भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं Characteristics of Indian Democracy
भारत में लोकतंत्र Democracy in India GK
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भारतीय लोकतंत्र
- 15 अगस्त, 1947 को भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता की गिरफ्त से मुक्त हो गया। इसके उपरांत भारत में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने केवल अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष नहीं किया था, बल्कि उनका उद्देश्य भारत में एक नई व्यवस्था की स्थापना करना भी था।
- आर्थिक व सामाजिक असमानताओं को दूर करना, जनसाधारण की गरीबी को कम करना, बेरोजगारी व अल्परोजगार का उन्मूलन, नागरिकों के अधिकारों की गारंटी, साम्प्रदायिक सौहार्द की पुनर्स्थापना और मानव गरिमा की पुनर्स्थापना तथा सभी को न्याय दिलाने के संबंध में स्वतंत्र भारत के नेताओं का एक स्पष्ट दृष्टिकोण था। उन अपेक्षाओं को संविधान में समिलित कर 26 जनवरी 1950 को इसे अंगीकार किया गया।
- नेताओं का यह दृष्टिकोण मुख्यतया प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों के भागों में परिलक्षित होता है। इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए संविधान निर्माताओं ने लोकतंत्र में पूरी आस्था व्यक्त की।
भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं Characteristics of Indian Democracy
- संविधान निर्माताओं ने उदारवादी संरचना के भीतर भारत में प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र को अपनाया है।
- इसमें प्रतिनिधि व्यस्क मतदाताओं द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्षतापूर्वक चुने जाते हैं तथा जहां जनता एवं शासकों के मध्य संचार तथा समन्वय रहता है।
- भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा गया है 16 आम चुनावों से इस बात की पुष्टि भी हो गई है कि लोकतंत्र की प्रणाली के प्रति देश की निष्ठा कितनी प्रबल है ।
- अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अत्यन्त स्थायी साधनों के रूप में लोकतंत्र में लोगों की गहरी आस्था है । इसके पीछे जो कारण है वह यह है कि इसमं मर्यादा, संयम, अनुशासन और भागीदारी की व्यवस्था है।
- भारत के लोग नैतिकता, ईमानदारी आत्मनिर्भरता और कर्म शक्ति को महत्व देते हैं लोकतंत्र जिसे आधार प्रदान करता है ।
भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं -
- सरकार का निर्माण जन-निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा होता है और वे लोगों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
- राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति के लिए एक से अधिक दलों के मध्य प्रतिस्पर्धा होती है।
- सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा खुले तौर पर होती है, गुप्त नहीं। यह खुले चुनावों द्वारा संपन्न होती है।
- चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर समय-समय पर होते हैं ।
- दबाव समूहों व अन्य संगठित और असंगठित समूहों को राजनीतिक व्यवस्था में काम करने की स्वतंत्रता होती है। वे सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं।
- नागरिक स्वतंत्रताओं में भाषण की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, संघ बनाने की स्वतंत्रता आदि की गारंटी होती है ।
- शक्तियों के पृथक्करण तथा एक दूसरे पर अंकुश लगाने की व्यवस्था होती है, जैसे कार्यपालिका पर निधायिका का नियंत्रण
उपरोक्त विशेषताएं मुख्यतया सरकार के लोकतांत्रिक
स्वरूप के विभिन्न पक्षों की ओर संकेत करती हैं। यही नहीं भारतीय लोकतंत्र में पंथ
निरपेक्षता, सत्ता का विकेन्द्रीकरण, स्वतंत्र न्यायपालिका, मौलिक अधिकार नीति निदेशक तत्व एवं
महिलाओं के उत्थान से संबंधित प्रावधानों आदि जैसे तमाम लोकतांत्रिक मूल्य विद्यमान
हैं।
भारतीय लोकतंत्र की समस्याएं Problems of Indian Democracy
- भारतीय लोकतंत्र अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। अभी तक भारत में राष्ट्रीय एकता भी स्थायी नहीं हो पाई है तथा राजनीतिक प्रणाली समस्त समूहों, श्रेणियों एवं वर्गों की अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल रही है।
- भारत में लोकतंत्र की स्थापना व्याप्त असमानताओं को दूर करने के लिए की गई थी। लेकिन लोकतंत्र की स्थापना के 70 वर्ष पूरा होने के बाद भी भारतीय जनसाधारण का एक बहुत बड़ा भाग अत्यंत निर्धनता, निरक्षरता तथा बेरोजगारी का शिकार है।
- भारत के आर्थिक विकास के संदर्भ में एक वास्तविकता यह भी है कि वह संस्थात्मक परिवर्तनों से जुड़ नहीं पाया। यदि ऐसा हो पाता तो उसे समतावादी दिशा प्राप्त होती और भारत में व्याप्त निर्धनता का उन्मूलन हो गया होता। यही नहीं, नागरिकों को एक वांछनीय जीवन जीने के उपयुक्त तथा न्यूनतम अवसर भी प्राप्त हो जाते आज भी देश के 35 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन व्यतीत करते हैं ।
- दरअसल इसके पीछे जो कारण हैं उसे समझना जरूरी है। जिन आदर्शों और आशाओं को लेकर देशवासी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे, उनकी अगली पीढी के सार्वजनिक जीवन के बहुत से लोगों ने सत्ता प्राप्ति और धन अर्जन को ही अपना मुख्यधंधा बना लिया और सत्ता और धन की प्राप्ति के लिए वे कोई भी कीमत चुकाने को तैयार होते गए। इसका परिणाम यह हुआ कि भ्रष्टाचार, हिंसा अनियंत्रित कानून एवं व्यवस्था, उपद्रव, लूटमार, अनुशासन हीनता, सम्प्रदायिकता, राजनीति का अपराधीकरण तथा अपराधियों का राजनीतिकरण जैसी कुप्रवृत्तियां लोकतंत्र की राह में अवरोधक बनकर उभरीं।
- आज भारत में एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई है। वोट चाहने वाले राजनेताओं ने जनसाधारण की जातीय, सम्प्रदायिक, भाषायी तथा क्षेत्रीय निष्ठा के आधार पर गणना करना आरंभ कर दिया है। इस प्रकार चुनाव किसी सकारात्मक परिवर्तन का मंत्र बनने की बजाय स्वयं को आगे बढाने के साधन बन गए हैं।
- यही कारण है कि आज संविधान के उच्च आदर्श- जैसे स्वतंत्रता, समानता भ्रातृत्व, सामाजिक न्याय, पंथनिरपेक्षता और विशेषतया कानून के शासन से बहुत दूर हो गए हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है।
संक्षेप में भारतीय लोकतंत्र की समस्याओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों का ह्रास:
- सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों को नैतिक मूल्यों का ह्रास भारतीय लोकतंत्र की गंभीर समस्या हैं। मूल्यों की राजनीति का सूत्रपात हुआ है। राजनीतिक स्वार्थ सर्वोपरि हो गया है
संवैधानिक संस्थाओं में घटता विश्वासः
- संवैधानिक संस्थाओं में आम लोगों का विश्वास घट रहा है । संसद और राज्य विधानमंडल अब ऐसे स्थान नहीं रह गये हैं। जहां नीतियों और जनता की समस्याओं पर विचार हो, इन संस्थाओं में अब शोरगुल, व्यवधान और अपमान का बोलबाला है।
हिंसा और अपराध की राजनीति की प्रवृत्ति को बढावाः
- पिछले दो दशकों से भारत में हिंसा और अपराध की प्रवृत्ति बढी है। सार्वजनिक जीवन के लोग अपने हितों के रक्षा के लिए हिंसा और अपराध का सहारा लेने से नहीं चुकते। भारतीय राजनीति में ऐसे तत्वों की संख्या बढी है जो हिंसा और अपराध को महत्व देते हैं।
जातिवाद, सम्प्रदायवाद, भाषावाद और क्षेत्रीयता को बढ़ावा
- आज भारत में जातिवाद, सम्प्रदायवाद भाषावाद और क्षेत्रवाद को बढावा दिया जा रहा है । ऐसी संक्रिय भावनाओं से न केवल रा की एकता को खतरा है बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती भी है।
गठबंधन की राजनीति के विकास से अस्थिरता को बढावा:
- पिछले दो दशकों से भारतीय लोकतंत्र गठबंधन की राजनीति का शिकार हो गया । इससे प्रवृत्ति से सरकारें अस्थिर होती है जिसका सीधा असर काम काज पर पड़ता है।
संवेदनहीन और अनुत्तरदायी प्रवृत्ति को बढावाः
- चुने जाने के बाद नेताओं की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। वे अपने को सेवक नहीं शासक समझने लगते है। चुनाव जीतने के बाद नेता अपने सारे वादे भूल जाते हैं। जनता की समस्याओं से उनका कोई लेना देना नहीं है। सार्वजनिक जीवन के लोग संवेदन हीन हो गये हैं।
सशक्त एवं उत्तरदायी विपक्ष का अभावः
- भारतीय लोकतंत्र में सशक्त एवं उत्तरदायी विपक्ष का अभाव बढता जा रहा है। जबकि एक सशक्त विपक्षी दल देश में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक तत्व है।
महंगाई और भ्रष्टाचार का बोलबालाः
- आज महंगाई और भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है । इसने मध्यम वर्ग की शक्ति को जर्जर और उसकी रचनात्मक प्रतिभा को कुण्ठित कर दिया है। एक ओर भ्रष्टाचारी विलास और वैभव में डूबा है तो दूसरी ओर लाखों लोग भूख से मर रहे हैं।
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