दादाभाई नौरोजी सिद्धांत |आर्थिक दोहन का सिद्धांत | Dada Bhai Naroji Aarthik Dohan Ka Sidhant
दादाभाई नौरोजी सिद्धांतआर्थिक दोहन का सिद्धांत
दादाभाई नौरोजी के बारे में जानकारी
- दादाभाई नौरोजी को भारतीय इतिहास में ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता है. वे भारतीय राष्ट्रवाद के उन पुरोधाओं में से थे जिन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी.
- 1886 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गये. इससे पूर्व ही 1867 में कांग्रेस के पूर्वगामी संगठन के रूप में उन्होंने लन्दन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की थी.
- एसोसिएशन के माध्यम से उन्होंने लन्दन में भारतीयों के पक्ष में समर्थन जुटाने का प्रयास किया था.
- दादाभाई नौरोजी पारसी समाज सुधार के कार्यों से भी जुड़े थे. इसके लिये 1851 में उन्होंने रहनुमाई मजदायसन सभा की स्थापना की थी और रफ्त गोफ्तार नामक पत्र निकाला था.
- उदारवादी विचारधारा से प्रभावित नौरोजी ने 1892 में लिबरल पार्टी के टिकट पर ब्रिटिश पॉर्लियामेण्ट का चुनाव लड़ा एवं एम.पी. (मेम्बर ओफ पॉर्लियामेण्ट) बन गये.
- 1906 मे दादाभाई नौरोजी ने पुन: कांग्रेस की कमान उस वक़्त संभाली जब कांग्रेस के भीतर नरमपंथी और गरमपंथी गुट संभावित टकराव की ओर बढ़ रहे थे.
- नौरोजी का व्यक्तित्व इस वैचारिक टकराव को एक वर्ष तक टालने मे सफल रहा. फिर भी, दादाभाई नौरोजी की राजनीतिक गतिविधियों की सबसे बड़ी उपलब्धि औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का आर्थिक विश्लेषण था.
दादाभाई नौरोजी द्वारा औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का आर्थिक विश्लेषण
- दादाभाई नौरोजी को हम उनके सर्वविदित लेखन दी पावर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया (1876) से पहचानते हैं.
- इस ग्रंथ मे उन्होंने न केवल भारतीय गरीबी की चर्चा की बल्कि इसके लिये अंग्रेज़ो की आर्थिक नीतियों को भी जिम्मेदार ठहराया. ब्रिटिश आर्थिक नीतियों को आलोचनात्मक दृष्टि से देखने का यह किसी भारतीय का पहला प्रयास था.
- इससे पूर्व ही 1870 में दादाभाई नौरोजी नें लन्दन में सोसाईटी ऑफ ऑर्ट्स की एक सभा में दी वांट्स एंड मीन्स ऑफ इंडिया शीर्षक से एक पत्र पड़ा. इसमें उन्होंने बताया था कि वर्तमान भारत अपनी आवश्यता के अनुपात मे उत्पादन करने में सक्षम नही है. फिर 1873 में दादाभाई नौरोजी ने भारतीय वित्त की एक कमेटी को भारतीय गरीबी के कारणों पर कुछ तर्क दिये.
- कमेटी ने इन तर्कों को स्वीकार तो कर लिया परंतु प्रकाशित नहीं किया. नौरोजी के यही लेख अंतत: पावर्टी में प्रकाशित हुये।
- नौरोजी ने आरम्भ से ही भारतीय गरीबी को अपने लेखों का मुख्य विषय बनाया. पावर्टी मे ब्रिटिश शासन की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता को अपनी न्यूनतम 'आवश्यकताओं को पूरा करने भर भी नही मिल रहा है.
- नौरोजी ने उदार अंग्रेज़ों को चेताया कि गरीबी के समाधान पर ही ब्रिटेन के भारत पर असली उपकार को तय होना है.
- इसप्रकार उन्होने ब्रिटिश शासन की इस अवधारणा पर कि ब्रिटेन का भारत में शासन एक कल्याणकारी राज है- सवालिया निशान लगा दिया. ब्रिटिश शासन को लेकर आरम्भ में तो नौरोजी का यह विचार था कि अंग्रेज़ों को भारत की वास्तविक दशा का ज्ञान नही है, और यदि उन्हें इस बारे में बताया जाये तो औपनिवेशिक शासन की नीतियाँ बदलेंगी. परंतु जैसे-जैसे उनकी ये आशाएँ कमज़ोर होती गयीं ब्रिटिश शासन की उनकी आलोचना भी तीखी होती चली गयी.
- 1895 में दादाभाई नौरोजी कहा कि भारत भूख से मर रहा है. वहीं 1900 तक वे भारतीयों तुलना अमेरिकी गुलाम से करते हुए अमेरिकी गुलाम की दशा को एक भारतीय से बेहतर बता रहे थे.
- दादाभाई नौरोजी ने भारत की गरीबी को उत्पादन की कमी से जोड़ा जबकि इसी समय अंग्रेज़ लेखक इसे विशाल जनसंख्या से जोड़ रहे थे.
- लार्ड कर्जन ने 1888 में एक सरकारी सभा में भारतीय गरीबी के लिये सघन जनसंख्या और जनसंख्या की तेज़ वृद्धि दर को दोषी ठहराया. जनसंख्या की वृद्धि एवं गरीबी का यह सम्बन्ध मालथस के अध्ययन पर आधारित था.
- दादाभाई नौरोजी ने इसके विपरीत तर्क दिया कि अधिकतर पश्चिमी यूरोपीय देश भारत से कही सघन बसे हैं फिर भी उन्होंने आर्थिक समृद्धि प्राप्त की है.
- जनसंख्या की वृद्धि एवं गरीबी के अंतर्सम्बन्द्ध को भी नौरोजी ने नकार दिया. उन्होंने तर्क दिया कि इंग्लैण्ड सहित पश्चिमी यूरोप के देशों की जनसंख्या भारत के मुकाबले कहीं तेजी से बढ़ी है तथापि उनकी भौतिक समृद्धि में वृद्धि हुई है.
- निष्कर्षतः नौरोजी ने न्यून उत्पादन को भारत की गरीबी का मुख्य कारण माना. इसप्रकार दादाभाई नौरोजी के विचार से तेज़ पूँजीवादी उत्पादन एवं औद्योगीकरण ही भारत की गरीबी दूर करने का एकमात्र समाधान हो सकता था.
- नौरोजी और उनके काल के दूसरे आर्थिक राष्ट्रवादियों ने गरीबी को उत्पादन के अनुचित बंटवारे से जोड़कर नहीं देखा. अत: गरीबी के एक महत्वपूर्ण कारण के रूप में वर्गीय शोषण की प्रवृत्ति को वे नहीं पहचान सके. फिर भी औपनिवेशिक शोषण को पहचान कर राष्ट्रवाद के उदभव एवं विकास में उन्होने अमूल्य योगदान दिया.
- इसमे सबसे महत्वपूर्ण था सम्पत्ति के दोहन का सिद्धांत सम्पत्ति के दोहन का सिद्धांत संभवत: दादाभाई नौरोजी के आर्थिक विश्लेषणों की सबसे बड़ी उपलब्द्धि थी.
- भारत की गरीबी के सबसे महत्वपूर्ण कारण के रूप में उन्होंने भारतीय सम्पत्ति के इंग्लैण्ड पलायन को दोषी माना. सम्पत्ति के दोहन का अर्थ था भारत की राष्ट्रीय सम्पत्ति अथवा सलाना उत्पादन का इंग्लैण्ड को निर्यात, जिसके बदले में भारत को कोई भी भौतिक लाभ नहीं मिल रहा था.
- दादाभाई नौरोजी ने 1867 से ही इस सवाल को उठाना आरम्भ कर दिया था जब उन्होंने लन्दन में स्थापित ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की एक सभा में अपना पत्र ‘इंग्लैण्ड्स डेब्ट टू इंडिया’ पड़ा था. इस पत्र में नौरोजी ने कहा कि भारतीय राजस्व का लगभग एक-चौथाई हिस्सा उस देश से इंग्लैण्ड को स्थानांतरित हो जाता है. उन्होंने अंग्रेज़ों को सलाह दी कि भारत में उत्पादन को बढ़ाना चाहिये ताकि वह देश ब्रिटिश शासन और दोहन के भार को सह सके तथा गरीब न हो.
- 1876 में पावर्टी के लेखन तक दादाभाई नौरोजी ने 'दोहन सिद्धांत' को पूर्ण विकसित कर लिया था. अब नौरोजी ने दोहन सिद्धांत के प्रचार में भी कोई कसर नही छोड़ी. अखबारों, भाषणों, अधिकारियों से पत्र-व्यवहार, विभिन्न कमीशनों एवं कमेटियों के समक्ष तथ्य प्रस्तुत करना आदि सभी नरमपंथी तरीकों को दादाभाई नौरोजी ने दोहन सिद्धांत के प्रचार का माध्यम बनाया.
- उन्होंने इसे भारत में ब्रिटिश शासन का मूलभूत पाप बताया. साधारण: राष्ट्रवादी आर्थिक विश्लेषकों ने आयात-निर्यात के अंतर को सम्पत्ति के दोहन के रूप में देखा था. दादाभाई नौरोजी ने तर्क दिया कि भारतीय निर्यात की कीमत निर्यात बन्दरगाह पर तय की जा रही है, जिससे निर्यात का वास्तविक मूल्य कम हो जाता है और भारत को निर्यात का लाभ नही मिल रहा है.
- आर्थिक राष्ट्रवादियों के अनुसार दोहन में अंग्रेज़ प्रशासकों (नागरिक सैनिक) के वेतन, अंग्रेज़ डॉक्टरों, वकीलों एवं दूसरे कर्मचारियों की आय एवं लाभ, इंग्लैण्ड में रह रहे अंग्रेज़ अधिकारियों की पेंशन एवं भत्ते आदि को शामिल किया जा सकता था. दादाभाई नौरोजी ने भी अक्सर भारतीय प्रशासन में आवश्यकता से अधिक अंग्रेज़ों के रोज़गार मे होने को दोहन का मुख्य बिन्दू बताया. इसके अतिरिक्त दादाभाई नौरोजी ने घरेलू खर्ची (होम चार्जेज़ ) को भी दोहन का एक माध्यम बताया.
- भारत सरकार के वे खर्चे जो इंग्लैण्ड में भारत सचिव के द्वारा किये जाते थे होम चार्जेज़ कहलाते थे. इसमें भारतीय ऋण पर ब्याज, रेलवे के विकास में लगाये जा रहे धन पर गारंटीशुदा लाभ, भारत भेजी जाने वाली सैन्य सामग्री की कीमत, इंग्लैण्ड मे देय दूसरे नागरिक एवं सैनिक खर्चे, लन्दन स्थित इंडिया ऑफिस के खर्चे तथा भारत सरकार के यूरोपीय अधिकारियों की पेंशन एवं भत्ते आदि सम्मिलित थे.
- दूसरे राष्ट्रवादियों ने निजी विदेशी पूँजी निवेश पर लाभ को भी दोहन से जोड़ा. ये पूँजी सबसे अधिक रेलवे के विकास में लग रही थी, जिसमें निवेश पर लाभ की गारंटी भारत सरकार ने दे रखी थी. संक्षेप में कहा जाये तो दादाभाई नौरोजी के विश्लेषण एवं प्रचार ने भारतीय राष्ट्रवाद के प्रारम्भिक चरण में आर्थिक दोहन को राष्ट्रवादी प्रचार का मुख्य हथियार बना दिया था.
- शीघ्र ही दूसरे राष्ट्रवादियों ने भी इसे मुद्दा बनाया. महादेव गोविन्द रानाडे ने 1872 मे की एक सभा मे पूँजी एवं संसाधनों के दोहन की घोर निन्दा की तथा तर्क दिया कि भारत की राष्ट्रीय आय का एक-तिहाई से अधिक ब्रिटिश द्वारा ले जाया जा रहा है.
- 1873 में भोलानाथ चन्द्र ने कहा कि पहले तो कम्पनी भारतीय राजस्व का केवल एक हिस्सा ही ले जा रही थी, परंतु अब हज़ारों तरीकों से भारतीय धन लूटा जा रहा है.
प्रश्न-
- दादाभाई नौरोजी सिद्धांत
- धन निष्कासन का सिद्धांत क्या है
- धन निष्कासन का सिद्धांत किसने दिया
- भारतीय योगदान में दादाभाई नौरोजी का योगदान क्या है
- धन की निकासी का सिद्धांत किसने दिया
- धन-निष्कासन का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया
- धन की निकासी पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
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