अलाउद्दीन का विजय अभियान Alauddin's Victory Campaign
अलाउद्दीन का विजय अभियान Alauddin's Victory Campaign
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान
अलाउद्दीन ने सुल्तान जलालुद्दीन के शासनकाल में ही एक विजेता के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी। वह सिकन्दर महान की भांति एक विश्व विजेता बनना चाहता था। उसने अपनी मुद्राओं में स्वयं के लिए 'सिकन्दर सानी (द्वितीय) शब्द अंकित किया। दिल्ली के कोतवाल अला उल-मुल्क ने उसे विश्व विजय अभियान प्रारम्भ करने से पहले हिन्दुस्तान के अविजित राज्यों को जीतने की सलाह दी थी।
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान-01
- भविष्य में दक्षिण विजय की योजना के लिए गुजरात विजय उपयोगी सिद्ध हो सकती थी। गुजरात के पड़ौस के क्षेत्र सिंध और मुल्तान में उसका विश्वस्त उलुग खाँ नियुक्त था। सन् 1298 के उत्तरार्ध में नुसरत खाँ तथा उलुग खाँ को गुजरात अभियान का दायित्व सौंपा गया जिन्होंने वहां के शासक कर्ण बघेला को उसके विश्वासघाती मन्त्री माधव की सहायता से पराजित किया और उसकी राजधानी अन्हिलवाड़ पर अधिकार कर लिया। भारी लूट के साथ कर्ण बघेला की रानी कमलादेवी को अलाउद्दीन को सौंप दिया गया। रानी कमलादेवी से अलाउद्दीन ने निकाह कर लिया।
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान -02
- रणथम्भौर पर विजय प्राप्त करने में सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी असफल रहा था। रणथम्भौर के किले का अत्यधिक सामरिक महत्व था। वहां के चौहान शासक हम्मीरदेव द्वारा बागी नव-मुस्लिम मंगोलों को शरण दिया जाना और उनको उसे वापस सौंपे जाने से इंकार किया जाना, सुल्तान के कोप के कारण बने। जब नुसरत खाँ तथा उलुग खाँ को रणथम्भौर के किले पर अधिकार करने में असफलता मिली तब स्वयं अलाउद्दीन ने वहां पर आकर घेरा डाला किन्तु उसे भी एक साल तक सफलता नहीं मिली। बाद में हम्मीरदेव के विश्वासघाती मन्त्री रनमल को अपने पक्ष में कर सुल्तान ने किले पर सन् 1301 में अधिकार कर लिया। हम्मीरदेव अपने साथियों के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ और वहां की महिलाओं ने जौहर किया। अपने स्वामी के विश्वासघाती रनमल को अलाउद्दीन ने प्राणदण्ड दिया |
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान-03
- अलाउद्दीन द्वारा मेवाड़ अभियान के पीछे अनुपम सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध राणा रतन सिंह की रानी पद्मिनी को अपने अधिकार में करने की लालसा मानी जाती है। मलिक मुहम्मद जायसी ने इस प्रसंग को आधार बनाकर अपने महाकाव्य पद्मावत की रचना की है। सन् 1303 में अलाउद्दीन ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर घेरा डाला। पाँच महीने के घेरे के बाद संसाधनों की कमी के कारण रतन सिंह और उसके सैनिकों ने किले से बाहर निकल कर युद्ध किया और सभी वीरगति को प्राप्त हुए। अलाउद्दीन पद्मिनी को अपने हरम में सम्मिलित नहीं कर सका क्योंकि उसने किले में उपि हज़ारों स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। अमीर खुसरो के अनुसार सुल्तान ने चित्तौड़ पर अधिकार करने के बाद 20000 राजपूतों का वध किया। उसने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखकर उसे खिज्र खाँ को सौंप दिया परन्तु चित्तौड़ पर उसका अधिकार स्थायी नहीं रहा।
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान -04
- सन् 1305 में आइन-उल-मुल्क मुल्तानी के नेतृत्व में सुल्तान की सेना ने मालवा के शासक महलकदेव को पराजित कर मार डाला और माण्डू, धार व चन्देरी पर अधिकार कर लिया। इसके बाद जालौर के शासक कान्हणदेव ने आइन-उल-मुल्क मुल्तानी के समक्ष बिना युद्ध किए आत्म समर्पण कर दिया। सुल्तान ने आइन-उल-मुल्क मुल्तानी को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया।
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान -05
- 1309 में अलाउद्दीन ने स्वयं अभियान का नेतृत्व कर मारवाड़ के शासक शीतलदेव को पराजित कर व उसको मार कर सिवाना के किले पर अधिकार कर लिया और वहां कमालुद्दीन को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया।
अलाउद्दीन का उत्तर भारत विजय अभियान-06
- जालौर में कान्हणदेव ने अलाउद्दीन की आधीनता का शिकंजा तोड़कर स्वयं को फिर से स्वतन्त्र घोषित कर दिया था। गुलेबहिश्त खोजा के नेतृत्व में शाही सेना ने कान्हणदेव को मारकर जाल पुनराधिकार कर लिया।
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