अनुच्छेद 19 से 22 :स्वतंत्रता का अधिकार |Right to freedom in Hindi
स्वतंत्रता का अधिकार :अनुच्छेद 19 से 22Right to freedom in Hindi
स्वतन्त्रता भी फ्रांसीसी क्रांन्ति की देन है। इसका दृष्टिकोण सकारात्मक है। स्वतन्त्रता का अर्थ व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित में सामंजस्य है। भारतीय संविधान के अनु0 19 से लेकर अनु0 22 तक में स्वतन्त्रता का व्यापक विश्लेषण व विवेचन किया गया है।
अनुच्छेद 19
- अनुच्छेद 19 यह भारतीय संविधान का मूल ढ़ाचा है। यह स्वतन्त्रता केवल भारतीय नागरिकों को ही प्रदान की गयी है। अनु0 19 में वर्णित सभी स्वतन्त्रताएँ सामाजिक है।
- अनु0 19 में वर्णित स्वतन्त्रता आपातकाल में अनु0 358 के अन्तर्गत स्वतः निलम्बित हो जाती है।
- अनु0 19(1) क से लेकर अनु० 19 (1) छ तक में सात स्वतन्त्रताओं का उल्लेख था लेकिन अनु0 19(1)च में वर्णित सम्पत्ति के अर्जन धारण और व्ययन की स्वतन्त्रता को निकाल देने से वर्तमान में 6 स्वतन्त्रताएँ है।
- प्रत्येक स्वतन्त्रता पर अनु0 19(2) से लेकर 19 (6) तक द्वारा क्रमशः युक्त 2 निर्बधन लगाया गया है। यह निर्बन्धन क्रमशः राष्ट्र की एकता व अखण्डता भारत की सम्प्रभुता सार्वजनिक हित आदि के आधार पर लगाया गया है।
अनुच्छेद 19(1)क
- अनु0 19(1)क इसमें भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रावधान है। प्रेस की स्वतन्त्रता इसी अनु० में निहित है। अनु0 19(2) के द्वारा निर्वधन है।
अनुच्छेद 19(1)ख
- इसमें शान्तिपूर्ण एवं निरायुध सम्मेलन की स्वतन्त्रता का प्रावधान है इसी में जलूस निकालने का अधिकार निहित है यह धार्मिक व राजनीतिक दोनों प्रकार का हो सकता है 19(3 ) द्वारा इस पर प्रतिबन्ध है।
अनुच्छेद 19(1)ग
- इसमें संगम या संघ बनाने की स्वतन्त्रता का प्रावधान है इसी में राजनीतिक दल दबाव समूह तथा सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन बनाने का विचार निहित है 19(4) के द्वारा इस पर प्रतिबन्ध है।
अनुच्छेद 19(1)घ
- भारत राज्य क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को अवाध भ्रमण की स्वतन्त्रता प्राप्त है अनु0 19(5) के द्वारा अनुसुचित जनजाति और सार्वजनिक हित के आधार पर प्रतिबध है।
अनुच्छेद 19(1)ड़
- भारत राज्य क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को कहीं आवास बनाने निवास करने व बस जाने की स्वतन्त्रता प्राप्त है 19(5) के द्वारा इस पर प्रतिबन्ध है। यह जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होता है।
अनुच्छेद 19(1)च निरसित
- अनु0 19 (1)छ भारत राज्य क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को कोई वृत्ति व्यापार व्यवसाय या कारोबार करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। अनु0 19(6) के द्वारा सार्वजनिक हित के आधार पर इस भी प्रतिबन्ध है।
अनुच्छेद 20
इसमें अपराध की दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण का प्रावधान है । इसमें निम्न तीन बाते कही गयी है।
अनु0 20(1)
- अपराध करते समय लागू कानून के अतिरिक्त अन्य किसी कानून से व्यक्ति को सजा नहीं दी जाएगी अर्थात यह कार्योत्तर विधियों से संरक्षण प्रदान करता है।
अनु0 20(2)
- एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोहरा दण्ड नहीं दिया जाएगा लेकिन यदि अपराध की प्रकृति भिन्न भिन्न है तो व्यक्ति को दोहरा दण्ड दिया जा सकता है अर्थात यह दोहरे दण्ड का निषेध करता है । यह प्रावधान अमेरिका से गृहीत है।
अनुच्छेद 20(3)
- किसी व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाहि या साक्ष्य देने के लिए वाध्य नहीं किया जाएगा। अर्थात यह आत्म अभिसंशन का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 21
- भारत राज्य क्षेत्र में राज्य किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थानपित प्रक्रिया से ही वंचित करेगा अन्यथा नहीं।
- ए0 के0 गोपालन बनाम मद्रास राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह स्वतन्त्रता कार्यपालिका के विरुद्ध नही अर्थात विधायिका कानून बनाकर किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित कर सकती है।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विदेश भ्रमण की स्वतन्त्रता को दैहिक स्वतन्त्रता में निहित मौलिक अधिकार मानते हुए नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त को बढ़ावा दिया। उसके अनुसार जो कानून अरिजु रिजु, आयुक्त युक्त और न्याय सम्मत नहीं है वह अनु0 21 के विरुद्ध है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जो स्वतन्त्रता अनु0 19 में नहीं है वह दैहिक स्वतन्त्रता में निहित है उसने प्राण शब्द की व्याख्या करमे हुए कहा कि इसका अर्थ भौतिक अस्तित्व या पशुवत अस्तित्व से नहीं है बल्कि इसका अर्थ मानवीय और गरिमापूर्ण जीवन जीना है और वे सभी बातें जो किसी व्यक्ति को ऐसा करने से रोकती है अनु0 21 के विरुद्ध है।
अनुच्छेद 21 में निहित मौलिक अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय ने अब तक अनु0 21 में निहित कई मौलिक अधिकारों की घोषणा कि जिसमें से कुछ निम्न है।
1. मत देने का अधिकार
2. सूचना पाने का अधिकार
3. एकान्तता का अधिकार
4. आश्रय प्राप्त करने का अधिकार
5. चुप रहने का अधिकार
6. जीविकोपार्जन का अधिकार
7. पेंशन पाने का अधिकार
8. समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार
9.स्वास्थ का अधिकार
10. स्वच्छ जल पाने का अधिकार
11. पर्यावरण प्रदूषण से रक्षा का अधिकार
12. प्राथमिक शिक्षा का अधिकार
उपर्युक्त मौलिक अधिकार न्यायालय द्वारा घोषित है इनका दावा तब तक नहीं कर सकते जब तक ये हमें संवैधानिक अधिकार के रुप में नहीं मिलते वैसे इन्हें हम वैधानिक अधिकार की संज्ञा दे सकते है।
46 वें संविधान संसोधन अधिनियम, 2001 के द्वारा प्राथमिक शिक्षा पाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया।
21(क)
- राज्य 6 से 14 वर्ष तक के आयु के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करेगा।
- 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2000 द्वारा संविधान के मूल कर्तव्यों के अध्याय में एक अन्य खण्ड जोड़ा गया है, क्योकि एक नवीन अनुच्छेद 21 क जोड़कर 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बालकों के लिए शिक्षा को मूल अधिकार बना दिया गया है।
- 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष की आयु कें बालकों के माता पिता और प्रतिपाल्य के संरक्षको का यह कर्तव्य होगा कि वे उन्हे शिक्षा का अवसर प्रदान करें।
- वस्तुतः संविधान में उल्लेखित मूल कर्तव्य प्रवर्तनीय नहीं है। मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में अनेक उपबन्धों के माध्यम से इनके हनन होने पर संरक्षण की व्यवस्था की गयी है लेकिन मूल कर्तव्यों का पालन न करने पर किसी दण्ड की व्यवस्था नहीं है यद्यपि अनुच्छेद 54 क राज्य पर अभिव्यक्त रूप से कोई मूल कर्तव्य आरोपित नहीं करता है तथापि भारत के सभी नागरिकों का कर्तव्य राज्य का सामूहिक कर्तव्य है।
- रणधीर सिंह बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की प्रस्तावना में वर्णित समाजवाद को अनु0 14 व 16 के साथ मिलाकार पढ़ने पर सर्वोच्च न्यायालय ने समान कर्स के लिए समान वेतन के सिद्धान्त को मौलिक अधिकार घोषित किया।
अनुच्छेद 22
इसमें बन्दी बनाए जाने के विरुद्ध व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान किया गया है । इसमें निम्न प्रावधान है।
अनु0 22(1)
- बन्दी बनाए जाने वाले व्यक्ति को बन्दी बनाए जाने के कारणों से तत्काल अवगत कराना होगा।
अनु0 22(2)
- बन्दी बनाए गए व्यक्ति 24 घण्टे के अन्दर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष अपस्थित करना होगा और बन्दी बनाए जाने का कारण बताना होगा। इसी में कहा गया है कि बन्दी बनाए गए व्यक्ति को अपने रुचि या मनपसन्द के वकील से परामर्श लेने का अधिकार प्राप्त होगा।
अनु0 22(3)
निम्नलिखित दो प्रकार से गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों पर उपर्युक्त नियम लागू नहीं होता
- क.निवारक निरोध के अधीन गिरफ्तार किया गया व्यक्ति
- ख. शत्रु देश के व्यक्ति पर
निवारक निरोध
(क) निवारक निरोध किसी घटना के घटित होने के पूर्व ऐसी कार्यवाही करना जिससे वह घटना घटित न होने पाए निवारक निरोध कहलाता है। इसके अन्तर्गत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति पर निम्न नियम लागू होता है।
- (1) उसे तीन महीने तक बिना कोई कारण बताए जेल में निरूद्ध रखा जा सकता है
- (2) तीन महिने बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या उसके समकक्ष व्यक्ति की अध्यक्षता में बने एक तीन सदस्यीय परामर्श दात्री बोर्ड के समक्ष उपस्थित करना होगा ।
- (3) पूछं तांछ के दौरान यदि उसे बोर्ड निदेर्ष पाता है तो रिहा करने का आदेश देगा और यदि दोषी पाता है तो उसे जेल में रखकर मुकदमा चलाया जाएगा। अब उस व्यक्ति को भी अपनी गिरफ्तारी के कारणों को जानने का अधिकार प्राप्त होगा और उसे बचाव के लिए न्यायालय में अभ्यावेदन करने का अधिकार होगा और अपने बचाव के लिए वकील से परामर्श भी ले सकता है।
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