ग्राम न्यायालय क्या होते हैं | Gram Nayayalya Kya Hote Hain

ग्राम न्यायालय के बारे में जानकारी 

Information about the village court

ग्राम न्यायालय के बारे में जानकारी  Information about the village court

ग्राम न्यायालय क्या होते हैं What are village courts

ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 को निचले स्तर पर पानी यानी तृणमूल स्तर पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना लिए अधि नियमित किया गया है। 


ग्राम न्यायालय स्थापना के उद्देश्य

  • इसका उद्देश्य नागरिकों को उनके द्वार पर न्याय सुलभ कराना और यह सुनिश्चित करना है कि सामाजिक आर्थिक अथवा अन्य अशक्ताओं के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए ।


ग्राम न्यायालय स्थापित करने के कारण

  • गरीबों एवं साधनहीनों तक न्याय सुलभ कराना अब तक विश्व स्तर पर एक गंभीर समस्या है, भले ही इसके लिए अनेक प्रकार के प्रयास किए गए और समितियां अमल में लाई गईं। हमारे देश में, संविधान का अनुच्छेद 39A राज्य को निदेशित करता है कि यह सुनिश्चित करे कि समानता के आधार पर देश में वैधानिक प्रणाली लाभ को बढ़ावा देती है। इस अनुच्छेद के अनुसार न्याय प्राप्त करने के अवसर से कोई नागरिक आर्थिक या अन्य आवश्यकताओं के कारण वंचित न रह जाए, इसके लिए राज्य है। नागरिकों के लिए पृथक कानूनी सहायता उपलब्ध कराएगा। 
  • हाल के वर्षों में सरकार ने न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए कई उपाय किए हैं पद्धतिमूलक कानूनों का सरलीकरण वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रियाओं को जैसे-दिवायन, समझौता तथा मध्यस्थता का समावेश, लोक अदालतों का संचालन आदि ऐसे ही उपाय हैं। 
  • भारत के विधि आयोग ने अपनी 114वीं रिपोर्ट जो ग्राम न्यायालय पद है, में ग्राम न्यायालयों की स्थापना का सुझाव दिया है जिससे कि सस्ता एवं समुचित न्याय आम नागरिक को सुलभ कराया जा सके। ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 मोटे तौर पर विधि आयोग की अनुशंसाओं पर आधारित है। 
  • गरीबों को उनके दरवाजे पर ही न्याय सुलभ हो, यह गरीब आदमी का सपना है। ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम न्यायालयों की स्थापना ग्रामीण लोगों को त्वरित, सस्ता व समुचित न्याय सुलभ हो सकेगा। 


ग्राम न्यायालय अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं

1. ग्राम न्यायालय प्रथम श्रेणी के दंडाधिकारी (Magistrate) की अदालत होगा तथा इसके न्यायाधि कारी (Presiding Officer) की नियुक्ति उच्च न्यायालय की सहमति से राज्य सरकार करेगी । 

2. ग्राम न्यायालय प्रत्येक पंचायत के लिए स्थापित किया जाएगा। जिले में मध्यवर्ती स्तर पर अथवा मध्यवर्ती स्तर पंचायतों के एक समूह के लिए अथवा जिस राज्य में मध्यवर्ती स्तर पर कोई पंचायत नहीं हो, वहां पंचायतों के सशक्त समूह के लिए। 

3. न्यायाधिकारी जो इन ग्राम न्यायालयों की अध्यक्षता करेंगे, अनिवार्य रूप से न्यायिक अधिकारी होंगे और उतना ही वेतन प्राप्त करेंगे और उन्हें उतनी ही शक्ति प्राप्त होंगी। जितनी कि एक प्रथम श्रेणी के दंडाधिकारी को, जो उच्च न्यायालयों के अधीन कार्य करते हैं। 

4. ग्राम न्यायालय एक चलंत न्यायालय (Mobile Court) होगा और यह फौजदारी और और दीवानी दोनों न्यायालयों की शक्ति का उपभोग करेगा। 

5. ग्राम न्यायालय की पीठ मध्यवर्ती पायत मुख्यालय पर स्थापित होगी, वे गांवों में जाएंगे, कार्य करेंगे और मामलों का निस्तारण करेंगे। 

6. ग्राम न्यायालय में आपराधिक मामलों, दीवानी मुकदमों, दावों एवं वादों पर अदालती कार्यवाही चलेगी जैसा कि अधिनियम की पहली एवं दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट है। 

7. केन्द्र एवं राज्य सरकारों को प्रथम एवं द्वित्तीय अनुसूची को संशोधित करने का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रदान किया गया है, उनकी अपनी विधायी शक्ति के अनुसार। 

8. ग्राम न्यायालय फौजदारी मुकदमों में संक्षितप प्रक्रिया का अनुसरण करेगा। 

9. ग्राम न्यायालय सिविल न्यायालय की शक्तियों का कुछ संशोधनों के साथ उपयोग करेगा और अधिनियम में उल्लिखित विशेष प्रक्रिया का अनुसरण करेगा। 

10. ग्राम न्यायालय उच्च पक्षों के बीच समझौता करने का हर संभव प्रयास करेगा ताकि विवाद का समाधान सौहार्द्रपूर्ण तरीके से हो जाए और इस उद्देश्य के लिए मध्यस्थों की भी नियुक्ति करेगा । 

11. ग्राम न्यायालय द्वारा पारित आदेश की हैसियत हुक्मरानों के बराबर होगी और इसके कार्यान्वयन के विलम्ब को रोकने के लिए ग्राम न्यायालय संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुसरण करेगा। 

12. ग्राम न्यायालय भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के प्रावधानिक साक्ष्य की नियमावली से बंधा नहीं होगा, बल्क यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से निर्देशित होगा, अगर उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा कोई नियम नहीं बनाया गया है। 

13. फौजदारी मामलों में अपील सत्राधीन न्यायालय में प्रस्तुत होगी जिसकी सुनवाई और निस्तारण अपील दाखिल होने के छह माह की अवधि के अंदर किया जाएगा। 

14. दीवानी मामलों में अपील जिला न्यायालय में दाखिल होगी जिसकी सुनवाई और निस्तारण अपील दाखिल होने के छह माह की अवधि के अंदर किया जाएगा।

15. एक आरोपित व्यक्ति अपराध दंड को कम या अधिक करने के लिए आवेदन दाखिल कर सकता है।


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