केन्द्र राज्य वित्तीय सम्बन्ध Center State Financial Relations
केन्द्र राज्य वित्तीय सम्बन्ध Center State Financial Relations
- कोई भी सरकार बगैर धन के सुचारू रूप से नहीं चल सकती है एक परिसंघीय संविधान के अन्तर्गत राज्यों की स्वतंत्रता आवश्यक होती है। यह स्वतंत्रता तभी रह सकती है जब राज्यों के लिए पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था हो। प्रायः सभी परिसंघों में वित्तीय व्यवस्था की राज्यों पर नियंत्रण रखने के लिए भी प्रयाग किया जाता है।
- इसलिए मुख्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 263-293 तक वित्तीय सम्बन्धों पर विस्तृत चर्चा की गई है।
अनुच्छेद 265
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 265 में यह व्यवस्था है कि विधि के प्राधिकार के बिना कोई कर न लगाया जाएगा और न वसूल किया जाएगा।
- अनुच्छेद 265 के उपबन्ध प्रत्यक्ष तथ अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करो पर लागू होते हैं।
अनुच्छेद 266
- अनुच्छेद 266 के अनुसार भारत सरकार प्राप्त सभी राजस्व उधार लिया गया धन तथा उद्योग के प्रतिदान में प्राप्त सभी धनों की एक संचित निधि बनेगी जो भारत की संचित निधि ; के नाम से ज्ञात होगी और इसी प्रकार राज्य सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व उधार लिया धन तथा उधार के प्रतिदान में प्राप्त धनों की एक संचित निधि बनेगी जो राज्य की संचित निधि ; के नाम से ज्ञात होगी। भारत सरकार या राज्य सरकार द्वारा प्राप्त अन्य सभी सार्वजनिक धन लोक लेखे ; में जमा किया जाएगा।
अनुच्छेद 267
- इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 267 में भारत व राज्यों के लिये आकस्मिकता निधि की व्यवस्था है जो अपूर्व दृष्ट ; व्यय के लिए क्रमश राष्ट्रपति व राज्यपालों के हाथ में रखी जाएगी।
संघ और राज्यों की बीच राजस्व वितरण
Revenue distribution between union and states
भारतीय संघ में संघ और राज्यों के बीच राजस्व
वितरण की निम्नलिखित पद्धति अपनाई गई है।
संघ द्वारा आरोपित किन्तु राज्यों
द्वारा संगहित तथा विनियोजित शुल्क
- अनुच्छेद 268 में यह उपलब्ध है कि ऐसे मुद्रा शुल्क औषधीय और प्रसाधनीय पर ऐसे उत्पादन शुल्क जो संघ सूची में वर्णित है, भारत सरकार द्वारा आरोपित किये जायेगे परन्तु संघ राज्य क्षेत्र के भीतर उदग्रहीत ; किए जाने वाले शुल्क भारत सरकार द्वारा और राज्यों के बीच उदग्रहीत शुल्क राज्य सरकारों द्वारा संग्रहीत किये जाएंगे। जो शुल्क राज्यों के भीतर उदग्रहीत किए जाएंगे वे भारत की संचित निधि में जमा न होकर उस राज्य की संचित निधि में जमा किए जाएगें।
संघ द्वारा उदग्रहीत तथा संग्रहीत
परन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर
- कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कर कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, रेल समुद्र तथा वायु द्वारा ले जाने वाले माल तथ यात्रियों पर सीमान्त कर रेल भाड़ों तथा वस्तु भाड़ों पर कर, शेयर बाजार तथा सट्टा बाजार के आदान प्रदान पर मुद्राक शुल्क के अतिरिक्त कर, समाचार पत्रों के क्रय विक्रय तथा उनमें प्रकाशित किए गए विज्ञापनों पर और समाचार पत्रों से अन्य अन्नर्तराष्ट्रीय व्यापार तथा वाणिज्य से माल के क्रय विक्रय पर कर।
संघ द्वारा उदग्रहीत तथा संग्रहीत
किन्तु संघ और राज्यों के बीच वितरित कर
- कुछ कर संघ द्वारा आरोपित तथा संग्रहीत किए जाते हैं किन्तु उनका विभाजन संघ तथा राज्यों के बीच होता है। आयकर का विभाजन संघीय भू भागों के लिए निर्धारित निधि तथा संघीय खर्च को काटकर शेष राशि में से किया जाता है। आयकर के अतिरिक्त दवा तथा शौक श्रृंगार सम्बन्धी जीजों के अतिरिक्त अन्य चीजों पर लगाया गया उत्पान शुल्क इसके अन्तर्गत आता है।
संघ के प्रयोजन के लिए कर
अनुच्छेद 271
- अनुच्छेद 271 में यह उपबन्ध है कि संसद 269 और 270 में निर्दिष्ट शुल्कों या करों की अधिभार द्वारा वृद्धि कर सकती है। अधिभार से हुई सारी आय भारत की संचित निधि का भाग होगी। संघ के प्रमुख राजस्व स्रोत इस प्रकार हैं निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, विदेशी ऋण, रिजर्व बैंक, शेयर बाजार आदि।
राज्यों के प्रायोजन के लिए कर
अनुच्छेद 276
अनुच्छेद 276 के अन्तर्गत राज्यों को वृत्तियों
व्यापारों अजीविकाओं नौकरियों पर कर लगाने का प्राधिकार दिया गया है। इससे प्राप्त
आय राज्य या उसकी नगर पालिकाओं, जिला वार्डों या सथानीय बोरड़ों के हितों में प्रयोग की जाएगी।
राज्यों के मुख्य राजस्व स्रोत हैं- प्रति व्यक्ति कर, कृषि भूमि पर कर सम्पदा शुल्क, भूमि और भवनों पर कर, पशुओं और नौकाओं पर कर, बिजली के उपयोग तथा विक्रय पर कर
वाहनों पर चुंगी कर आदि।
राजस्व में सहायक अनुदान
- अनुच्छेद 273 के तहत पटसन व उससे बनी वस्तुओं के निर्यात से जो शुल्क प्राप्त होता है उसमें से अनुदान पैदा करने वाले राज्यों- बंगाल, उड़ीसा, बिहार व असम को दे दिया जाता है । इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 275 में उन राज्यों के किए अनुदान की व्यवस्था है जिनके बारे में संसद यह निर्धारित करे कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है।
ऋण लेने सम्बन्धी उपबन्ध
- संविधान केन्द्र को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह अपनी संपत्ति निधि की साख पर देशवासियों व विदेशी सरकारों से ऋण ले सके।
- ऋण लेने का अधिकार राज्यों को भी प्राप्त है परन्तु वे विदेशी से उधान नहीं ले सकते । यदि राज्य सरकार पर केन्द्र सरकार का कोई कर्ज बाकी है तो राज्य सरकार अन्य र की अनुमति से ही ले सकती है।
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