परिवार न्यायालय के बारे में जानकारी | Family Court GK in Hindi

परिवार न्यायालय के बारे में जानकारी 
कुटुंब न्यायालय के बारे में जानकारी 
परिवार न्यायालय के बारे में जानकारी | Family Court GK in Hindi



परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 विवाह एवं पारिवारिक मामलों से सम्बन्धित विवादों में मध्यस्थता व बातचीत को प्रोत्साहित करने एवं त्वरित समाधान सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया गया।

 

परिवार न्यायालय की स्थापना कारण

अलग परिवार न्यायालय की स्थापना के निम्न कारण हैं: 

  • कुछ महिला संगठन, अन्य संस्थाएं एवं नागरिकों के समय-समय पर पारिवारिक विवादों के हल के लिए परिवार न्यायालय के गठन पर जोर देते रहे हैं जहां बल समझौते एवं सामाजिक रूप से वांछनीय परिणामों पर दिया जाना चाहिए वहीं प्रक्रिया एवं साक्ष्य सम्बन्धी रूढ़ नियमों को दरकिनार कर दिया जाना चाहिए ।
  • विधि आयोग ने अपनी 59वीं रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि परिवार सम्बन्धी विवादों में न्यायालय को साधारण सिविल मामलों में अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि मुकदमा चलने के पहले ही समझौता हो जाए। नागरिक प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) को 1976 में संबोधित किया गया ताकि परिवार से सम्बन्धित मामलों में याचिका एवं अदालती कार्यवाही के लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाए।
  • हालांकि, अब भी न्यायालयों द्वारा पारिवारिक वादों के समाधान के लिए मध्यस्थता या समझौताकारी उपायों का यथेष्ट उपयोग नहीं किया जाता और इन मामलों को सामान्य सिविल मामलों की तरह ही देखा और बरता जाता है, जिसमें 'विरोधी - दृष्टिकोण' ही हावी रहता है। इसलिए जनहित में इस बात की आवश्यकता अनुभव की गई पारिवारिक विवादों के समाधान के लिए परिवार न्यायालय स्थापित किए जाएं। 

परिवार न्यायालय के मुख्य उद्देश्य

इस प्रकार परिवार न्यायालय स्थापित करने के मुख्य उद्देश्य और कारण इस प्रकार हैं

 

  • एक विशेषीकृत न्यायालय का सृजन करना जो केवल पारिवारिक मामले ही देखेगा जिससे कि ऐसे न्यायालय को ऐसे ही मामलों में त्वरित निष्पादन की आवश्यक विशेषज्ञता प्राप्त हो जाए। इस प्रकार विशेषज्ञता तथा त्वरित निस्तारण-ये दो प्रमुख कारक हैं ऐसे न्यायालयों को स्थापित करने के। 
  • परिवार से सम्बन्धित विवादों के लिए समझौते की प्रक्रिया को संस्थापित करना 
  • यह कम खर्चीला हल प्रस्तुत करना, तथा
  • अदालती कार्यवाही के दौरान लचीलापन एवं अनौपचारिक वातावरण बनाए रखना।

 

पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की प्रमुख विशेषताएं 

निम्नवत हैं:

 

  • यह राज्य सरकारों द्वारा उच्च न्यायालयों की सहमति से परिवार न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है। 
  • यह राज्य सरकारों के लिए एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक नगर में एक परिवार न्यायालय की स्थापना को बाध्यकारी बनाता है। 
  • यह राज्य सरकारों को अन्य क्षेत्रों में भी परिवार न्यायालय स्थापित करने में समर्थ बनाता है।


परिवार न्यायालय के क्षेत्राधिकार

यह परिवार न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत विशेष रूप केवल निम्नलिखित मामलों का प्रावधान करता है:

 

(i) विवाह सम्बन्धी राहत, विवाह की अमान्यता, न्यायिक विलगाव, तलाक, वैवाहिक अधिकारों की बहाली या पुनः प्रतिष्ठापन अथवा विवाह की वैधता की घोषणा, अथवा 

(ii) दम्पत्ति या उनमें से एक की सम्पत्ति 

(iii) किसी व्यक्ति का औसतता ( legitimacy) सम्बन्धी 

(iv) किसी व्यक्ति का अभिभावक अथवा किसी नाबालिग का संरक्षक। 

(v) पत्नी, बच्चों एवं माता-पिता का गुजारा भत्ता। 


  • परिवार न्यायालय के लिए यह अनिवार्य है कि वह प्रथमतः किसी पारिवारिक विवाद में सम्बन्धित पक्षों के बीच मेल-मिलाप या समझौते का प्रयास करे। इस चरण में कार्यवाही बिल्कुल अनौपचारिक होगी और रूढ़ नियमों का पालन नहीं किया जाएगा। 
  • यह समझौता वाले चरण में समाज कल्याण एजेन्सियों तथा सलाहकारों के साथ ही चिकित्सकीय एवं कल्याण विशेषज्ञों के सहयोग का भी प्रावधान करता है।
  •  यह प्रावधान करता है कि परिवार न्यायालय के समक्ष उपस्थित किसी विवाद से सम्बन्धित पक्षों का एक अधिकार के रूप में, विधि अभ्यासी द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं किया जाएगा। हालांकि न्यायालय न्याय के हित में किसी विधि विशेषज्ञ की सहायता ले सकता है-न्यायमित्र के रूप में। 
  • यह साक्ष्य तथा प्रक्रिया सम्बन्धी नियमों को सरलीकृत बना देता है। 
  • यह केवल एक अपील का अधिकार देता है जो उच्च न्यायालय में ही की जा सकती है।

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