महासागर प्रक्षेण प्रणालियां | इंडोमोड परियोजना | Ocean Launch & Information Services

 

महासागर प्रक्षेपण एवं सूचना सेवाएं 
Ocean Launch & Information Services
महासागर प्रक्षेपण एवं सूचना सेवाएं  Ocean Launch & Information Services


  • जलवायु में बदलाव की जानकारी किसी भी देश के लिए लाभदायक हो सकती है । है। महासागरों के अध्ययन से यह संभव हो सका ।
  • जलवायु परिवर्तन में महासागरों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं । 
  • इस महत्व को जानते हुए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा सूचना सेवाओं का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 
  • इन सेवाओं के चार महत्त्वपूर्ण अंग-महासागर प्रेक्षण प्रणालीमहासागर सूचना सेवाएंमहासागर माडलिंग एवं गतिकी तथा उपग्रह तटीय महासागर विज्ञान अनुसंधान है।

 

महासागर प्रक्षेण प्रणालियां Ocean projection systems

  • महासागर प्रेक्षण प्रणालियों का संचालन अंतर्सरकारी महासागर विज्ञान आयोग की वैश्विक महासागर प्रेक्षण प्रणाली के सहयोग से चलाया जा रहा है । 
  • इसके अंतर्गत राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय डेटा ब्वाय कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय समुद्रोंउथले और गहरे दोनों ही में 30 लंगर डाले ब्वाय तैनात किये गये हैं ताकि भारतीय मौसम विभागतटरक्षकों की वास्तविक समय के आधार पर जरूरतों को पूरा किया जा सके और अनेक प्रकार के उपयोगों जैसे बंदरगाह गतिविधियोंजहाज पत्तन / समुद्र के भीतर निर्माण विकासउपग्रहीय आंकड़ों की पुष्टिपर्यावरण निगरानीजलवायु अध्ययन आदि के लिए आंकड़े प्रदान कर सके।
  • अतिरिक्त ब्वायों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अब देश में ही डेटा ब्वाय तैयार किए जा रहे हैं।

 

आर्गो परियोजना (Indian ARGO Project) :

  • आर्गो एक ऐसी क्रांतिकारी संकल्पना है जो समुद्र के ऊपर 2000 मीटर से तापमान और लवणता के मापन के लिए वास्तविक समय की क्षमता को बढ़ाती है। 
  • वर्ष 2004 और 2005 की अवधि के लिए अरब सागर के प्रमुख चक्रवाती क्षेत्रों तथा मासिक परिसंचरण की व्याख्या करने के लिए 'आर्गो' डाटा का प्रयोग करके 'एम. डी. टी.' (MDT- Mean Dynamic Topography) के लिए नई पद्धति विकसित की गई है। 
  • इस परियोजना से ऊपरी महासागर की संरचना और गति विज्ञान को समझने में काफी मदद मिल रही है। 
  • भारत ने इस क्षेत्र में नेतृत्व संभाल लिया है और पूरे हिंद महासागर में आर्गों की तैनाती के लिए यह जिम्मेदार है। एक क्षेत्रीय आर्गो डेटा सेंटर आई.एन.सी.ओ.आई.एस. हैदराबाद में भी गठित किया गया है।  जहां से आर्गो आंकड़ों को वितरित और सुरक्षित रखा जा सकता है। 
  • वर्ष 2007-08 के दौरान फ्लोट्स के लिए प्रसंस्करित आंकड़ों के वितरण के अलावा आर्गो  आंकड़ों के उत्पादों का एक सेट आईएनसीओआईएस हैदराबाद की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है। 
  • भारत अंतर्सरकारी महासागर विज्ञान आयोग का उपाध्यक्ष तथा महासागर अनुसंधान पर अंतर्राष्ट्रीय संस्था 10G00S का चयनित अध्यक्ष है। इस संस्था में 13 देशों की सदस्यता है। इसका सचिवालय हैदराबाद में है।

 

महासागर सूचना सेवाएं : Ocean Information Services

  • इस कार्यक्रम के तहत समुद्र सतह तापमान तथा संभावित मत्स्य क्षेत्र परामर्श, अपवैलिंग क्षेत्रों, मानचित्रों, भंवरों, क्लोरोफिल, निलंबित अवसाद भार आदि के बारे में लगभग वास्तविक आंकड़े तथा आंकड़ा उत्पाद और केंद्र सरकार, राज्यों निगमित क्षेत्र उद्योगों को एक ही स्थान पर परामर्श उपलब्ध कराया जाता है। महसागर विकास, अंतरिक्ष और मत्स्य विज्ञान के वैज्ञानिकों के पिछले पांच सालों के निरंतर प्रयासों के फलस्वरूप विश्वसनीय और उपयोगी सेवा उपलब्ध हो पाई है।

 

महासागर गतिकी तथा मॉडलिंग एवं उपग्रह तटीय महासागरीय अनुसंधान : 

  • इसके अंतर्गत समुद्र विज्ञान और मौसम विज्ञान के आंकड़े हासिल करने के लिए विभिन्न स्थानों पर ब्वाय तैनात करने, करंट मीटर एरै लगाने तथा एक्पेंडेबल बेथीथ्मोग्राफ (एक्सबीटी) सर्वेक्षण की योजना है। इसके अंतर्गत समुचित डाटा तैयार करने के लिए इंडोमोड परियोजना चलाई गयी है।

 

इंडोमोड परियोजना : INDOMOD-Indian Ocean Dy namics & Modelling परियोजना-

  • 9वीं योजना के दौरान इंडोमोड परियोजना में समुद्री वायुमण्डल मॉडलिंग में राष्ट्रीय क्षमता प्राप्त करने के प्रति एक महत्त्वपूर्ण पहल की है और 10वीं योजना में, इंडोमोड परियोजना में मॉडलिंग प्रयासों का एक नया चरण आरंभ किया गया है जिसमें समुद्री पूर्वानुमान एवं जलवायु पूर्वानुमान में सक्षम होने की दिशा में, मॉडलिंग, डाटा परिणाम एवं वैधीकरण (Data Assimilation & Validation ) में सहवर्ती प्रयासों के साथ अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके। 
  • इस उद्यम में दस प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों तथा शोध संस्थानों की सहायता ली जा रही है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में इस परियोजना को और विस्तार दिया जाना है ताकि महासागर प्रक्रियाओं और कपल्ड महासागर वातावरण प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए अनेक मॉडल विकसित किए जा सकें | इन मॉडलों का मूल रूप से उपयोग मानसून विविधता चक्रवात, लहरों, जैविक, उत्पादकता और तटीय प्रक्रियाओं के पूर्वानुमान में किया जाना है।

 

कोमैप्स (COMAPS) क्या  है 

 

'तटीय महासागर निगरानी तथा पूर्वानुमान प्रणाली कार्यक्रम (Coastal Ocean Monitoring And Predication System COMAPS) 


कोमैप्स (COMAPS) कार्यक्रम के उद्देश्य

 

1. तटीय इलाकों तथा खुले समुद्र में जैव भू-रासायनिक पैरामीटर के क्षेत्र में एक ज्ञान आधार की स्थापना करना।

2. एक ऐसे सूचना तंत्र को संचालित करना । जहां से सरकारउद्योग, अनुसंधान तथा सामाजिक संस्थाओं के लोग आसानी से आंकड़े प्राप्त कर सकें। 

3. अनुसंधान एवं विकास के कार्यक्रमों का इस तरह से बनाना एवं क्रियान्वित करना जिससे कि ज्ञान एवं सूचना आधार को लगातार अपडेट किया जा सके। साथ ही विभिन्न जलाशयों तथा समुद्र में जाने वाले अनेक प्रकार के रसायनों की दर को ठीक-ठीक ज्ञात किया जा सके। इससे यह अनुमान लगाना आसान हो जायेगा कि पर्यावरणीय क्षमता से कितना अधिक प्रदूषण जलाशयों तथा समुद्रों में जा रहा है। 

4. प्रदूषण नियंत्रण में लगी सरकारी, औद्योगिक तथा सार्वजनिक संस्थाओं को सलाह एवं तकनीकी सेवा उपलब्ध कराना।

 

5- समुद्रीय प्रणाली की जैव भू-रासायनिक संरचना में आने वाले परिवर्तनों की पहचान करना तथा उसके आधार पर सरकार, . जनता तथा सामाजिक संस्थाओं को सचेत करना । 

6- विभिन्न प्रकार के प्रदूषक प्रचालकों को मापने के लिए मानक निर्धारित करना। इससे विभिन्न संस्थाओं तथा एजेंसियों द्वारा प्राप्त आंकड़ों तथा उनके प्रसंस्करण (processing) में रूपता आयेगी।.

 

यह कार्यक्रम 82 स्थानों पर चलाया जा रहा है जहां तक और अवसाद सूक्ष्म जैविक विशेषताओं सहित भौतिक, रासायनिक जैविक सम्बंधी 25 कारकों को एकत्र कर विश्लेषित किया जाता है । इन 25 कारकों में मुख्य हैं- तापमान लवणता, घुली आक्सीजन, तैरते ठोस, बीओडी, अकार्बनिक फास्फेट, नाइट्रेट, नाइट्राइट, अमोनिया, टोटल फास्फोरस, टोटल नाइट्राइट, टल आर्गेनिक कार्बन, पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन, पैथोजेनिक वाइब्रो, ई. कोली, साल्मोनेला, शिगेला, कैडमियम, सीसा, पारा, डीडीटी, बीएचसी तथा एण्डो सल्फान।

 

इस कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए सर्वोच्च केंद्र नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ ओशनोग्राफी, मुम्बई है।

 

मारसिस (MARSIS-Marine Satellite Information Service)

 

  • दूर-संवेदी उपग्रह तकनीक की क्षमता को देखते हुए भारत सरकार का महासागर विकास विभाग 1990 से ही 'समुद्री उपग्रह सूचना सेवा' (Marine Satellite Information Service-MARSIS) को क्रियान्वित कर रहा है
  • इस परियोजना का उद्देश्य समुद्र से सम्बंधित आंकड़ों का विकास करना है। ये विकसित आंकड़े या तो प्रत्यक्ष रूप से तटीय इलाकों में रह रहे लोगों के काम आयेंगे अथवा योजना एवं विकास से सम्बंधित क्रिया-कलापों में इस्तेमाल किए जायेंगे। 
  • 'मारसिस' कार्यक्रम को क्रियान्वित करने वाली एजेंसी हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी है। इसके साथ कई और केंद्र भी जुड़े हैं। 


मारसिस द्वारा जिन तथ्यों पर आंकड़ें उत्पन्न किए गए हैं वे इस प्रकार हैं

 

1. समुद्र की सतह का तापतान :

  • समुद्र की सतह के तापमान का आकलन एनओएए (National Ocean and Atmospheric Administration) उपग्रह द्वारा दैनिक तथा साप्ताहिक आधार पर किया जाता है। इन आंकड़ों का उपयोग मौसम संबंधी पूर्वानुमान तथा मौसम संबंधी अनुसंधान में किया जाता है। समुद्र की सतह के तापमान का इस्तेमाल समुद्र में मछलियों के क्षेत्र निर्धारित करने के लिए भी किया जाता है।

 

2. मत्स्य क्षेत्र से सम्बंधित सूचना :

  •  समुद्र की सतह के औसत साप्ताहिक तापमान के आधार पर थर्मल ग्रेडिएंट की पहचान की जाती है और इसी को एसएसटी (Sea Surface Temperature) चार्ट पर चिह्नित कर दिया जाता है। मछलियों के पाए जाने की संभावना थर्मल फ्रंट एरिया में होती है।

 

3. नम भूमिका नक्शा :

  •  तमिलनाडु और केरल में समुद्र तटीय इलाकों में स्थित नम भूमि नक्शा भी मारसिस' द्वारा तैयार किया गया है। इन नक्शों के आधार पर लागून, बैक वाटर्स, एस्टूअरिज, मंड फ्लैट्स इत्यादि की स्थितियों का पता लगाया जाता है।

 

मूंगा की चट्टानों का नक्शा :

  •  मूंगे की चट्टानें कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप समूह में पाई जाती हैं। इनके नक्शों के आधार पर यह पता लग जाता है कि किस जगह मूंगे की उपलब्धता अधिक है तथा उसकी स्थिति क्या है।

 

महासागरीय अनुसंधान में सहायक पोत

 

  • महासागरीय अनुसंधान में अनेक अनुसंधान पोतों का उपयोग किया जा रहा है। इनके नाम हैं- सागर सम्पदा, सागर मंजूषा, सागर कन्या, गवेषणी, आर. एल. भुवनेश्वर आदि। इन पोतों को FORV-(Fisheries Oceanographic Research Vessel) कहा जाता है। एक रिमोट द्वारा चालित पोत ROV (Remote Operated Vessel) का विकास किया गया है। यह 200 मीटर जलगत गहराई में जाकर 60 किग्रा. भार लाने में सक्षम है।


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