विजय नगर में सांस्कृतिक जीवन |बहमनी राज्य का विघटन Cultural life in Vijayanagar
विजयनगर में सांस्कृतिक जीवन Cultural life in Vijayanagar
- कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में विजयनगर साम्राज्य में असाधारण उन्नति हुई।
- विजयनगर साम्राज्य के प्रारंभिक काल में वेदों के प्रख्यात भाष्यकार सायण तथा उनके भाई माधव विधारण्य हुए थे ।
- विजयनगर के शासक संस्कृत, तेलुगु, तमिल एवं कन्नड़ सभी भाषाओं के संरक्षक थे।
- अन्य क्षेत्रों की भांति ही कृष्णदेव राय का काल सांस्कृतिक उत्थान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। वह स्वंय विद्वान, संगीतज्ञ एवं कवि था। उसने अपनी महत्पूर्ण कृति अमुक्त माल्यदा" तेलुगु में लिखी, जिसकी भूमिका में उसने संस्कृत में लिखी अपनी पांच पुस्तकों की चर्चा की है।
- उसके दरबार में अष्टदिग्गज थे । उसका राजकवि पेद्दन की बड़ी ख्याति थी, तथ तेलुगु लेखकों में उसका स्थान सर्वोपरि था।
- आरवीडु वंश के शासकों तक ने जिनकी आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत खराब हो गयी थी, साहित्य को संरक्षण दिया और उनके अधीन भी तेलुगु साहित्य की उन्नति छोटे नायकों तथा राजाओं के सम्बन्धियों में लेखक थे। संगीत, नृत्य, नाटक, व्याकरण, न्याय, दर्शन इत्यादि के ग्रन्थों को समाटों तथा मन्त्रियों से प्रोत्साहन मिलता।
- इस साम्राज्य के अन्तर्गत ग्रन्थों को मा तथा मन्त्रियों से प्रोत्साहन मिला। इस साम्राज्य के अन्तर्गत माध्वाचार्य ने “पाराशरमाधव", “काल निर्णय" तथा "स्मृति संग्रह “ गन्थ लिखें।
लक्ष्मीधर ने “सरस्वती विकास" तथा "सौन्दर्य लहरी" का सृजन किया। व्यासराज ने खण्डव “मायावाद खण्डन" ग्रन्थ लिखा।
विजयनगर साम्राज्य में साहित्य निर्माण के क्षेत्र में स्त्रियों ने भी विशेष योगदान दिया। तिरूमलम्बादेवी ने “बरदाम्बिका परिरगयम् “ तथा गंगादेवी ने “मथुराविजयम् “ महाकाव्य लिखा।
संक्षेप में संस्कृत, तेलुगु, तमिल एवं कन्नड भाषाओं में रचित विजयनगर साम्राज्य का साहित्य दक्षिण भारतीय संस्कृति का एक सुखद समन्वय है।
- लक्ष्मीधर ने “सरस्वती विकास" तथा "सौन्दर्य लहरी" का सृजन किया। व्यासराज ने खण्डव “मायावाद खण्डन" ग्रन्थ लिखा।
- विजयनगर साम्राज्य में साहित्य निर्माण के क्षेत्र में स्त्रियों ने भी विशेष योगदान दिया। तिरूमलम्बादेवी ने “बरदाम्बिका परिरगयम् “ तथा गंगादेवी ने “मथुराविजयम् “ महाकाव्य लिखा।
- संक्षेप में संस्कृत, तेलुगु, तमिल एवं कन्नड भाषाओं में रचित विजयनगर साम्राज्य का साहित्य दक्षिण भारतीय संस्कृति का एक सुखद समन्वय है।
- साहित्य के विकास के साथ साथ कला और वास्तुकला की भी विजयनगर साम्राज्य के अन्तर्गत विलक्षण उन्नति हुई।
- अब्दुर्रज्जाक तथ निकोलो कोण्टी ने विजयनगर का भव्य वर्णन किया है।
- हम्पी से भी पता चलता है कि इसके कलाकारों ने यहां वास्तुकला, मूर्तिकला एवं चित्रकला की एक पृथक शैली का विकास किया था।
- विठ्ठलस्वामी मन्दिर भी विजयनगर शैली का एक उत्तम नमूना है। विजयनगर के शासकों ने चित्रकला तथा संगीत को भी पर्याप्त संरक्षण दिया था।
- चित्रकला उत्तमता की ऊँची सीढी पर पहुंच चुकी थी और संगीत कला का भी तीव्रता से विकास हुआ। संगीत के क्षेत्र में अनेक पुस्तकें लिखी गयी । कृष्ण्णदेव राय तथा संरक्षक रामराय संगीत कला में प्रवीण थे। नाट्यशालाओं द्वारा जनता के मनोरंजन का उल्लेख मिलता है।
- अभिलेखीय तथा साहित्यिक प्रमाण स्पष्टतः बतलाते हैं कि विजयनगर के शासक धार्मिक प्रवृत्ति के तथा धर्म में अनुरक्त थे पर वे धर्मेन्मत्त नहीं थे।
- तत्कालीन चार सम्प्रदायों शैव, बौद्ध, वैष्णव एवं जैन तथा विदेशियों ईसाई तथा यहूदी तथा इस्लाम तक के प्रति उनका रूख उदारता पूर्ण था।
- तमिल, तेलुगु, कन्नड, संस्कृत को वो समान संरक्षण देते थे। उन्होंने अपनी सेना में मुसलमानों को भी रखा और विदेशियों का भी अपने दरबारों ने स्वागत किया।
- इस प्रकार विजयनगर साम्राज्य के अन्तर्गत दक्षिण भारतीय संयुक्त संस्कृति का विकास हुआ और धर्मरत् रहते हुए भी शासकों ने आधुनिक धर्मनिरपेक्ष तथा सहिष्णुतावादी नीतियों का पालन किया।
बहमनी एवं विजयनगर साम्राज्य
- मुहम्मद तुगलक के काल में दक्षिण के अमीरों ने सम्राट के विरूद्ध विद्रोह किया और दौलताबाद के दुर्ग में अधिकार कर लिया और अफगान इस्माईल मख को नासिरूद्दीन शाह की उपाधि देकर दक्षिण का शासक घोषित कर दिया, मगर इस्माइल मख ने अपनी इच्छा से हसन, जिसकी उपाधि जफर खाँ थी के पक्ष में अपना सिंहासन त्याग दिया।
- 1347 में अबुल मुजफफर अलाउद्दीन बहमनशाह की उपाधि के साथ हसन गंगू का सिंहानारोहण हुआ। सिंहासनारोहण के पश्चात उसने गुलबर्गा को अपनी राजधानी चुना और उसका नाम अहसानाबाद कर दिया। उसने गैर मुस्लिम शासकों के प्रदेशों को एक-एक करके जीत लिया। अपने राज्य के प्रबन्ध के लिए उसने उसे चार प्रान्तों में – गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार व बीदर में बांटा व प्रत्येक के प्रबन्ध के लिए उसे प्रान्ताध्यक्ष को सौंपा जिसे सेना रखना आवश्यक था।
- 1358 में उसकी मृत्यु हो गयी। हसन के बाद उसका बडा पुत्र मुहम्मद शाह प्रथम गद्दी पर बैठा, उसका सारा जीवन वारंगल व विजय नगर के शासकों के विरूद्ध युद्ध करने में बीता, विजयनगर के साथ युद्ध का तत्कालीन कारण यह था कि उस दूत का अपमान किया गया जिसे वहाँ कर वसूलने के लिए भेजा गया था, विजयनगर का शासक बहमनी क्षेत्र में आ गया और उसने उतने भाग का संहार कर दिया जो कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच था ।
- मुहम्मद शाह प्रथम के बाद मुजाहिद शाह गद्दी पर बैठा, इसके समय भी विजयनगर के साथ युद्ध हुआ रायचूर दोआब संघर्ष का मुख्य कारण था।
- मुसलमानों की धोर पराजय हुई और एक सन्धि कर ली गयी। अगला शासक मुहम्मद शाह द्वितीय हुआ, वह शांतिप्रिय था। उसने अपना सारा समय विज्ञान व साहित्य की खोज में व्यय किया, उसने प्रसिद्ध फारसी कवि हफीज को आमन्त्रित किया, किन्तु कठिनाईयों के कारण हफीज भारत न आ सका, उसने अपनी एक कविता भेजी जिसके बदले में उसे काफी पुरस्कार दिया गया, 1397 में मुहम्मद शाह द्वितीय का निधन हो गया।
- 1397 में उसके सिंहासन पर अलाउद्दीन हसन बहमनी के पौत्र फीरोज ने अधिकार जमा दिया। 1398 में विजयनगर सम्राज्य के साथ युद्ध छिड़ गया, जिसका शासक मुदगल के दुर्ग में अधिकार जमाने के उद्देश्य से रायचूर दोआब में घुस आया था.
- 1403 में विजयनगर के साथ एक अन्य युद्ध छिड़ गया, इसका तत्कालीन कारण यह था कि विजयनगर का राजा मुद्गल के एक किसान की सुन्दर कन्या को छीनना चाहता था।
- फीरोज शाह ने उस कन्या का विवाह, जिसके कारण यह सारा उपद्रव हुआ अपने पुत्र से कर दिया। 1420 में विजयनगर और बहमनी साम्राज्य के बीच पुनः युद्ध छिड़ गया और अन्त में बहमनी राज्य केा पराजय मिली।
- 1422 में फिरोज को अपनी गद्दी विवश होकर अपने भाई अहमद शाहके पक्ष में छोडनी पडी। अहमद शाह ने 1422 से 1435 तक शासन किया। उसका अन्तिम अभियान तेलिंगाना के विरूद्ध हुआ। उसने अपनी राजधानी गुलबर्गा से हटाकर बीदर कर ली थी, 1435 में उसकी मृत्यु हो गयी।
- अहमदशाह के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन द्वितीय (1435-57) गद्दी पर बैठा, अलाउद्दीन द्वितीय इस्लाम का अनुयायी था और मुसलमानों के प्रति वह बहुत दयालु भी था। उसने मस्जिदें बनवायी सार्वजनिक शिक्षालय व कल्याणकारी संस्थाऐं स्थापित कीं जिनमें उसकी राजधानी बीदर में बना हुआ पूर्ण वैभव व शैली की शुद्धता वाला चिकित्सालय भी हैं,
- अलाउद्दीन द्वितीय के बाद उसका पुत्र हुमायूं गद्दी (1457 1461) पर बैठा, वह इतना निर्दयी था कि उसे “जालिम" या "र्निदयी" की उपाधि मिली हुमायूं के बाद उसका पुत्र निजाम शाह का राज्यारोहण हुआ वह अवयस्क था, इसलिए शासन प्रबन्ध उसकी माता मख्दूम जहाँ, ख्वाजा जहाँ और महमूद गवां की सहायता से करती थी।
- उसके काल में एक रूसी व्यापारी निकितन 1470 में भारत आया था। यद्यपि मुहम्मद शाह तृतीय का सैनिक जीवन विजय से भरा था परन्तु 1481 में उसकी एक महान् गलती महमूद गवां की हत्या कराना थी।
- फरिश्ता के अनुसार गवां दो पुस्तकों “रौजत-उल-इंशा" व "दीवान-ए-अशर" का लेखक है। लेकिन गवां के चरित्र पर एक धब्बा है, उसे गैर मुसलमानों को सताने में काफी आनन्द आता था, वह अपने स्वामी की भांति ही हिंदुओं के प्रति निर्दयी व उनके रक्त का प्यासा था।
- मुहम्मद शाह तृतीय के पश्चात उसके पुत्र महमूद शाह का सिहासनारोहण हुआ, राज्यारोहण के समय वह अवयस्क था, युवावस्था में आते आते वह दुराचारी हो गया। फैली हुई गडबड को देखकर प्रान्तों के अध्यक्षों ने लाभ उठाया और अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।
- बहमनी राज्य का अन्तिम शासक कलीम उल्लाह शाह था, 1524 में वह सिंहासन पर बैठा 1563 में उसकी मृत्यु हो गयी 180 वर्षों से चला आ रहा बहमनी साम्राज्य भी समाप्त हो गया।
- उल्लेखनीय है कि बहमनी राज्य में 18 शासक हुए 5 की हत्या हुई, दो असंयमी होने के कारण जाते रहे तीन को पद से हटाया गया और उनमें से दो को चक्षुरहित कर दिया गया।
बहमनी राज्य का विघटन
- बहमनी राज्य के विघटन के बार पांच स्वाधीन राज्यों का उदय हुआ। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बीजापुर का अदिलशाही राज्य था जिसका संस्थापक युसुफ आदिलशाह था। 1489-90 में उसने अपने को बीजापुर का स्वतन्त्र शासक बना लिया, यद्यपि वह अपने शिया वर्ग के प्रति रूचि रखता था किन्तु वह अन्य धर्मों के प्रति भी सहनशील था 1686 में औरंगजेब ने बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
- अहमदनगर का निजामशाही राज्य मलिक अहमद ने 1490 में स्थापित किया 1603 में बकबर ने अहमदनगरी को जीत लिया किंतु 1636 में इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।
- बरार में इमादशाही राज्य का संस्थापक फतह उल्लाह इमादशाह था वह 1490 में स्वाधीन बन बैठा, 1574 में अहमदनगर ने उसकों जीत कर अपने राज्य में मिला लिया।
- गोलकुण्डा का कुतुबशाही राज्य कुतुबशाह ने स्थापित किया जो बहमनी राज्य में एक तुर्क अधिकारी था, 1687 में औरंगजेब ने उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
- बीदर का बारिदशाही राज्य 1526-27 में अमीर अली बारिद ने स्थापित किया, 1618-19 में बीदर को बीजापुर में मिला दिया गया।
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