मौलिक अधिकार | मूल अधिकारों का वर्गीकरण | Fundamental Right in Hindi
मौलिक अधिकार Fundamental Right in Hindi
मौलिक अधिकार क्या होते हैं ?
“ अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ है जिनके अभाव में कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता।
- मौलिक अधिकार राज्य के विरूद्ध व्यक्ति के अधिकार है ये राज्य के लिए नकारात्मक आदेश है अर्थात राज्य के कुछ कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाते है मौलिक अधिकारों के अभाव में कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। मौलिक अधिकारों को नागरिक अधिकार के रूप में विश्व में सर्व प्रथम ब्रिटेन में दिया गया। इसे सन् 1215 में वहाँ के सम्राट सर जान द्वितीय ने दिया जिसे डंहदं बूंतजं (मैग्नाकार्टा) कहा जाता है भारत ने भी अपने मौलिक अधिकार को भारत का मैग्नाकार्टा बताया।
- 1689 में सम्राट ने कुछ और अधिकार प्रदान किया जिसे वहाँ का विल ऑफ राइट्स कहा गया। अमेरिका ने भी अपने मौलिक अधिकार को अमेरिका का विल ऑफ राइट्स कहा।
- चूंकि मौलिक अधिकार लिखित संविधान के अंग होते है और ब्रिटेन में अलिखित संविधान होने के कारण मौलिक अधिकार उस रूप में नहीं है जैसे भारत व अमेरिका को माना जाता है।
- विश्व में सर्वप्रथम लिखित संविधान अमेरिका का बना लेकिन अमेरिका के मूल संविधान में भी मौलिक अधिकारों का समावेश नहीं था। संविधान लागू होने के दो वर्ष बाद 1719 में प्रथम दस संविधान संसोधन के द्वारा अमेरिका में मौलिक अधिकारों को समाहित किया गया।
- अमेरिका में मौलिक अधिकार प्राकृतिक अधिकार के रुप में परिभाषित है। प्राकृतिक अधिकार के अर्न्तगत वे सभी अधिकार आ जाते है जो कि व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। ये असीमित है। अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय प्राकृतिक या नौसर्गिक न्याय के सिद्धान्त को अपनाकर मौलिक अधिकारों को घटा-बढ़ा सकता है । इसलिए अमेरिका की न्यायपलिका विश्व की सबसे शक्तिशाली न्यायपालिका के नाम से जानी जाती है।
भारतीय संविधान के अनु0 12 से लेकर 35 तक मौलिक अधिकार
- भारतीय संविधान के अनु0 12 से लेकर 35 तक में मौलिक अधिकारों का व्यापक विश्लेषण व विवेचन किया गया है।
- अनु 12 व 13 में मौलिक अधिकार की प्रकृति बतायी गयी है।
- अनु0 33 व 34 में मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाने की शक्ति संसद को प्रदान की गयी है।
- अनु0 35 के अन्तर्गत मौलिक अधिकार सम्बन्धी अनुच्छेदों को क्रियान्वित कराने के लिए संसद को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है।
- इस प्रकार अनु0 14 से लेकर अनु0 32 तक द्वारा जिसमें अनु० 31 को छोड़कर और 21(क) को जोड़कर अर्थात कुल 19 अनुच्छेदों के द्वारा मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है।
- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार नागरिकों और गैर नागरिकों दोनों को प्रदान किया गया है लेकिन अनु0 15, 16, 19, 29 और 30 विदेशियों को प्राप्त नहीं है।
- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार कृत्रिम अधिकार के रुप में परिभाषित है अतः ये सीमित है । संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को छोड़कर व्यक्ति अन्य किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकता और न्यायपालिका केवल उन्हीं मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है जो कि संविधान ने उन्हें प्रदान किया है।
मौलिक अधिकार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय
- मौलिक अधिकार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है, अर्थात न्यायालय द्वारा लागू कराए जा सकते है। मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में उच्च एवं उच्चतम न्यायालय दोनों को न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त है मौलिक अधिकारों के द्वारा भारत में राजनितिक लोकतन्त्र की स्थापना होती है। मौलिक अधिकार न तो निरंकुश है और न असीमित प्रत्येक अधिकारों पर विभिन्न आधारों पर युक्त-युक्त निर्बन्धन लगाया गया है। मौलिक अधिकारों को आपातकाल में राष्ट्रपति निलम्बित कर सकता है, और संसद कानून बनाकर उसे स्थगित कर सकती है।
मूल संविधान में मौलिक अधिकार
- मूल संविधान में कुल सात मौलिक
अधिकारों का समावेश था लेकिन 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम के द्वारा सम्पत्ति के
अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर कानूनी अधिकार बना दिया गया और इसे अनु0 300 (क)
में रखा गया है और कहा गया है कि संसद विधि बनाकर नागरिक को उसकी सम्पत्ति से
वंचित कर सकती है लेकिन इसके लिए सरकार को उचित मुआवजा देना होगा |
मूल अधिकारों का वर्गीकरण
वर्तमान में केवल 6 मौलिक अधिकार ही है
जो कि निम्नलिखित है:
1.समानता का अधिकार अनु0 14 - 18
2.स्वतन्त्रता का अधिकार अनु0 19-22
3.शोषण के विरूद्ध अधिकार अनु0 23-24
4.धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार अनु0 25-28
5.संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार अनु0 29-30
6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार
मौलिक अधिकारों का उद्देश्य
- मौलिक अधिकारों का मुख्य उद्देश्य राज्य और व्यक्ति के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।
- अनु0 12 इस अनु0 में राज्य शब्द की परिभाषा की गयी है इसमें कहा गया है कि यहाँ राज्य के अन्तर्गत भारत सरकार संद्य विधानमण्डल राज्यों की सरकारें राज्यों के विधानमण्डल तथा भारत राज्य क्षेत्र में भारत सरकार के अधीन सभी स्थानीय एवं अन्य अधिकारी (शक्ति वैधता) शामिल है। यहाँ स्थानीय के अन्तर्गत नगर निगम नगर पालिका जिला बोर्ड पंचायती राज्य व जिलापरिषद आदि आता है तथा प्राधिकारी के अन्तर्गत जीवन बीमा निगम लोक सेवा आयोग विश्वविद्यालय रेलवे बैंक आदि सभी शामिल है।
- कौन राज्य के अन्तर्गत आता है और कौन नहीं आता इसे न्यायपालिका तय करता है जब कोई व्यक्ति मौलिकअधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण में जाता है तो न्यायालय देखता है कि उसे राज्य माना जाए या न माना जाए। न्यायपालिका ने वर्तमान में वैष्णों देवी के मंदिर और अमरनाथ की गुफा को भी राज्य की संज्ञा प्रदान किया है।
उपर्युक्त सभी के विरूद्ध व्यक्तियों
को मौलिक अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 13
- अनु0 13 इससे मौलिक अधिकार के प्रकृति और स्वरूप की विवेचना की गयी है। इसमें निम्न प्रावधान है।
- अनु0 13 (1) संविधान लागू होने के पूर्व में बनायी गयी विधियाँ यदि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या अतिक्रमण करती है तो वे उल्लंघन की मात्रा तक शून्य हो जाएगीं।
- अनु0 13 (2) संविधान लागू होने के बाद भी राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या अतिक्रमण करती हो यदि राज्य ऐसी कोई विधि बनाएगा तो वह उल्लंघन की मात्रा तक शून्य हो जाएगी।
- अनु0 13 (3) यहाँ विधि शब्द के अर्न्तगत कानून उपकानून नियम उपनियम आदेश अध्यादेश संविदा, समझौता संन्धि करार आदि सभी शामिल है।
अनुच्छेद 13 में निम्नलिखित दो सिद्धान्त है:-
1.पृथक्करण का सिद्धान्त
- इसका अर्थ यह है कि यदि किसी कानून का कोई भाग मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या अतिक्रमण करता है तो केवल वही भाग शून्य घोषित होगा पूरा कानून नहीं लेकिन उस भाग के निकाल देने से पूरे कानून का कोई अर्थ नही रह जाता तो पूरा कानून ही शून्य घोषित हो जाएगा।
2.आच्छादन का सिद्धान्त
- यदि पूर्व में बनायी गयी विधियों मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या अतिक्रमण करती है तो वे नष्ट नहीं हो जाती बल्कि उन पर मौलिक अधिकारों की छाया आ जाती है यदि संसोधन करके उल्लंघन सक वाली विधियां ठीक कर ली जाएं तो वे पुनः जीवित हो जाती है। इसे चन्द्र ग्रहण का सिद्धान्त भी कहते है।
- अनु0 13 के अन्तर्गत नयायपालिका को मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त है।
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