मण्डल सिद्धान्त कौटिल्य का | Mandal Sidhant Kautilya
मण्डल सिद्धान्त कौटिल्य का Mandal Sidhant Kautilya
कौटिल्य का मण्डल सिद्धान्त Kautliya Ka Mandal Sidhant
- कौटिल्य ने अपनी पुस्तक में मण्डल सिद्धान्त का विस्तृत वर्णन किया है । कौटिल्य ने पड़ोसी राज्यों से संबंध संचालन को मंडल सिद्धान्त के नाम से तथा अन्य विदेशी राज्यों के साथ संबंध संचालन को षाडगुण्य नीति के नाम से अभिव्यक्त किया.
- कौटिल्य का मण्डल सिद्धान्त प्राचीन भारतीय ग्रन्थों पर आधारित है। यह राम राज्य में प्रचलित दिग्विजय सिद्धान्त'" पर आधारित है।
- अर्थः- मण्डल का अर्थ राज्यों का वृत्त" होता है। यह एक प्रकार की रणनीति है जिसमें विषय की आकांक्षा रखने वाला राज्य अपने चारों ओर के अन्य राज्यों को मण्डल मानता है। मण्डल सिद्धान्त एक बारह राज्यों के वृत्तों पर आधारित है। इसके अन्तर्गत मण्डल का केन्द्र ऐसा राज्य होता है जो पड़ोसी राज्य को जीतकर अपने में मिलाने का प्रत्यत्नशील रहता है। इसे वह विजिगीषु राजा कहता है।
कौटिल्य के मण्डल सिद्धान्त में राज्य
- मंडल में बारह राज्य होते है- विजिगीषु, अरि, मित्र, मित्रमित्र, अरि मित्रमित्र, पाष्ठिग्राहा, आक्रंद, पाण्णिग्रालसार, आंक्रादासार, मध्यम और उदासीन ।
- कौटिल्य के अनुसार विजिगीषु मंडल के मध्य रहता है। अरि, मित्र, अरिमित्र, मित्र मित्र और अरिमित्र येपाँचराज्य विजीगीषु के सामने तथा पाष्णिग्राह, आंक्रद, पाण्ण्णिग्राहासार और आंक्रादासार ये चार राज्य के पीछे रहते है। शेष दो राज्य मध्यम एवं उदासीन बगल में रहते हैं।
कौटिल्य के मण्डल सिद्धान्त के बारह राज्यों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है:
मण्डल सिद्धान्त के राज्य
1.विजिगीषु राज्य
- अपने राज्य के विस्तार की आकांक्षा रखने वाला विजिगीषु कहलाता है। इसका स्थान मंडल के केन्द्र में होता है।
2.अरि
- विजिगीषु के सामने वाला राज्य जो उसका शत्रु होता है अरि कहलाता हे। 3.मित्रः- अरि के सामने का राजा मित्र कहलाता है। यह विजिगीषु का मित्र और अरि का शत्रु होता है।
4.अरिमित्र
- मित्र के सामने वाला राज्य अरिमित्र कहलाता है। यह अरि का मित्र और विजिगीषु का शत्रु होता है।
5.मित्रमित्र
- अरिमित्र के सामने वाला राज्य मित्रमित्र कहलाता है। मित्र राज्य का मित्र होता है। यही कारण है कि वह विजिगीषु राज्य के साथ भी उसकी मित्रता होती है।
6.अरि मित्रमित्र
- मित्रत्रमित्र के सामने वाला राज्य अरि मित्र-मित्र कहलाता है क्योंकि वह अरिमित्र राज्य का मित्र होता है। अतः अरि राज्य के साथ उसका संबंध मित्रता का रहता है।
7.पाष्ण्णिग्राह (पीठ का शत्रु)
- विजिगीषु के पीछे जो राज्य रहता है वह पाष्ण्णिग्राह कहलाता है। अरि की तरह वह भी विजिगीषु का शत्रु होता है।
8.आंक्रद
- पाणिग्राह के पीछे जो राज्य होता है उसे आंक्रद कहते है वह विजिगीषु का मित्र होता है।
9.पाणिग्राहासार
- आंक्राद के पीछे वाला राज्य का पाण्ण्णिग्राहासार कहलाता है। यह पाण्णिग्राह का मित्र होता है।
10.आंक्रादासार
- पाण्ण्णिग्राहासार के पीछे वाला राज्य आंक्रदासार कहताता है । यह आंक्राद का मित्र होता है।
11.मध्यम
- मध्यम ऐसा राज्य है जिसका प्रदेश विजिगीषु और परिराज्य दोनों की सीमा से लगा होता है। दोनों से शक्तिशाली होने के कारण यह दोनों की सहायता भी करता है। जरूरत पड़ने पर यह दोनों से अलग-अलग मुकाबला भी करता है।
12.उदासीन
- राजा का प्रदेश विजिगीषु, अरि, मध्यम इन तीनों से परे पर होता है। यह शक्तिशाली होने के कारण तीनों से मुकाबला भी कर सकता है।
उक्त बारह राज्यों का समूह राज्य मण्डल कहलाता है। कौटिल्य ने इस सिद्धान्त के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि भौगोलिक आधार पर कौन मित्र तथा शत्र हो सकते है।
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