न्यायिक समीक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान |Constitutional Provisions for Judicial Review
न्यायिक समीक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान
Constitutional Provisions for Judicial Review
हालांकि संविधान में 'न्यायिक समीक्षा' शब्द का उपयोग कहीं नहीं हुआ है, तब भी कतिपय अनुच्छेदों के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान करते हैं।
'न्यायिक समीक्षा के प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- अनुच्छेद 13 घोषणा करता है कि सभी कानून मूल अधिकारों की संगति में रहे हैं या उनका अपकर्ष करते हैं, निरस्त माने जाएंगे।
- अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाने के नागरिकों के अधिकार की गारंटी करता है, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय को शक्ति देता है कि वह इसके लिए निदेश अथवा आदेश अथवा न्यायादेश जारी करे।
- अनुच्छेद 131 केन्द्र-राज्य तथा अन्तर-राज्य विवादों के लिए सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार निश्चित करता है।
- अनुच्छेद 132 संवैधानिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 133 सिविल मामलों में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार सुनिश्चित करता है ।
- अनुच्छेद 134 आपराधिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 134-ए उच्च न्यायालयों से सर्वोच्च न्यायालय को अपील के लिए प्रमाणपत्र (Certificate for appeal) से सम्बन्धित है।'
- अनुच्छेद 135 सर्वोच्च न्यायालय को किसी संविधान पूर्व के कानून के अंतर्गत संघीय न्यायालय (Federal Court) के क्षेत्राधिकार एवं शक्ति का प्रयोग करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को किसी न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण से अपील के लिए विशेष अवकाश प्रदान करने के लिए अधिकृत करता है, सैन्य न्यायाधिकरण एवं कोर्ट मार्शल को छोड़कर।
- अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को कानून सम्बन्धी किसी प्रश्न के तथ्य पर अथवा किसी संविधान- पूर्व के वैधिक (कानूनी) मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगने के लिए अधिकृत करता है।
- अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों को लागू करने या किसी अन्य प्रयोजन से निदेश, आदेश या रिट जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 227 सर्वोच्च न्यायालयों को अपने- अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में सभी न्यायालयों एवं न्यायाधिकरणों
- (सैन्य अदालतों एवं न्यायाधिकारों को छोड़कर) के अधीक्षण की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 245 संसद एवं राज्य विधायिकाओं द्वारा निर्मित कानूनों की क्षेत्रीय सीमा तय करने से सम्बन्धित है।
- अनुच्छेद 246 संसद एवं राज्य विधायिकाओं द्वारा निर्मित कानूनों की विषय-वस्तु सम्बन्धित है (अर्थात् संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची)।
- अनुच्छेद 251 एवं 254 केन्द्रीय कानून एवं राज्य कानूनों के बीच टकराव की स्थिति में यह प्रावधान करता है कि केन्द्रीय कानून राज्य कानून के ऊपर बना रहेगा और राज्य कानून निरस्त हो जाएगा।
- अनुच्छेद 372 संविधान-पूर्व के कानूनों की निरंतरता से सम्बन्धित है।
न्यायिक समीक्षा का विषय क्षेत्र Subject area of judicial review
किसी विधायी अधिनियमन अथवा कार्यपालकीय आदेश की संवैधानिक वैधता को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय न में निम्न तीन आधारों पर चुनौती दी जा सकती है:
(क) यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है,
(ख) यह उस प्राधिकारी की सक्षमता से बाहर का है जिसने इसे बनाया है, तथा;
(ग)
यह संवैधानिक प्रावधानों के प्रतिकूल है ।
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यायिक समीक्षा
भारत में न्यायिक समीक्षा का विषय क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिकी की तुलना में सीमित है, जबकि अमेरिकी संविधान अपने किसी भी प्रावधान में न्यायिक समीक्षा के विषय में कुछ नहीं करता । ऐसा इसलिए कि अमेरिकी संविधान में 'कानून की समुचित प्रक्रिया' को 'कानून द्वारा स्थापित पद्धति' के ऊपर तरजीह मिलती है जो कि भारतीय संविधान में अंतर्निहित है । दोनों के बीच अंतर है-"कानून की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय को नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण में कहीं वृहद संभावना देती है। यह इन अधिकारों के उल्लंघनकारी कानूनों को निरस्त कर सकता है न केवल इस आकार पर कि उनके गैर- संवैधानिक होने के ठोस आधार मौजूद हैं, बल्कि उनके प्रक्रियागत आधार पर अविवेकपूर्ण होने के कारण भी हमारा सर्वोच्च न्यायालय एक कानून की संवैधानिकता का परीक्षण करते हुए, केवल एक ही प्रश्न की जांच करता है कि कानून वास्तव में सम्बन्धित प्राधिकारों के शक्ति के अंतर्गत है या नहीं। कानून के विवेकपूर्ण, होने, इसकी उपयुक्तता अथवा नीतिगत प्रभावों व से जुड़े प्रश्नों पर विचार नहीं होता।"
अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 'समुचित कानूनी प्रक्रिया' के नाम पर न्यायिक समीक्षा की विशद शक्ति के कारण आलोचक इसे 'थर्ड चैम्बर ऑफ दि लेजिस्लेचर' कहते हैं । यानी एक महाविधायिका, सामाजिक नीतियों आदि का एकमात्र निर्णायक/न्यायिक सर्वोच्चता का यह अमेरिकी सिद्धांत हमारी संवैधानिक प्रणाली में भी मान्यता पाता है, लेकिन सीमित रूप में। हम संसदीय सर्वोच्चता के ब्रिटिश सिद्धांत का भी पूरी तरह अनुसरण नहीं करते। हमारे देश में संसद की संप्रभुता के संबंध में कई सीमाएं हैं यथा लिखित संविधान, शक्तियों का संघीय बंटवारा, मौलिक अधिकार और न्यायिक समीक्षा। वास्तव में भारत में दोनों अर्थात् अमेरिकी न्यायिक सर्वोच्चता सिद्धांत और ब्रिटिश संसदीय सिद्धांत की सर्वोच्चता में का संमिश्रण है।
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