क्रिया की परिभाषा एवं प्रकार | क्रिया किसे कहते हैं | Hindi Grammar Kriya Ke Prakar
क्रिया की परिभाषा एवं प्रकार
क्रिया किसे कहते हैं
क्रिया की परिभाषा
जिस शब्द से किसी काम का करना या होना
प्रकट होता हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- पढ़ना, लिखना, खाना, आना इत्यादि। क्रिया विकारी शब्द है, जिसके रूप, लिंग,वचन और पुरुष के अनुसार बदल जाते हैं।
जैसे- राम पढ़ता है। (एक वचन, पुल्लिग) राधा पढ़ती है। (एक वचन, स्त्रीलिंग)
वे पढ़ते हैं। (बहुवचन)
धातु किसे कहते हैं
- धातु- क्रिया के मूल रूप को 'धातु' कहते हैं। यह रूप क्रिया के प्राय: सभी रूपों में पाया जाता है । जैसे- 'पढ़ना' क्रिया में 'पढ़' धातु है और 'ना' प्रत्यय है।
क्रिया के भेद
रचना की दृष्टि से क्रिया के सामान्यतः भेद हैं
1. सकर्मक क्रिया
2. अकर्मक क्रिया।
सकर्मक क्रिया ( Transitive Verb )
- 'सकर्मक क्रिया' उसे कहते हैं, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की सम्भावना हो, अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु, अर्थात् कर्म पर पड़े।
उदाहरणार्थ- राम आम खाता है। इस वाक्य में राम कर्ता है, 'खाने' के साथ उसका कर्तृरूप से सम्बन्ध है।
प्रश्न होता है, क्या खाता है? उत्तर है, 'आम'। इस तरह 'आम' का सीधा 'खाने' से सम्बन्ध है।
अतः, 'आम' कर्मकारक है। यहाँ राम के खाने का फल 'आम पर, अर्थात् कर्म पर पड़ता है। इसलिए, 'खाना क्रिया सकर्मक है।
अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
जिन क्रियाओं का व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे अकर्मक' कहलाती हैं। अकर्मक क्रियाओं का 'कर्म' नहीं होता, क्रिया का व्यापार और फल दूसरे पर न
पड़कर कर्ता पर पड़ता है। उदाहरण के लिए- रमेश सोता है। इसमें 'सोना' क्रिया अकर्मक है। 'रमेश' कर्ता है, 'सोने' की क्रिया उसी के द्वारा पूरी होती है। अतः सोने का फल भी उसी पर
पड़ता है। इसलिए, 'सोना' क्रिया अकर्मक है।
अकर्मक-सकर्मक में परिवर्तन
क्रियाओं का अकर्मक या सकर्मक होना उनके मूल रूप पर उतना निर्भर नहीं है, जितना कि उनके प्रयोग पर। अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक रूप में प्रयुक्त हो जाती हैं तथा सकर्मक क्रियाएँ अकर्मक रूप में।
जैसे-
पढ़ना (सकर्मक)- मोहन पुस्तक पढ़ रहा है ।
पढ़ना (अकर्मक)- मोहन! तुम्हें रोज पढ़ना चाहिए।
खेलना (अकर्मक)- बच्चे रोज खेलते हैं।
खेलना (सकर्मक)- बच्चे हॉकी खेलते हैं ।
द्विकर्मक क्रिया
- कुछ क्रियाएँ एक कर्मवाली और दो कर्मवाली होती हैं।
जैसे- सीता ने रोटी खाई। इस वाक्य में कर्म एक ही है 'रोटी'। किन्तु 'मैं राम को वेद पढ़ाता हूँ मैं दो कर्म है- 'राम को' और 'वेद'।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित भेद किये जा सकते हैं
1. संयुक्त क्रिया
2. नामधातु क्रिया
3. प्रेरणार्थक क्रिया
4. पूर्वकालिक क्रिया
1. संयुक्त क्रिया ( Compound Verb )
जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे श्याम रो चुका, रमेश रोने लगा, वह स्कूल पहुँच गया। इन वाक्यों में ‘रो चुका', 'रोने लगा' और 'पहुँच गया' संयुक्त क्रियाएँ हैं।
विधि और आज्ञा
को छोड़कर सभी क्रियापद दो या अधिक क्रियाओं के योग से बनते हैं, किन्तु संयुक्त क्रियाएँ इनसे भिन्न
हैं, क्योंकि जहाँ एक ओर साधारण क्रियापद 'हो', 'रो', 'सो', 'खा' इत्यादि धातुओं से बनते हैं, वहाँ दूसरी ओर संयुक्त क्रियाएँ 'होना', 'आना', जाना', 'रहना', 'रखना', 'उठाना', 'लेना', 'पाना', 'पड़ना', 'डालना', 'सकना', 'चुकना', 'लगना', 'करना', 'भेजना', 'चाहना' इत्यादि क्रियाओं के योग से बनती हैं।
2. नाम धातु क्रिया
- जो क्रिया संज्ञा या सर्वनाम में 'ना' प्रत्यय जोड़कर बनती है, नाम धातु क्रिया कहलाती है.
- जैसे- हाथ से हथियाना बात से बतियाना, बताना लज्जा से लजाना नरम से नरमाना इत्यादि।
3. प्रेरणार्थक क्रिया
- जिस क्रिया से यह जान पड़ता है कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को उस कार्य के करने के लिए प्रेरित करता है या किसी अन्य से कार्य को करवाता है, तो उस क्रिया को 'प्रेरणार्थक क्रिया' कहते हैं ।
- जैसे- मालिक नौकर से काम करवाता है .
- गिरना से गिराना और गिरवाना
- काटना से कटवाना आदि।
4. पूर्वकालिक क्रिया
- परिभाषा- जब कर्त्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है, तब पहली क्रिया 'पूर्वकालिक' कहलाती है। जैसे- उसने पूजा कर भोजन किया। इसमें 'पूजाकर पूर्वकालिक क्रिया है, क्योंकि इससे 'पूजा करने की क्रिया की समाप्ति के साथ ही भोजन करने की क्रिया का बोध होता है।
सहायक क्रिया
- सहायक क्रियाएँ मुख्य क्रिया के रूप में अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती हैं। कभी एक क्रिया और कभी एक से अधिक क्रियाएँ सहायक होती हैं। हिन्दी में इन क्रियाओं का व्यापक प्रयोग होता है । इनके हेर -फेर से क्रिया का काल बदल जाता है।
जैसे- वह खाता है। मैंने पढ़ा था। तुम जगे हुए थे। वे सुन रहे थे।
इनमें खाना, पढ़ना, जगना और सुनना मुख्य क्रियाएँ हैं; क्योंकि यहाँ क्रियाओं के अर्थ की प्रधानता है। शेष क्रियाएँ जैसे- है, था, हुए थे, रहे थे- सहायक क्रियाएँ हैं। ये मुख्य के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करती हैं ।
क्रियार्थक संज्ञा
- जब क्रिया संज्ञा की तरह व्यवहार में आया, तब वह 'क्रियार्थक संज्ञा' कहलाती है।
- जैसे- टहलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है; देश के लिए मरना कहीं अच्छा है।
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