मुगल काल में शिल्प तथा उद्योग Crafts and Industries in the Mughal Era
मुगल काल में शिल्प तथा उद्योग Crafts and Industries in the Mughal Era
मुगल काल में वस्त्र उद्योग
- मुगल बादशाह शिल्प तथा उद्योग के प्रोत्साहन के लिए सतत प्रयत्नशील रहते थे। किसानों को उद्योग से सम्बन्धित फ़सलें कपास, नील आदि उगाने के लिए लगान में रियायतें दी जाती थी। मुगल काल में सूती कपड़ा उद्योग तथा रेशमी वस्त्र उद्योग का अभूतपूर्व विकास हुआ था। बंगाल सूती तथा रेशमी वस्त्र के उत्पादन का मुख्य केन्द्र था।
- काश्मीर में उच्चकोटि के रेशमी तथा ऊनी वस्त्र बनाए जाते थे। गुजरात, मालवा तथा आगरा सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध थे।
- कपड़ों की स्तरीय रंगाई-छपाई के लिए भी मुगल काल विख्यात था।
- मछलीपट्टम रंगाई का एक प्रमुख केन्द्र था। वस्त्रों के निर्यात से साम्राज्य को प्रचुर मात्रा में आय होती थी।
मुगल काल में अन्य उद्योग
- मुगल काल में धातु उद्योग भी विकसित था। बर्तन, सन्दूकें, हथियारों में तोपें, बन्दूकें, तलवारें आदि, उपकरणों में कैंची, प्लास, रहट, हुक्के आदि तथा सोने-चाँदी के आभूषणों की गुणवत्ता उच्च कोटि की थी।
- लकड़ी उद्योग, चीनी उद्योग, चर्म उद्योग, संगतराश एवं भवन निर्माण उद्योग, कागज़ उद्योग, इत्र व सुगन्धित तैल-उद्योग, नौका एवं पोत निर्माण उद्योग, काँच-उद्योग, विस्फोटक सामग्री निर्माण उद्योग रत्न-उद्योग, हाथी दाँत उद्योग आदि को राज्य की ओर से संरक्षित एवं प्रोत्साहित किया जाता था।
- मुगलकाल में आभिजात्य वर्ग की विशिष्ट आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए शाही कारखाने स्थापित किए गए थे। आइन-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़्ल 36 शाही कारखानों का उल्लेख करता है। सभी प्रमुख नगरों में शाही कारखाने स्थापित किए गए थे।
मुगल काल में व्यापार एवं वाणिज्य
मुगल काल में आन्तरिक व्यापार
- आन्तरिक व्यापार के सुचारू रूप से संचालन हेतु राज्य की ओर से सड़कों, पुलों तथा सरायों के निर्माण, उनके रख-रखाव के अतिरिक्त मार्गों तथा मण्डियों- बाजारों की सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध किया जाता था। आन्तरिक व्यापार जल मार्ग से भी होता था। इसके लिए नावों के बेड़े तैयार रखे जाते थे। सभी प्रमुख व्यापारिक केन्द्र साम्राज्य के बड़े नगर थे। दुकानदारों तथा व्यापारियों को अपने संघ बनाने की स्वतन्त्रता थी। व्यापार कर के रूप में राज्य को प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त होता था।
मुगल काल में विदेश व्यापार
- मुगल काल में विदेश व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापारियों पर करों का बोझ अधिक नहीं डाला जाता था तथा साम्राज्य के अधिकारियों द्वारा उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार किया जाता था।
- विदेश व्यापार स्थल व जल दोनों ही मार्गों से होता था। मुगल काल में निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में सूती, रेशमी व ऊनी वस्त्र, नील, मसाले, शोरा, नमक, चीनी, औषधियां आदि प्रमुख थीं। आयात की जाने वाली वस्तुओं में सोना, चाँदी, हाथी दाँत, चीनी मिट्टी तथा काँच के बर्तन, शराब, तम्बाकू, मेवे का आयात किया जाता था।
- विदेशों से गुलामों तथा ऊँची नस्ल के घोड़ों का भी आयात किया जाता था। व्यापारियों को हर सम्भव सुरक्षा प्रदान की जाती थी किन्तु समुद्री मार्ग में सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध नहीं था फिर भी व्यापार सन्तुलन मुगलों के पक्ष में था और हर वर्ष विदेश व्यापार से उन्हें लाभ होता था। मीर-ए-बहर तटीय शुल्क का संग्रहण कर राज्य कोष प्रचुर धन जमा कराता था।
- औरंगज़ेब तथा परवर्ती मुगल शासकों के काल में युद्ध और अराजकता की स्थिति के कारण आन्तरिक तथा विदेश व्यापार दोनों में ही गिरावट आई थी।
मुगलकालीन वित्त व्यवस्था का आकलन
- औरंगज़ेब के शासनकाल के उत्तरार्ध के अतिरिक्त महान मुगल शासकों की वित्त व्यवस्था अत्यन्त सुदृढ़ थी। इस काल में कृषि, उद्योग, आन्तरिक तथा विदेश व्यापार आदि क्षेत्रों में चहुमुखी विकास हो रहा था। शाही खज़ानों में पर्याप्त धन था तथा आभिजात्य वर्ग के वैभव और उसकी समृद्धि की कोई थाह नहीं थी।
- इस काल में भारत में विश्व के सबसे समृद्ध तथा विशाल महानगर थे। श्रमिक वर्ग, कृषक वर्ग तथा कारीगरों की स्थिति प्रायः दयनीय थी किन्तु व्यापारी वर्ग समृद्ध था। औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व के इस काल में व्यापार सन्तुलन भारत के पक्ष में था इसीलिए विश्व में भारत को सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था।
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