शासक के रूप में अलाउद्दीन का आंकलन |Alauddin's assessment as ruler
शासक के रूप में अलाउद्दीन का आंकलन
- अलाउद्दीन ने अपनी बाज़ार नियन्त्रण नीति, उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत की विजयों से मध्यकालीन भारतीय इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
- दिल्ली का कोई और सुल्तान उसकी व्यावहारिक बुद्धि, उसका रण-कौशल, उसकी दूरदर्शिता और अपनी महत्वाकांक्षाओं को साकार रूप देने की क्षमता में उसका मुकाबला नहीं कर सकता।
- वह पहला सुल्तान था जिसने धर्म को यथासम्भव राजनीति से अलग रखने में सफलता प्राप्त की थी।
- मुस्लिम शासकों में अकबर से पूर्व वही था जिसने कि अपने राज्य को भारत के साम्राज्य के रूप में विकसित किया था और अकबर से बहुत पहले वही था जिसने अपने अधीनस्थ शासकों को वार्षिक भेंट तथा अन्य प्रकार की सहायताओं के बदले लगभग स्वतन्त्र शासक की भांति राज्य करने का अधिकार देकर अप व्यावहारिक बुद्धि का परिचय दिया था।
- वह एक महान भवन तथा नगर निर्माता था।
- अमीर खुसरो तथा ज़ियाउद्दीन बर्नी जैसे समकालीन इतिहासकारों ने उसके शासन की उपलब्धियों का विस्तार से उल्लेख किया है।
- किन्तु अलाउद्दीन एक क्रूर, कृतघ्न, स्वार्थी, शक्की, निरंकुश तथा विलासी शासक था।
- राज्य की समस्त शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर उसने अपने उत्तराधिकारियों को अयोग्य बना दिया था। उसने किसानों पर करों का बोझ इतना बढ़ा दिया कि उनका जीना हो गया।
- उसकी बाज़ार नियन्त्रण की भूरि-भूरि प्रशंसा की जाती है किन्तु यह भी सत्य है कि इससे आम आदमी का कोई भला नहीं हुआ और व्यापार तथा वाणिज्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- यह कहना अनुचित नहीं होगा कि अपने वंश के पतन के लिए मुख्य रूप से स्वयं अलाउद्दीन ही उत्तरदायी था। किन्तु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का सबसे महत्वपूर्ण शासक था।
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