भारत में इस्लाम का आगमन | Arrival of Islam in India

भारत में इस्लाम का आगमन Arrival of Islam in India

भारत में इस्लाम का आगमन Arrival of Islam in India

भारत में अति प्राचीन काल से आर्थिक सम्पन्नता के कारण बड़े बड़े साम्राज्यों का उदय हुआ और प्राचीन काल से ही यहां वाह्य आक्रमण होते रहे । कुछ आक्रांता लूटपाट कर वापस लौट गये जबकि कुछ सदैव के लिए यहीं बस गये। इसी कारण कहा भी गया है कि कारवां आते रहे और हिन्दोस्तां बसता रहा

  • भारत की सुसम्पन्नता वाह्य आक्रमणकारियों के लिए संभवतः सबसे बड़ा लालच था। 
  • भारतीय इतिहास के प्राचीन काल खण्ड की समाप्ति के साथ ही हम देखते हैं कि विश्व में भी अनेक परिवर्तन हो रहे थे, विशेषकर 622 ई0 में अरब देश में इस्लाम धर्म का जन्म हुआ था। इस नवीन धर्म के नये- नये अनुनायियों में इस धर्म को विश्व के सभी स्थानों में प्रसारित करने का अत्यधिक जोश था।
  • इन्हीं परिस्थितियों में 712 ई में सिन्ध पर अरबों का आक्रमण हुआ और भारत में इस्लाम का आगमन हुआ। 


भारत में इस्लाम का आगमन के समय की स्थिति 

  • अरबों की सिन्ध विजय के बाद लगभग 300 वर्षों तक हमारा देश वाह्य आक्रमणों से मुक्त रहा । इस प्रकार दीर्घकाल तक विदेशी आक्रमणों के भय से मुक्त रहने के कारण हमारी जनता में यह भावना उत्पन्न हो गयी कि भारत भूमि को कोई विदेशी शक्ति आक्रान्त कर ही नहीं सकती। 
  • हमारे शासक सैनिक विषयों में असावधान हो गये थे। उन्होंने उत्तर - पश्चिमी सीमाओं की किलेबन्दी नहीं की और न उन पर्वतीय दर्रों की रक्षा का ही प्रबन्ध किया जिनमें होकर विदेशी सेनाऐं हमारे देश में प्रवेश कर सकती थी।
  • इसके अतिरिक्त हमारे लोगों ने उस नवीन रण नीति और युद्ध प्रणाली से भी सम्पर्क नहीं रखा जिसका विकास अन्य देशों में हो चुका था। 
  • आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी तक के युग में विचारों की संकीर्णता हमारे देशवासियों के चरित्र का एक अंग बन गयी थी। 
  • अलबरूनी नामक प्रसिद्ध विद्वान महमूद गजनवी के साथ हमारे देश में आया था । उसने यहाँ रहकर संस्कृत भाषाए हिन्दू धर्म तथा दर्शन का अध्ययन किया वह लिखता है कि हिन्दुओं की धारणा यह है कि हमारे जैसा देश, हमारी जैसी जाति, हमारे जैसा राजा, धर्म, ज्ञान और विज्ञान संसार में कहीं नहीं है। वह यह भी लिखता है कि हिन्दुओं के पूर्वज इतने संकीर्ण विचारों के न थे जितने इस युग के लोग थे। उसे यह देखकर भी बड़ा आश्चर्य हुआ था कि - हिन्दू लोग यह नहीं चाहते कि जो चीज एक बार अपवित्र हो चुकी है, उसे पुनः शुद्ध करके अपना लिया जाये।
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  • उस युग में हमारा देश शेष संसार से लगभग पूर्णतया पृथक था। यही कारण था कि हमारे देशवासियों का अन्य देशों से सम्पर्क टूट गया और वे वाह्य जगत में होने वाली राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटनाओं से भी सर्वथा अनभिज्ञ रहे अपने से भिन्न जातियों और संस्कृति से सम्पर्क में न रहने के कारण हमारी सभ्यता गतिहीन होकर सड़ने लगी थी।
  • वास्तविकता तो यह है कि इस युग में हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पतन के स्पष्ट लक्षण दिखायी देने लगे।
  • इस युग के संस्कृत साहित्य में हम उतनी सजीवता और सुरूचि नहीं पाते, जितनी कि पांचवीं और छठी शताब्दियों के साहित्य में। 
  • हमारी स्थापत्य, चित्रकला तथा अन्य ललित कलाओं पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। हमारा समाज गतिहीन हो गया, जातिबन्धन अधिक कठोर हो गये, स्त्रियों को वैधव्य के नियमों का कठोरता से पालन करने पर बाध्य किया गया । 
  • उच्च वर्णों में विधवा विवाह की प्रथा पूर्णतया समाप्त हो गयी और खानपान के सम्बन्ध में भी अनेक प्रतिबन्धों का पता चलता है।
  • अछूतों को नगर से बाहर रहने के लिए बाध्य किये जाने की सूचनाऐं भी मिलती हैं । इन्हीं परिस्थितियों में भारत में इस्लाम का आगमन हुआ।

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