न्यायिक सक्रियता का अर्थ | न्यायिक सक्रियता की अवधारणा |Meaning of Judicial activism

न्यायिक सक्रियता का अर्थ 
 न्यायिक सक्रियता की अवधारणा
Meaning of Judicial activism

न्यायिक सक्रियता का अर्थ   न्यायिक सक्रियता की अवधारणा Meaning of Judicial activism


न्यायिक सक्रियता की अवधारणा Concept of Judicial activism

  • न्यायिक सक्रियता की अवधारणा अमेरिका में पैदा हुई और विकसित हुई। यह शब्दावली पहली बार 1947 में आर्थर शेल्सिंगर जूनियर (Arthur Schlesinger Jr.), एक अमेरिकी इतिहासकार एवं शिक्षा प्रदायक' द्वारा प्रयुक्त हुई. 


भारत में न्यायिक सक्रियता  Judicial activism in India

  • भारत में न्यायिक सक्रियता का सिद्धांत 1970 के दशक के मध्य में आया। न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर, न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती, न्यायमूर्ति ओ. चिन्नप्पा रेड्डी तथा न्यायमूर्ति डी.ए. देसाई ने देश में न्यायिक सक्रियता की नींव रखी. 

 

न्यायिक सक्रियता का अर्थ Meaning of Judicial activism

 

  • न्यायिक सक्रियता का आशय नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए तथा समाज में न्याय को बढ़ावा देने के लिए न्यायपालिका द्वारा आगे बढ़कर भूमिका लेने से है। 

दूसरे शब्दों में 

  • इसका अर्थ है न्यायपालिका द्वारा सरकार के अन्य दो अंगों (विधायिका एवं कार्यपालिका) को अपने संवैधानिक दायित्वों के पालन के लिए बाध्य करना।

 

  • न्यायिक सक्रियता को 'न्यायिक गतिशीलता' भी कहते हैं। यह 'न्यायिक संयम' के बिल्कुल विपरीत है जिसका मतलब है न्यायपालिका द्वारा आत्म-नियंत्रण बनाए रखना। 

न्यायिक सक्रियता की परिभाषा-01 

 

  • "न्यायिक सक्रियता न्यायिक शक्ति के उपयोग का एक तरीका है जो कि न्यायाधीश को प्रेरित करता है कि वह सामान्य रुप से व्यवहरत सख्त न्यायिक प्रक्रियाओं एवं पूर्व नियमों को प्रगतिशील एवं नयी सामाजिक नीतियों के पक्ष में त्याग दे। इसमें ऐसे निर्णय देखने में आते हैं जिसमें सामाजिक अभियंत्रण अथवा इंजीनियरिंग होता है, अनेक अवसरों पर विधायिका एवं कार्यपालिका संबंधी मामलों में दखलंदाजी भी होती है।"

 

न्यायिक सक्रियता की परिभाषा-02

  • "न्यायिक सक्रियता न्यायपालिका का वह चलन है जिसमें वैयक्तिक अधिकारों को ऐसे निर्णयों द्वारा संरक्षित या विस्तारित किया जाता है जो कि पूर्व नियमों या परिपाटियों से अलग हटकर होते हैं, अथवा वांछित या करणीय संवैधानिक या विधायी इरादे से स्वतंत्र अथवा उसके . विरुद्ध हों।

 

  • न्यायिक सक्रियता की अवधारणा जनहित याचिका की अवधारणा से निकटता से जुड़ी है। यह सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक सक्रियता है जिसके कारण जनहित याचिकाओं की संख्या बड़ी है। दूसरे शब्दों में पीआईएल न्यायिक सक्रियता का परिणाम है। वास्तव में पीआईएल या जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का सबसे लोकप्रिय स्वरूप है।

 

न्यायिक सक्रियता का औचित्य Justification for judicial activism

 

डॉ. बी.एल. वधेरा के अनुसार न्यायिक सक्रियता के कारण निम्नलिखित है:

 

  • (i) उत्तरदायी सरकार उस समय लगभग ध्वस्त हो जाती है जब सरकार की शाखाएँ विधायिका एवं कार्यपालिका अपने-अपने कार्यों का निष्पादन नहीं कर पातीं। परिणामतः तो संविधान तथा लोकतंत्र में नागरिकों का भरोसा टूटता है।

 

  • (ii) नागरिक अपने अधिकारों एवं आजादी के लिए न्यायपालिका की ओर देखते हैं। परिणामतः न्यायपालिका पर पीड़ित जनता को आगे बढ़कर मदद पहुँचाने का भारी दबाव बनता है।

 

  • (ii) न्यायिक उत्साह अर्थात् न्यायाधीश भी बदलते समय के समाज सुधार में भागीदार बनना चाहते हैं। इससे जनहित याचिकाओं को हस्तक्षेप के अधिकार (Locus Standi ) के तहत प्रोत्साहन मिलता है।

 

  • (iv) विधायी निर्वात, अर्थात ऐसे कई क्षेत्र हो सकते हैं जहाँ विधानों का अभाव है। इसीलिए न्याययलय पर ही जिम्मेदारी आ जाती है कि वह परिवर्तित सामाजिक जरुरतों के हिसाब से न्यायालयीय विधायन का कार्य करे।

 

  • (v) भारत के संविधान में स्वयं ऐसे कुछ प्रावधान हैं जिनमें न्यायपालिका को विधायन यानी कानून बनाने की गुंजाइश है, या एक सक्रिय भूमिका अपनाने का मौका मिलता है ।

 

इसी प्रकार सुभाष कश्यप ने ऐसी कुछ आकस्मिकताओं की चर्चा की है जब न्यायपालिका अपने सामान्य क्षेत्राधिकार को लाँघकर ऐसे क्षेत्र में दखल दे जो कि विधायिका या कार्यपालिका को हो सकता है । '

 

(i) जब विधायिका अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने में विफल हो गई हो। 

(ii) एक 'हंग' (hung) विधायिका, जिसमें किसी दल को बहुमत ने मिला हो, की स्थिति में जब सरकार कमजोर व असुरक्षित हो और ऐसे निर्णय लेने में अक्षम हो जिससे कोई जाति या समुदाय या अन्य समूह अप्रसन्न हो सकता है। 

(ii) सत्तासीन दल सत्ता खोने के भय से ईमानदार और कड़ा निर्णय लेने से डर सकता है और इसी कारण से समय लगने और निर्णय लेने में देरी करने अथवा न्यायालयों पर कठोर निर्णय लेने संबंधी दुर्भावना डालने के लिए जन मुद्दों को संदर्भित कर दिया जाता है । 

(iv) जहाँ कि विधायिका और कार्यपालिका नागरिकों के मूल अधिकारों जैसे - गरिमापूर्ण जीवन, स्वास्थ्यकर परिवेश का संरक्षण करने में विफल हो, अथवा कानून एवं प्रशासन को एक ईमानदार, कार्यकुशल एवं न्यायपूर्ण व्यवस्था देने में विफल हों। 

(v) जहाँ कि विधि के न्यायालय का मजबूत, सर्वसत्तावादी संसदीय दलवाली सरकार द्वारा गलत नीयत या उद्देश्यों से दुरुपयोग हो रहा हो जैसा कि आपातकाल के दौरान हुआ था। 

(vi) कभी-कभी न्यायालय जाने-अनजाने स्वयं मानवीय प्रवृत्तियों, लोकलुभावनवाद, प्रचार, मीडिया की सुर्खियाँ बटोरने आदि का शिकार हो जाता है ।

 

डॉ. वंदना के अनुसार न्यायिक सक्रियता की अवधारणा

 

(i) प्रशासनिक प्रक्रिया में सुनवाई के अधिकार का विस्तार ।

(ii) बिना किसी सीमा के अत्यधिक प्रतिनिधिमंडल। 

(iii) विवेकाधीन शाक्तियों को नियंत्रित करने के लिए न्यायिक नियंत्रण का विस्तार।

(iv) प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए न्यायिक समीक्षा का विस्तार। 

(v) पारदर्शी सरकार (Open Government) के बढ़ावा देना। 

(vi) अवमानना शक्ति का अंधाधुध प्रयोग। 

(vii) अवास्तविकता के विरूद्ध न्यायिकता का प्रयोग। 

(viii)आर्थिक, सामाजिक एवं शैतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्याख्या के मानक नियमों का विस्तार । 

(ix) आदेश पास करना जो कि वास्तव में असाध्य हैं।


Also Read....






No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.