भारत में सैद्धान्तिक
रूप से देखा जाय तो इस्लाम धर्म, अरब व्यापारियों के साथ अपने बाल्यकाल में
ही आ गया था।
आठवीं तथा नवीं शताब्दियों में अरब लोग बड़ी संख्या में दक्षिणी भारत
के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों पर व्यापारिक गतिविधियों के लिए बस गये थे। यहीं पर प्रथम
बार हिन्दू तथा इस्लाम दोनों धर्मों का सम्पर्क हुआ और उन्होंने एक-दूसरे को प्रभावित
करना आरम्भ कर दिया।
उत्तर-भारत अरबों की सिन्ध विजय तक इस्लामी प्रभाव से मुक्त रहा
था।
डॉ0 ताराचन्द्र का तो यहां तक कहना है कि शंकराचार्य (788ई.-820ई.) पर भी इस्लामी
धर्मशास्त्र का प्रभाव पड़ा था,लेकिन इस विचार को मानने में यह कठिनाई
है कि यदि शंकराचार्य ने अपना अद्वैतवाद का सिद्धान्त इस्लाम से ग्रहण किया तो उन्होंने
मूर्तिपूजा का जिसका सभी मुसलमान कट्टर विरोध करते हैं, क्यों
खण्डन नहीं किया? अरब विजय का सांस्कृतिक क्षेत्र में बहुत
अधिक महत्व है।
इस काल में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति इतनी उन्नत थी कि उसके सामने
अरब निवासी बिल्कुल असभ्य तथा बर्बर कहे जा सकते थे।
अरबवासियों पर भारतीय सभ्यता तथा
संस्कृति का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अरबों ने भारतीय विद्वानों तथा साहित्यकारों का
बड़ा आदर किया। भरतीय दर्शन, ज्योतिष, चित्रकारी आदि कलाओं
के विशेषज्ञों ने भी मुसलमानों को बहुत आधिक प्रभावित किया।
भारतीयों के सम्पर्क में
आकर उन्होंने इन सभी विधाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
खलीफा हारून रशीद ने एक असाध्य
रोग की चिकित्सा करने के लिये भारत से एक वैद्य को भी बुलाया था जिसको अपने कार्य में
सफलता प्राप्त हुई और जो सुरक्षित स्वदेश वापिस लौट आया।
खलीफा हारून रशीद भारतीय साहित्य
का प्रेमी था तथा विद्वानों का आदर करता था। उसने अनेक भारतीय विद्वानों को अपनी राजधानी
बगदाद में आमन्त्रित किया और उनकी सहायता से विभिन्न शास्त्रों का अनुवाद अरबी भाषा
में करवाया,अरबवासियों के द्वारा इस ज्ञान का यूरोप में भी बहुत
अधिक प्रचार हुआ। अतः कहा जा सकता है कि अरबवासियों के प्रयत्न के कारण ही भारत की
सभ्यता तथा संस्कृति न केवल मध्य एशिया में ही फैली,वरन् यूरोप के विभिन्न
देशों को भी प्रभावित करने में सफल हुई।
खलीफा मंसूर के शासन काल में भी भारत के बहुत
से विद्वान बगदाद गये। अरब भारत से “ ब्रहम सिद्धान्त
तथा खण्ड खण्डयायक" नामक ग्रन्थ बगदाद ले गये, जहाँ उसका अरबी में
अनुवाद किया गया।
अरबवासियों को अंकों का ज्ञान भारतीयों से प्राप्त हुआ। इसी कारण
उन्होंने उसका नाम - हिन्दसा- रखा । इस प्रकार यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत मध्य
काल में अरबों के गुरू पद पर आसीन था।
हैवेल नामक इतिहासकार ने भी लिखा है कि
" भारतवर्ष ने अरबों को बहुत सी विद्याओं का ज्ञान करवाया तथा उनके साहित्य और
कला को विशेष रूप से प्रभावित किया। बाद में अरबवासियों का भारत से सम्पर्क कम होने
लगा और वे यूनान की सभ्यता तथा संस्कृति से प्रभावित हुए, किन्तु
आरम्भ में उनको सभ्यता की ओर अग्रसर करने का श्रेय भारत को ही प्राप्त है।
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