पीआईएल का विषय क्षेत्र | Subject area of PIL
पीआईएल का विषय क्षेत्र Subject area of PIL
1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने पीआईएल के
रुप में प्राप्त याचिकाओं पर कार्यवाही के लिए कुछ दिशा-निर्देशों को सूत्रित
किया। इन दिशा-निर्देशों को 2003 में संशोधित किया
गया। इनके अनुसार निम्नलिखित कोटियों में आने वाली याचिकाएं ही सामान्यतया जनहित
याचिका के रुप में व्यवहृत होंगी :
1. बंधुआ श्रमिक
2. उपेक्षित बच्चे
3. श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी नहीं
मिलना, आकस्मिक श्रमिकों का शोषण तथा श्रम कानूनों के उल्लंघन (अपवाद
वैयक्तिक मामले) संबंधी मामले
4. जेलों से दाखिल
उत्पीड़न की शिकायत समय से पहले मुक्ति तथा 14 वर्ष पूरा करने के
पश्चात मुक्ति के लिए आवेदन, जेल में मृत्यु, स्थानांतरण, व्यक्तिगत मुचलके पर मुक्ति या रिहाई, मूल अधिकार के रुप में त्वरित मुकदमा
5. पुलिस द्वारा मामला दाखिल नहीं किए
जाने संबधी याचिका, पुलिस उत्पीड़न तथा पुलिस हिरासत में
मृत्यु 6. महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ याचिका, विशेषकर वधु-उत्पीड़न, दहेज-दहन, बलात्कार, हत्या, अपहरण इत्यादि।
7. ग्रामीणों के सह-ग्रामीणों द्वारा
उत्पीड़न, अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों के पुलिस
द्वारा उत्पीड़न की शिकायत संबंधी याचिकाएँ
8. पर्यावरणीय प्रदूषण संबंधी याचिकाएं, पारिस्थितिक संतुलन में बाधा, औषधि, खाद्य पदार्थ में
मिलावट, विरासत एवं संस्कृति, प्राचीन कलाकृति, वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण तथा सार्वजनिक महत्व के अन्य मामलों
से संबधित याचिकाएं
9. दंगा पीड़ितों की याचिकाएं
10. पारिवारिक पेंशन
निम्नलिखित कोटियों के अंतर्गत आने वाले मामले पीआईएल के रुप में व्यवहृत नहीं होंगे:
1. मकान मालिक-किरायेदारों के मामले
2. सेवा संबंधी तथा वे मामले जो पेंशन
तथा ग्रैच्युटी से संबंधित हैं
3. केन्द्र/राज्य सरकार के विभागों तथा
स्थानीय निकायों के खिलाफ शिकायतें उन मामलों को छोड़कर जो उपरोक्त के बिन्दु (1) (10) से संबंधित हैं।
4. मेडिकल तथा अन्य शैक्षिक संस्थाओं में
नामांकन।
5.
जल्दी सुनवाई के लिए उच्च न्यायालयों
एवं अधीनस्थ न्यायालयों में दाखिल याचिकाएं।
Post a Comment