कौटिल्य के कानून संबंधी विचार |Thoughts on Kautilya's law
कौटिल्य के कानून संबंधी विचार Thoughts on Kautilya's law
कौटिल्य के अनुसार कानून
- कौटिल्य ने कानूनों के सख्ती से पालन पर बल दिया। कौटिल्य का कानून अनुभववाद और आध्यात्मवाद पर आधारित है। उसके कानून का आधार धर्म है।
- उसकी मान्यता थी कि जो राज्य कानून का पालन तथा न्याय सुनिश्चित नहीं कर पाते वह शीघ्र नष्ट हो जाते है। उसकी मान्यता थी कि राज्य का उद्देश्य प्रजा के जीवन एवं संपत्ति की रक्षा करना है।
- असमाजिक तत्वों तथा अव्यवस्था उत्पन्न करने वाले व्यक्तियों को दण्डित करना है। वह कानून एवं दण्ड को सगी बहनों की तरह मानता है जो राज्य को स्थायित्व और नागरिक जीवन में सुधार का संचार करता है।
कौटिल्य के कानून का उद्देश्यः-
- कानून का उद्देश्य व्यक्ति और समाज का कल्याण करना है। यह व्यक्ति और समाज दोनों के सभी पहलुओं का समाधान कल्याणकारी रूप में करता है।
कौटिल्य के कानून की परिभाषा:-
- कौटिल्य के अनुसार कानून शाही आदेश है जो स्वीकृति के द्वारा लागू किया जाता है। कानून सभी शाही आदेशों का प्रतिरूप है। उउन्होंने राजा को वरूण के समान माना है। वह सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ न्यायधीश की भूमिका भी अदा करता है।
कौटिल्य के कानून के स्रोत
कौटिल्य ने कानून के चार
स्रोत बताये है:-
1.धार्मिक उपदेश
2.व्यावहारिक अथवा साथियों का व्यवहार
3.समाज के रीति रिवाज और परम्परा
4.राजकीय आदेश
कौटिल्य ने उपरोक्त के सदंर्भ में एक स्थान पर
लिखा है कि "धर्म व्यवहार, चरित्र राजाज्ञा ये विवाद के निर्णायक साधन होने के कारण राष्ट्र के
चार पैर माने जाते हैं।
कौटिल्य के कानून का वर्गीकरण
कौटिल्य ने कानून का व्यापक वर्गीकरण किया है । उन्होनें इसको निम्न भागों में बांटा है:-
1.कौटिल्य के विवाह संबंधी कानून
- कौटिल्य ने अपनी पुस्तक "अर्थशास्त्र" में विवाह पर व्यापक विमर्श किया है। इसमें उन्होनें धर्म विवाह, स्त्री का पुर्न विवाह पति-पत्नी द्वेष पर पुरूष अनुसरण और पुर्न विवाह पर व्यापक चर्चा कर इनके नियम और कानून का वर्णन किया है।
2.कौटिल्य के दाय अथवा उत्तराधिकार विषयक कानूनः-
- कौटिल्य ने अपनी पुस्तक "अर्थशास्त्र" में उत्तराधिकार का सामान्य नियम पैतृक क्रम से विशेषाधिकार, पुत्रक्रम से विशेषाधिकार का वर्णन किया है। उसकी मान्यता है कि माता-पिता या पिता के जीवित रहते लड़के संपत्ति के उत्तराधिकारी नहीं होते। पिता के न रहने पर वह संपति का बटवारा कर सकते है। संयुक्त परिवारों में रहने वाले पुत्रों तथा पौत्र चौथी पीढ़ी तक अविभाजित पैतृक संपति के बराबर के हकदार है जिसका कोई उत्तराधिकारी न हो उसे राज्य ले लेवे। उसकी मान्यता है कि पलित, दलित की संतान , मूर्ख, अंधा कोढ़ी उत्तराधिकार के अधिकारी नहीं होगें।
3.कौटिल्य के अचल संपति संबंधी कानून
- इसके अर्न्तगत कौटिल्य ने संपति के बेचने, सीमा विवाद कर की छूट, गांवों का बंदोबस्त, सामूहिक कार्यों में शामिल न होने का मुआवजा आदि का वर्णन इसके अन्तर्गत किया गया है। इसमें कर की छूट , रास्ते को रोकना, गांवों का बंदोबस्त भी शामिल है।
4.कौटिल्य के ऋण संबंधी कानून:-
- कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में ऋण , ब्याज के नियम, एक व्यक्ति पर अनेक व्यक्ति के कर्जा संबंधी कानूनों का वर्णन किया है । वह ब्याज के संदर्भ में कहता है कि 100 पण पर सवा पण ब्याज लेना चाहिए। ऋण देने वालों तथा लेने वालों के चरित्र की निगरानी होनी चाहिए। अन्न संबंधी ब्याज फसल के आधे से अधिक नहीं होनी चाहिए।
5.कौटिल्य के धरोहर संबंधी कानूनः-
- इसके अर्न्तगत धरोहर , गिरवी, उधार की वस्तु गई धरोहर आदि के संबंध में व्यापक चर्चा की गई है। को लौटाने गिनकर रखी
6.कौटिल्य के दास और श्रमिक संबंधी कानूनः-
- कौटिल्य ने अपनी पुस्तक *अर्थशास्त्र" में दास श्रमिक और नौकरों के वेतन पर भी प्रकाश डाला है। उन्होंने यूनानी विचारकों की तरह दास प्रथा को स्वीकार किया है। वह निम्न जातियों तथा अनार्यों को दास बनाने पर बल देता है। विशेष स्थिति में यदि उच्च कुल का व्यक्ति दास बन गया हो तो उसे मुक्त कर देना चाहिए। कौटिल्य का मत है कि यदि दासी से संतान उत्पन्न हो जाए तो उसे दासता से मुक्त कर दिया जाना चाहिए।
7.कौटिल्य के साझेदारी विषयक कानून
- कौटिल्य ने स्पष्ट किया है कि ठेके पर मजदूरी करने वाले मजदूर प्राप्त मजदूरी को आपस में बांट लें। व्यापारी को माल खरीदने से बेचने तक हुए खर्चे को जोड़ने के बाद बेचने से प्राप्त धन से हुए लाभ को साझीदार से बांट लेना चाहिए।
8.कौटिल्य के क्रय-विक्रय संबंधी कानून
कौटिल्य ने क्रय-विक्रय संबंधी नियमों का विस्तृत उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है। उन्होने स्पष्ट किया है कि क्रय-विक्रय करने वाले व्यापारियों का बयान ; एक दिन में , किसानों का क्रय-विक्रय तीन दिन तथा दूध वालों का बयाना 5 दिन में वापस किया जा सकता है।
9.कौटिल्य के स्व-स्वामी संबंधी कानून
कौटिल्य ने स्व-स्वामी संबंधी कानूनों का भी उल्लेख किया है । उसका मत है कि यदि कोई व्यक्ति किसी संपति को उपभोग कर रहा है तो उस पर उसी का स्वामित्व माना जाना चाहिए। वह आगे और अधिक स्पष्ट करता है और कहता है कि यदि कोई व्यक्ति दस वर्ष तक किसी संपति पर अपना अधिकार खो देता है तो उस पर उसका दावा नहीं रह जाता है।
10कौटिल्य के .निंदा संबंधी कानून
- कौटिल्य ने निंदा संबंधी अथवा विवाद के संबंध में स्पष्ट किया है कि किसी को धमकाना, निदां करना, वाक्यारूष्य नामक अपराध के अन्तर्गत है।
11.कौटिल्य के जुआ संबंधी कानून
- जुआ पर पैनी नजर रखने का समर्थक था। उसका यह मानना था कि धूताध्यक्ष को अपनी निगरानी में नियत स्थान पर जुआ खलने की व्यवस्था करनी चाहिए। इसका उल्लंघन करने वालों को दण्ड की व्यवस्था की है।
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