इस्लाम के संरक्षक के रूप में बादशाह औरंगज़ेब Emperor Aurangzeb as protector of Islam
इस्लाम के संरक्षक के रूप में बादशाह औरंगज़ेबEmperor Aurangzeb as protector of Islam
साम्राज्य में इस्लाम के आदर्शों तथा परम्पराओं की पुनर्स्थापना
- उत्तराधिकार के युद्ध में औरंगज़ेब ने स्वयं को इस्लाम के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत कर उलेमा वर्ग तथा मुस्लिम अमीरों का समर्थन प्राप्त किया था और वह उनके सहयोग से अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहा था।
- बादशाह बनने के बाद भी उसे इस्लाम के संरक्षक के रूप में अपनी छवि को पूर्ववत बनाए रखना आवश्यक हो गया था।
- सिद्धान्ततः वह हिन्दुस्तान जैसे दारुल हर्ब (विधर्मियों का देश) को दारुल इस्लाम (इस्लाम के अनुयायियों का देश) में परिवर्तत करने के लिए वचनबद्ध था।
- उसके शासन में इस्लाम को राज-धर्म घोषित किया गया। औरंगज़ेब हनाफ़ी सम्प्रदाय का कट्टर सुन्नी मुसलमान था अतः उसने इसी सम्प्रदाय की आस्थाओं व परम्पराओं को अपने राज्य में प्रतिष्ठित करना अपना कर्तव्य समझा।
औरंगज़ेब ने अपने दरबार की गैर-मुस्लिम तथा हनाफ़ी मत के प्रतिकूल परम्पराओं को हटा दिया।
- उसने अपने दरबार में रंग-बिरंगे तथा रेशमी वस्त्रों के पहनने पर पाबन्दी लगा दी।
- औरंगज़ेब ने संगीत, इतिहास तथा चित्रकला को इस्लाम में वर्जित मानकर उनको राज्य की ओर से दिया जाने वाला संरक्षण समाप्त कर दिया। उसने होली, दिवाली, वसन्त, नौरोज़ जैसे गैर-मुस्लिम उत्सवों का राज्य की ओर से मनाया जाना समाप्त कर दिया । झरोखा दर्शन, तुलादान, पैबोस तथा सिजदा करने जैसी गैर मुस्लिम परम्पराओं का भी परित्याग कर दिया गया।
- औरंगज़ेब ने अपने सिक्कों पर कल्मा का अंकित किया जाना समाप्त करा दिया क्योंकि ये सिक्के विधर्मियों के हाथ में भी जाते थे।
- अपने राज्य में मुसलमानों के धार्मिक व नैतिक जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से उसने मुहतसिबों की नियुक्ति की ।
- औरंगज़ेब ने हज-यात्रा के लिए अपनी मुस्लिम प्रजा को विशेष सुविधाएं दीं। मक्का मदीना के लिए उसने निरन्तर उपहार भेजे। दीनी तालीम के प्रसार व मुसलमानों के अनाथ, बेसहारा बच्चों और विधवाओं के पालन हेतु उसने विशेष व्यवस्था कराई।
औरंगज़ेब की धार्मिक उत्पीड़न की नीति
1. औरंगज़ेब ने सन् 1659 में दाराशिकोह को धार्मिक अदालत से इस्लाम विरोधी होने के कारण प्राणदण्ड दिलवाया। सन् 1661 में औरंगज़ेब ने दारा के मित्र और प्रसिद्ध शायर व सूफ़ी साधक सरमद को भी उसके उन्मुक्त विचारों के कारण धार्मिक अदालत द्वारा प्राणदण्ड दिलवाया गया। अपने उस्ताद रह चुके मुल्ला शाह क़ादरी को भी उसने उनकी उदार विचारधारा के लिए प्रताड़ित किया।
2. सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर को बादशाह की धर्म परिवर्तन की नीति की आलोचना करने और स्वयं धर्म परिवर्तन कर मुसलमान न बनने पर दिल्ली की कोतवाली में प्राणदण्ड दिया गया।
3. औरंगज़ेब जब दक्षिण का सूबेदार था तभी से बीजापुर और गोलकुण्डा के शिया राज्यों के प्रति उसके हृदय में वैमनस्य का भाव था। सन् 1686 में बीजापुर तथा सन् 1687 में गोलकुण्डा पर मुगलों का अधिकार होने के बाद उसने वहां प्रचलित सभी शिया परम्पराओं को समाप्त कर दिया।
4. औरंगज़ेब ने अकबर के मकबरे में बने चित्रों पर चूना पुतवा दिया क्योंकि इस्लाम में चित्रकला का निषेध बताया गया है।
5. मारवाड़ के शासक जसवंत सिंह की सन् 1678 में जमरूद में हुई मृत्यु में औरंगज़ेब का हाथ था। इस शक्शिाली राजपूत शासक की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब की धार्मिक उत्पीड़न की नीति और अधिक उग्र हो गई। उसने जसवंत सिंह के नवजात पुत्रों को बलात् मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया जो कि राजपूत स्वतन्त्रता संग्राम का मुख्य कारण बना। सन् 1679 में औरंगज़ेब ने 115 साल के बाद गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाने वाला धार्मिक कर जज़िया फिर से लागू कर दिया।
6. औरंगज़ेब ने बलात् एवं धन व पदोन्न्ति का लालच देकर धर्म परिवर्तन की नीति को प्रोत्साहन दिया। उसने मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों को सार्वजनिक रूप से अपना धर्म पालन करने तथा त्यौहार मनाने की अनुमति नहीं दी। उसने गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध सैनिक अभियानों को जिहाद का नाम दिया और अपने तथाकथित जिहाद के बाद उसने हर बार उनके पूजास्थलों का विध्वंस किया। काशी विश्वनाथ के मन्दिर और मथुरा में कृष्ण जन्म मन्दिरों के प्रांगण में उसने मस्जिदों का निर्माण कराया। उसने राजपूतों के अतिरिक्त सभी हिन्दुओं के पालकी या घोड़े पर बैठने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। औरंगज़ेब ने मुसलमानों की तुलना में गैर-मुस्लिमों पर जज़िया लगाने के अतिरिक्त व्यापारिक करों का भी अधिक बोझ डाला। उसके काल में राजपूत मनसबदार तो उच्च पदों पर बने रहे किन्तु मध्यम स्तर के प्रशासनिक पदों पर मुसलमानों का वर्चस्व स्थापित हो गया।
औरंगज़ेब की धार्मिक उत्पीड़न की नीति का विरोध
1 जाट प्रतिरोध
- औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल के पहले दस वर्षों में धार्मिक उत्पीड़न की नीति को सीमित क्षेत्र में ही लागू किया किन्तु इसके बाद बढ़ते हुए हिन्दू प्रतिरोध की प्रतिक्रिया में वह अपने म चक्र में और भी निर्मम हो गया। सन् 1669 में मथुरा के फ़ौजदार अब्दुन नबी की धार्मिक उत्पीड़न की नीति के विरोध में तिलपट के गोकुल जाट के नेतृत्व में विद्रोह हुआ। अब्दुन नबी मारा गया। जाट विद्रोह का दमन करने के बाद केशव राय मन्दिर को ध्वस्त कर दिया गया | गोकुल जाट के दमन के बाद भी राजा राम तथा चूरामन जाट के नेतृत्व में जाट प्रतिरोध अगले 40 वर्षों तक जारी रहा।
2 सतनामी प्रतिरोध
- नारनौल के कृषक समुदाय सतनामियों ने अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षार्थ मुगल सत्ता का विरोध किया और उनके विरुद्ध कई मोर्चों पर सफलता भी प्राप्त की। बड़ी कठिनाई से मुगलों को सतनामियों का दमन करने में सफलता मिल सकी।
3 सिक्खों का प्रतिरोध
- सन् 1675 में गुरु तेगबहादुर द्वारा अपने धर्म की रक्षार्थ बलिदान के लगभग दो दशक बाद उनके पुत्र गुरु गोविन्द ने खालसा की स्थापना कर शान्तिप्रिय सिक्खों को एक लड़ाकू और जुझारू कौम में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने आजीवन मुगलों का विरोध किया और पंजाब पर उनकी पकड़ को कमज़ोर किया।
4 राजपूत प्रतिरोध
- सन् 1678 में जोधपुर के शासक राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब द्वारा उनके मरणोपरान्त पुत्रों को इस्लाम धर्म में दीक्षित करने के प्रयास को राजपूतों ने अपने धर्म पर आघात मानकर मुगलों के विरुद्ध अपना स्वतन्त्रता अभियान छेड़ दिया। धीरे-धीरे विद्रोह की आग पूरे राजपूताना में फैल गई। औरंगज़ेब द्वारा सन् 1679 में जज़िया का फिर से लगाया जाना राजपूतों को स्वीकार्य नहीं था। मेवाड़ के राणा राजसिंह तथा मारवाड़ के दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में राजपूत स्वतन्त्रता आन्दोलन ने मुगलों की शक्ति को क्षीण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5 बुन्देला राजपूतों का प्रतिरोध
- बुन्देला शासक छत्रसाल ने मुगलों की धार्मिक उत्पीड़न की नीति का विरोध करने अपने धर्म की रक्षार्थ बुन्देलों को संगठित किया और दक्षिण में औरंगज़ेब की व्यस्तता का लाभ उठाकर मुगलों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया छत्रसाल को बुन्देलखण्ड में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करने में सफलता मिली।
6 मराठा प्रतिरोध
- शिवाजी द्वारा प्रतिपादित 'हिन्द स्वराज्य' की अवधारणा का मुख्य आधार अपने धर्म राजनीतिक हितों की रक्षा करना था। इस विषय पर औरंगज़ेब की दक्षिण नीति तथा ब्लाक पॉच की इकाई चार - ‘मराठों के उत्थान के कारण तथा पेशवाओं के अंतर्गत मराठा प्रशासन के अन्तर्गत विस्तार से चर्चा की जाएगी।
औरंगज़ेब की धार्मिक नीति का आकलन
- औरंगज़ेब ने अपने राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मुस्लिम उलेमाओं, अमीरों तथा आम मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का लाभ उठाया था किन्तु बादशाह बनने के बाद इस्लाम के संरक्षक की उसकी छवि स्वयं उसके लिए और उसके साम्राज्य के लिए सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आई थी। औरंगज़ेब की धार्मिक उत्पीड़न की नीति के देश-व्यापी विरोध ने औरंगज़ेब के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया था। डॉक्टर अतहर अली और ज़ेड0 ए0 फ़ारूकी जैसे विद्वानों ने औरंगज़ेब द्वारा धार्मिक उत्पीड़न करने के आरोपों को अतिशयोक्तिपूर्ण माना है किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मुगल साम्राज्य की आर्थिक अवनति, उसके विघटन और पतन के लिए औरंगज़ेब की धार्मिक उत्पीड़न की नीति काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार थी।
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