केंद्र एवं राज्य संबंध |केन्द्र तथा राज्यों के विधायी सम्बन्ध |Kendra Rajya Relation

 केंद्र एवं राज्य संबंध Kendra Rajya Relation

केंद्र एवं राज्य संबंध Kendra Rajya Relation


परिसंघीय राज्य व्यवस्था

  • भारत एक परिसंघ है और उसका संविधान परिसंघीय है। परिसंघ में शासन के दो स्तर होते हैं। सभी शक्तियॉ इन स्तरों में विभाजित की जाती हैं। 
  • संघ, 28 राज्य और 09 संघ राज्य क्षेत्र सभी संविधान से शक्तियां प्राप्त करते हैं। राज्यों को शक्ति संघ नहीं प्रदान करता है। सबकी शक्ति का एक ही स्रोत है और वह है संविधान। संविधान में सभी शक्तियों का विभाजन संघ और राज्यों के मध्य किया गया है । 
  • प्रत्येक परिसंघीय राज्य व्यवस्था का यह चिन्ह और आवश्यक लक्षण है कि शक्तियों का विभाजन और वितरण राष्ट्रीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच किया जाता है जिन शक्तियों को इस प्रकार विभाजित किया जाता है वे साधारणतया चार प्रकार की होती है -

  • क- विधायी
  • ख- कार्य पालिका
  • ग- वित्तीय
  • घ- न्यायिका 

संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के सम्बन्धों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

1. केन्द्र तथा राज्यों के विधायी सम्बन्ध  अनुच्छेद 245-255

2.केन्द्र तथा राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्ध अनुच्छेद 256-263

3 .केन्द्र तथा राज्यों के वित्तीय सम्बन्ध अनुच्छेद 263-293

 

केन्द्र तथा राज्यों के विधायी सम्बन्ध 
Legislative Relations between the Center and the States

 संविधान के भाग 11 में

  • संविधान के अनुच्छेद 245-255 में केन्द्र राज्य के मध्य विधायी सम्बन्धों के बारे में बताया गया है। 
  • संघ व राज्यों के मध्य विधायी सम्बन्धों का संचालन उन तीन सूचियों के आधार पर होता है। जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची का नाम दिया गया है। इन सूचियों को सातवीं अनुसूची में रखा गया है

 

संविधान की संघ सूची Union list of constitution

  • इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के ऐसे विषयों को रखा गया है । जिसके सम्बन्ध में सम्पूर्ण देश में एक ही प्रकार की नीति का अनुकरण आवश्यक कहा जा सकता है। इस सूची के सभी विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार संघीय संसद को प्राप्त है।
  • इस सूची में कुल 97 विषय थे । 101 संविधान संसोधन 2016 के बाद इस सूची में 98 विषय हैं । जिनमें से कुछ प्रमुख है- रक्षा, वैदेशिक मामले, देशीकरण व नागरिकता, रेल, बन्दरगाह, हवाई मार्ग, डाक, तार, टेलीफोन व बेतार, मुद्रा निर्माण, बैंक, बीमा, खाने व खनिज आदि।

 

संविधान की राज्य सूची State list of constitution

  • इस सूची में साधारणतया वो विषय रखे गये हैं जो क्षेत्रीय महत्व के हैं। 
  • इस सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार सामन्यतया राज्यों की व्यवस्थापिकाओं को ही प्राप्त है।
  • इस सूची में प्रारम्भ में 66 विषय थे है, वर्तमान में राज्य सूची में 59 विषय हैं ।  जिनमें से कुछ प्रमुख है- पुलिस, न्याय, जेल, स्थानीय स्वशासन, सार्वजनिक व्यवस्था, कृषि, सिचाई आदि।

 
संविधान की समवर्ती सूची Concurrent list of constitution

  • इस सूची में सामान्यतया वो विषय रखे गये हैं जिनका महत्व क्षेत्रीय व संघीय दोनो ही दृष्टियों से है। 
  • इस सूची के विषयों पर संघ तथा राज्य दोनों को ही विधियां बनाने का अधिकार प्राप्त है । 
  • यदि समवर्ती सूची के विषय पर संघीय संसद तथा राज्य व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हो तो सामान्यतयः संघ का कानून मान्य होगा। 
  • इस सूची में प्रारम्भ में कुल 47 विषय थे । वर्तमान में समवर्ती सूची में 52 विषय हैं । जिनमें से कुछ प्रमख ये है- फौजदारी निवारक बिरोध, विवाह तथा विवाह विच्छेद दत्तक और उत्तराधिकार, कारखाने, श्रमिक संघ औद्योगिक विवाद, आर्थिक और समाजिक योजना और सामाजिक बीमा, पुर्नवास और पुरातत्व आदि।

 

अवशेष विषय: 

  • आट्रेलिया, स्विटजरलैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका में अवशेष विषयों के सम्बन्ध में कानून निर्माण का अधिकार इकाईयों को प्रदान किया गया है, लेकिन भारतीय संघ में कनाडा के संघ की भांति अवशेष विषयों के सम्बन्ध में कानून निर्माण की शक्ति संघीय संसद को प्रदान की गयी है। 

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि शक्तियों के बंटवारे में केन्द्र सरकार की तरफ झुकाव अधिक है।

Q -सिद्ध कीजिये शक्तियों के बंटवारे में केन्द्र सरकार की तरफ झुकाव अधिक है ?


राज्य सूची के विषय पर संसद की व्यवस्थापन की शक्ति

 

  • सामान्यतया संविधान द्वारा किये गये शक्ति विभाजन का उल्लंघन किसी भी सत्ता द्वारा, नहीं किया जा सकता। 
  • संसद द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर और किसी राज्य की व्यवस्थापिका द्वारा संघ सूची के किसी विषय पर निर्मित कानून अवैध होगा। लेकिन संसद के द्वारा कुछ विशेष परिस्थितियों के अन्तर्गत राष्ट्रीय हित तथा राष्ट्रीय एकता हेतु राज्य सूची के विषयों पर भी कानून का निर्माण किया जा सकता है ।


संसद को इस प्रकार की शक्ति प्रदान करने वाले संविधान के कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं।

केंद्र द्वारा राज्य के विषयों पर कानून बनाने हेतु प्रावधान 

राज्य सूची का विषय राष्ट्रीय महत्व का होने पर 

संविधान का अनुच्छेद 249

  • संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्य सभा अपने दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है कि राज्य सूची में उल्लिखित कोई विषय राष्ट्रीय महत्व का हो गया है तो संसद को उस विषय पर विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसकी मान्यता केवल एक वर्ष तक रहती है। राज्य सभा द्वारा पुनः प्रस्ताव स्वीकृत करने पर इसकी अवधि में एक वर्ष की वृद्धि और हो जाएगी।

 

2 संकट कालीन घोषणा होने पर

 अनुच्छेद 352 

  • अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत संकटकालीन घोषणा की स्थिति में राज्य की समस्त विधायिनी शक्ति पर भारतीय संसद का अधिकार हो जाता है।
  • अनुच्छेद 250 इस घोषणा की समाप्ति के छः माह बाद तक संसद द्वारा निर्मित कानून पूर्ववत चलते रहेंगे।

 

3 राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा इच्छा प्रकट करने पर

 

  • अनुच्छेद 252 के अनुसार यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल प्रस्ताव पास कर यह इच्छा व्यक्त करते हैं कि राज्य सूची के किन्हीं विषयों पर संसद द्वारा कानून निर्माण किया जाय, तो उन राज्यों के लिए उन विषयों पर अधिनियम बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त जाएगा। राज्यों के विधानमण्डल न तो इन्हें संशोधित कर सकते हैं और न ही इन्हें पूर्ण रूप से समाप्त कर सकते हैं।

 

4 विदेशी राज्यों से हुई संधियों के पालन हेतु

 अनुच्छेद 253

  • अनुच्छेद 253, यदि संघ सरकार ने विदेशी राज्यों से किसी प्रकार की संधि की है अथवा उनके सहयोग के आधार पर किसी नवीन योजना का निर्माण किया है तो इस सन्धि के पालन हेतु संघ सरकार को सम्पूर्ण भारत के सीमा क्षेत्र के अन्तर्गत पूर्णतया हस्तक्षेप और व्यवस्था करने का अधिकार होगा । इस प्रकार इस स्थिति में भी संसद को राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

 

5 राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था भंग होने पर

अनुच्छेद 356 

  • यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए या संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए तो संविधान के अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है इस स्थिति में राज्य की समस्त विधायी शक्तियां संसद द्वारा अथवा संसद के प्राधिकार के अधीन इस्तेमाल की जाती हैं इस अधिकार के तहत संसद किसी भी सूची के किसी भी विषय पर विधायन बना सकता है।

 

6 कुछ विषयों के प्रस्तावित करने और कुछ को अन्तिम स्वीकृत के लिए केन्द्र का अनुमोदन आवश्यक 

 

  • उपर्युक्त परिस्थितियों में तो संसद द्वारा राज्य सूची के विषयों पर कानूनों का निर्माण किया जा सकता है, इसके अतिरिक्त भी राज्य व्यवस्थापिकाओं की राज्य सूची के विषयों पर कानून निर्माण की शक्ति सीमित है। 

अनुच्छेद 304 

  • अनुच्छेद 304 ख के अनुसार कुछ विधेयक ऐसे होते हैं जिनके राज्य विधान मण्डल में प्रस्तावित किए जाने के पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृत की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए वे विधेयक जिनके द्वारा सार्वजनिक हित की दृष्टि से उस राज्य के अन्दर या उससे बाहर, वाणिज्य या मेल जोल पर कोई प्रतिबन्ध लगाए जाने हों।


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