानों पर भारतीयों को सफलता प्राप्त हुई। किन्तु अंत में अँग्रेजों ने इस विद्रोह का दमन कर दिया और विद्रोह सफल न हो सका।
विद्रोह की असफलता के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे :-
विद्रोह का प्रारंभ समय से पूर्व होना
राष्ट्रीय भावना का अभाव
- राष्ट्रीय भावना के अभाव के कारण भारतीय समाज के सभी वर्गों ने विद्रोह में साथ नहीं दिया, बल्कि सामंतवर्ग तो अँग्रेजों के साथ ही रहा।
उचित नेतृत्व का अभाव
- विद्रोह के मुख्य नेतृत्वकर्ता वृद्ध मुगल सम्राट बहादुरशाह' जफर क्रांतिकारियों को उचित नेतृत्व प्रदान न कर सका । यही कारण रहा कि भरतीय संगठन एवं साहस का परिचयन देने के बाद भी सफल न हो सके।
सैनिक दुर्बलता
- यद्यपि भारतीय विद्रोहियों ने साहस का प्रदर्शन किया, किन्तु अँग्रेजी सेना की तुलना में भारतीय सेना कमजोर थी। नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता थे। किन्तु एक अच्छे सेनानायक नहीं। बहादुरशाह जफर भी वृद्ध होने के कारण सैन्य क्षमता का कुशल प्रदर्शन न कर सके।
आवागमन तथा संचार के साधन
- भारत में अंग्रेजों ने आवागमन तथा संचार के साधनों का पर्याप्त विकास कर लिया था। ये साधन विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों के लिए सहायक सिद्ध हुए।
धनाभाव
- क्रांतिकारियों के पास धन का अभाव होने के कारण वे उचित मात्रा में उच्च किस्म के अस्त्र-शस्त्रों की व्यवस्था न कर सके उनकी इस स्थिति का अंग्रेजों ने भरपूर लाभ उठाया।
शिक्षित वर्ग की उदासीनता
- 1857 ई. में हुए विद्रोह के प्रति शिक्षित वर्ग पूर्णत: उदासीन रहा यदि शिक्षित वर्ग अपने लेखों द्वारा भारतीयों को क्रांति के प्रति उत्साहित एवं संगठित करते तो परिणाम कुछ और ही होता।
1857 ई. के विद्रोह के परिणाम
ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन का अंत
- 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित किया, जिसके अनुसार भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन का अंत कर दिया गया।
भारत के शासन पर महारानी का नियंत्रण
- 1858 ई. में पारित हुए कानून के अनुसार भारत का शासन महारानी के हाथ में चला गया ।
गवर्नर जनरल का पद परिवर्तन
- 1858 ई. में पारित हुए कानून के अनुसार गवर्नर ज नरल के पद मं परिवर्तन कर उसे गवर्नर जनरल के साथ वायसराय का पद भी प्रदान किया
ब्रिटिश सेना का पुनर्गठन
- सेना का पुनर्गठन किया गया। अंग्रेज सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई। उच्च सैनिक पदों पर भारतीयों की नियुक्ति बंद कर दी गई। तोपखाना पूरी तरह अंग्रेजों के अधीन कर दिया गया अनेक ऐसी रेजीमेन्ट बनाई गईं, जिनमें केवल अंग्रेजों को रखा गया।
हिन्दू-मुस्लिम एकता
- इस विद्रोह के परिणामस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रारंभ हुआ।
राष्ट्रीय एकता का विकास
- अब भारतीयों में राष्ट्रीय भावना के विकास ने गति पकड़ ली।
सामंत वर्ग का वास्तविक ज्ञान
- सामंत वर्ग ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों को सहयोग प्रदान किया। परिणामस्वरूप उनमें तथा साम्राज्यवाद में सहयोग का युग आरंभ हुआ।
Also Read...
Post a Comment