सल्तनत युग और भारतीय संस्कृति Sultanate era and Indian culture
उत्तर भारत में अरब, तुर्क तथा अफगानों की उपस्थिति का हमारे धार्मिक विचारों तथा क्रियाओं पर कोई क्रान्तिकारी प्रभाव नहीं पड़ा।
भक्ति आन्दोलन के विषय में भी हम जानते हैं कि यह हिन्दू धर्म तथा इस्लाम के सीधे सम्पर्क का परिणाम नहीं था। इस युग में देश की बहुसंख्यक जनता जहाँ तक उसके धार्मिक विचारों तथा अनुष्ठानों का सम्बन्ध था, पूर्णतया राजनीतिक उठापटक से अप्रभावित रही।
संतों,सूफियों एवं अनेक शासकों ने दोनों धर्मों तथा सम्प्रदायों में समन्वय स्थापित करने का समय-समय पर प्रयत्न किया। उत्तर तथा दक्षिण दोनों जगह सामान्य जनता तथा शासक वर्ग ने इन नये लोगों का स्वागत एवं उनके साथ उदारता का व्यवहार किया।
देश के प्रायः सभी स्थानों में विदेशियों को सम्मानपूर्ण स्थान मिला और उन्हें स्वतन्त्रतापूर्वक अपने धर्म के पालन एवं प्रसार की अनुमति दी गयी। इसलिए सामाजिक नियमों को अधिक जटिल बनाने का प्रयत्न किया गया।
दैनिक जीवन के नियमों को भी कठोरता से निर्धारित किया गया। श्रुतियों में आचार-विचार के नये नियम बनाये गये। माधव, विश्वेश्वर आदि विद्वानों ने टीकाऐं लिखीं और जनता के लिए कठोर धार्मिक जीवन का विधान किया।
मुसलमानों के भय से बाल-विवाह प्रचलित हो गया। हिन्दुओं में भी पर्दा प्रथा कठोरता से लागू की गयी।
खानपान तथा विवाह के सम्बन्ध में भी अत्यधिक जटिल नियम बनाये गये। दूसरे, सुधारकों ने इस्लाम के कुछ लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों को ग्रहण कर लिया, जातियों की समानता पर जोर दिया गया और कहा कि जाति मोक्ष के मार्ग में बाधक नहीं हो सकती।
इसी प्रकार भारतीय साहित्य पर भी कुछ प्रभाव पडा, यद्यपि वह बहुत गहरा नहीं था। इस काल में बहुत कम हिन्दुओं ने अरबी तथा फारसी का अध्ययन किया, संस्कृत तथा हिन्दी ग्रन्थों की विषयवस्तु अथवा शैली पर इस्लाम का कोई विशेष प्रभाव नहीं मिलता है ।
अमीर खुसरो के बाद दिल्ली में कोई उल्लेखनीय संगीतज्ञ नहीं हुआ, इसलिए भारतीय संगीत पर इस्लामी विचारों का प्रभाव नहीं पड़ा।
दिल्ली के प्रारम्भिक तुर्क-अफगान शासकों को चित्रकला से किसी प्रकार का नहीं प्रेम था, इस्लाम में संगीत तथा जीवित वस्तु के चित्र-निर्माण में पाबंदी थी।
भारतीय चित्रकला विदेशियों की उपस्थिति से प्रभावित हुए बिना अपने ढंग से विकसित होती रही। कुछ इतिहासकारों के अनुसार तुर्क-अफगान शासन का हिन्दुओं के चरित्र पर दूषित प्रभाव पड़ा।उनके अनुसार उच्च तथा मध्य वर्ग के लोगों को प्रतिदिन शासकों के सम्पर्क में आना पड़ता था, इसलिए जीवन निर्वाह करने के लिए उन्हें धर्म, संस्कृति तथा अन्य विषयों के सम्बन्ध में अपने विचार तथा भावनाऐं छिपानी पड़ती थीं, इससे उनके चरित्र में दास-भाव तथा चाटुकारिता का समावेश हो गया।अनेक देशवासी कपटी तथा प्रवंचक हो गये। यही कारण था कि हिन्दू चरित्र, आचरण की सरलता, वीरता, साहस आदि गुणों को खो बैठे।
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