बादशाह शेर शाह |शेर शाह का प्रशासन Emperor Sher Shah
बादशाह शेर शाह Emperor Sher Shah
फ़रीद से लेकर शेर शाह बनने की जीवन यात्रा
- फ़रीद खाँ बिहार में सहसराम और खवासपुर टांडा के अफ़गान जागीरदार हसन का ज्येष्ठतम पुत्र था।
- जौनपुर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर फ़रीद खाँ ने लगभग 20 वर्षों तक अपने पिता की जागीर का कुशल प्रबन्धन किया।
- पारिवारिक विवाद के कारण फ़रीद खाँ आगरा चला गया। बाद में उसने बिहार के सूबेदार बहार खाँ लोहानी तदन्तर सुल्तान मुहम्मद के यहां नौकरी कर ली।
- सुल्तान मुहम्मद ने फ़रीद द्वारा तलवार के एक वार से शेर मारने पर उसे शेर खाँ की उपाधि दी और साथ ही उसे अपने अल्पवयस्क पुत्र का शिक्षक भी नियुक्त किया।
- लोहानी कबीले के अमीरों के विरोध के कारण शेर खाँ बाबर की सेना में का एक पदाधिकारी बन गया। अपनी 15 महीने की मुगल सेवा में उसने मुगल सैन्य प्रणाली का अवलोकन किया।
- मुगलों की सेवा छोड़कर शेर खाँ एक बार फिर बिहार के शासक सुल्तान मुहम्मद की सेवा में आ गया और उसके पुत्र जलाल खाँ का फिर से शिक्षक बन गया।
- अपने पिता की मृत्यु के बाद जलाल खाँ बिहार का शासक बना किन्तु वास्तविक सत्ता उसके संरक्षक शेर खाँ के पास रही। बाद में जलाल खाँ तथा अपने विरोधी अफ़ग़ान अमीरों को पराजित कर शेर खाँ स्वयं बिहार का शासक बन बैठा।
- शेर खाँ ने किस प्रकार बंगाल के शासक और हुमायूं पर विजय प्राप्त की और आगरा और दिल्ली पर अधिकार कर तथा मुगलों को हिन्दुस्तान से निष्कासित कर किस प्रकार वह शेर शाह के रूप में हिन्दुस्तान का बादशाह बना.
शेर शाह की साम्राज्य विस्तार की नीति
- शेर शाह अपनी उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा कर वहां से मुगलों के आक्रमणों की सम्भावना को समाप्त करना चाहता था। इसके लिए मुगलों के मित्र गक्खरों और बलूचों को नियन्त्रित करने के लिए उसने झेलम नगर के निकट रोहतास गढ़ का निर्माण कर वहां एक विशाल अफ़गान सेना तैनात की। शेर शाह की ओर से हैबत खाँ ने बलूचियों का दमन किया।
- बंगाल के सूबेदार खिज्र खाँ के विद्रोह को शेर शाह ने स्वयं अभियान कर कुचला।
- सन् 1542 में ग्वालियर और मालवा पर अधिकार करने के लिए शेर शाह ने सफल अभियान किया और फिर उसने रायसीन व चन्देरी के शासक पूरनमल पर आक्रमण कर उसे पराजित किया।
- शेर शाह के आदेश पर हैबत खाँ ने फ़तेह खाँ जाट को पराजित किया और फिर उसने मुल्तान में स्वतन्त्र शासक बन बैठे बख्सू लंगाह को पराजित किया। सिंध के शासक ने भी शेरशाह की आधीनता स्वीकार कर ली।
- शेर शाह ने राजपूताने के सबसे शक्तिशाली मारवाड़ के मालदेव के दमन हेतु अभियान किया। मार्च, 1544 में उसने मारवाड़ के विरुद्ध सफलता प्राप्त की। मेवाड़ के विरुद्ध अभियान कर शेरशाह ने बिना युद्ध किए ही अल्पवयस्क राणा उदय सिंह को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया और चित्तौड़ पर अधिकार कर वहां अपने अधिकारी नियुक्त किए।
- राजपूताने की विजय के बाद बुन्देलखण्ड पर अधिकार करने के लिए शेरशाह ने कालिन्जर के किले का घेरा डाला। एक वर्ष तक घेरा डालने के बाद बारूद से किले की दीवारों को ध्वस्त करा समय वह विस्फोट से वह धायल हो गया किन्तु वह अपनी मृत्यु से पूर्व कालिंजर का किला जीतने में सफल रहा।
- अपनी मृत्यु से पूर्व शेर शाह ने उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंध्याचल तक और पश्चिम में गक्खर से लेकर पूर्व में सोनारगांव तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था।
शेर शाह का प्रशासन
शेर शाह का केन्द्रीय प्रशासन
1. शेर शाह ने अफ़गान राजत्व के सिद्धान्त का तिरस्कार करते हुए तुर्कों की शासक की निरंकुशता के सिद्धान्त को अपनाया। अपने अधीनस्थों की महत्वाकांक्षाओं और उनके संसाधनों पर अंकुश लगाने के लिए शासन की समस्त शक्तियां उसने अपने हाथ में रखीं और अपने किसी भी अधिकारी को उसने स्वतन्त्र प्रभार नहीं दिया साथ ही साथ उसने किसी भी उच्च अधिकारी को एक ही स्थान पर टिक कर अपनी शक्ति बढ़ाने का मौका न देने के लिए अधिकारियों के नियमित स्थानान्तरण क व्यवस्था की।
2. शेर शाह के केन्द्रीय प्रशासन में चार विभाग
मुख्य थे -
दीवान-ए- विज़ारत का प्रमुख वज़ीर था। उसका
दायित्व वित्तीय प्रशासन था और उसे प्रान्तीय वित्त प्रशासन पर भी नज़र रखनी थी।
दीवान-ए-अर्ज़ का प्रमुख आरिज़-ए-मुमालिक होता
था जो कि सैन्य प्रशासन सम्भालता था। दीवान-ए-रसालत के प्रमुख को विदेश विभाग
देखना होता था।
दीवान-ए-इंशा का प्रमुख दबीर-ए-खास था जो कि
केन्द्र तथा प्रान्तों के मध्य आदेश, पत्र-व्यवहार आदि काम देखता था। इन चार
विभागों के अतिरिक्त दो अन्य विभाग भी महत्वपूर्ण थे -
दीवान-ए- कज़ा का प्रमुख मुख्य काज़ी-उल- कज़ात
होता था। इसका दायित्व न्याय प्रशासन था। बरीद-ए-मुमालिक गुप्तचर विभाग का प्रमुख
होता था। प्रान्तीय गुप्तचरों की रिपोर्ट पर कार्यवाही करना भी उसका दायित्व था।
शेर शाह का प्रान्तीय तथा सरकार प्रशासन
प्रान्तों में मुख्य सैनिक एवं प्रशासनिक
अधिकारी शिक़दार होता था तथा उसके ऊपर नज़र रखने के लिए एक नागरिक अधिकारी काज़ी
फ़ज़ीलत होता था। शेर शाह ने बंगाल में भविष्य में महत्वाकांक्षी सूबेदारों द्वारा
विद्रोहों की सम्भावना समाप्त करने के उद्देश्य से सूबेदारी की संस्था को समाप्त
कर प्रान्त को सरकारों में विभाजित कर दिया था। प्रोफ़ेसर के० आर० कानूनगो के
अनुसार शेर शाह ने अपने साम्राज्य में प्रान्तीय इकाइयों को भंग कर सबसे बड़ी इकाई
सरकार को बना दिया था। सरकार में मुख्य सैनिक एवं प्रशासनिक अधिकारी
शिक़दार-ए-शिक़दारान होता था तथा न्यायाधिकारी मुन्सिफ़-ए-मुन्सिफ़ान होता था।
परगना तथा ग्राम प्रशासन
- शेरशाह ने परगनों में सरकारों की भांति एक-दूसरे से स्वतन्त्र दो मुख्य अधिकारी शिक़दार तथा मुन्सिफ़ नियुक्त किए। इनके अतिरिक्त फ़ोतदार (खजान्ची) तथा हिन्दी और फ़ारसी भाषा के दो कारकुन (लेखक) होते थे। शेर शाह ने ग्राम प्रशासन लगभग स्थानीय निवासियों के ऊपर ही छोड़ दिया था। ग्राम का एक मुखिया होता था तथा लेखा-जोखा रखने का दायित्व सरकार द्वारा नियुक्त पटवारी का होता था।
शेर शाह का सैन्य प्रशासन
- शेर शाह ने अपने नियन्त्रण में एक स्थायी सेना का गठन किया। इसके चार अंग थे. घुड़सवार सेना, पैदल सेना, हस्ति सेना और तोप खाना नियमित निरीक्षण, हुलिया और घोड़ों को दागने की प्रथा को फिर से लागू कर उसने सैन्य प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर किया तथा अनुशासन स्थापित किया। सैनिकों की भर्ती और उनकी पदोन्नति में उनकी योग्यता को ही आधार बनाया जाता था। शेर शाह ने पुराने दुर्गों की मरममत और नए दुर्गों का निर्माण कर सीमा सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध किया तथा उनमें सेना तैनात की।
शेर शाह का न्याय प्रशासन एवं शान्ति व्यवस्था
- शेर शाह निष्पक्ष न्याय वितरण को सबसे पुनीत धार्मिक कर्तव्य मानता था। उसकी निष्पक्ष न्याय व्यवस्था में जाति, धर्म, आर्थिक अथवा सामाजिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं था। उसका दण्ड विधान कठोर था। फ़ौजदारी के मामले शिक़दार तथा दीवानी के मामले का निपटाते थे। शेरशाह ने अपराध के नियन्त्रण के लिए स्थानीय दायित्व का सिद्धान्त लागू किया था। अपराधी न पकड़ पाने पर सम्बन्धित अधिकारी को उस अपराध के लिए दण्डित किया जाता था। गांवों के मुकद्दमों पर भी अपराध नियन्त्रण हेतु इसी प्रकार का दायित्व होता था।
शेर शाह का भू-राजस्व प्रशासन
- सहसराम तथा टांडा-खवासपुर के अपने भू-राजस्व प्रशासन के अनुभव का लाभ उठाकर बादशाह शेर शाह ने भू-राजस्व प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर कर उसे अधिक सक्षम, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया। भू-राजस्व के निर्धारण को वैज्ञानिक आधार देने के लिए उसने भूमि की नापजोख तथा औसत उपज के आधार पर ज़मीन का तीन किस्मों (उत्तम, मध्यम और निम्न) में वर्गीकरण किया। उसने अनुमानित लगान (जमा) और वास्तव में वसूला गया लगान (हासिल ) का अन्तर कम करने के लिए ठोस उपाय किए। लगान का भुगतान नकदी में किया जाना निश्चित किया गया। किसानों को भूमि पर अधिकार सम्बन्धी पट्टे दिए गए तथा उनको लगान सम्बन्धी अपने कर्तव्यों के लिए कुबूलियत भी देनी पड़ी। सैनिक अभियानों के समय किसानों को उनकी फ़सल के नुक्सान की भरपाई की व्यवस्था की गई तथा आपदाकाल में उनको लगान में छूट व अन्य प्रकार की सहायता की व्यवस्था भी की गई।
शेर शाह का मुद्रा सुधार
- शेर शाह ने स्वर्ण, रजत तथा ताम्र मुद्राएं चलाई। उसकी मुद्राए गोलाकार तथा वर्गाकार थीं। शेर शाह के सिक्कों में अरबी लिपि में उसका नाम अंकित होता था तथा कुछ मुद्राओं इस हेतु देवनागरी लिपि क प्रयोग भी किया गया था। उसके राज्य में 23 टकसाल थीं। शेर शाह का चाँदी का 178 ग्रेन का चाँदी का सिक्का अकबर तथा ब्रिटिश भारतीय शासकों के चाँदी के रुपये का आधार बना।
शेर शाह का व्यापार एवं वाणिज्य का विकास
- शेर शाह ने व्यापार एवं वाणिज्य के प्रोत्साहन के लिए साम्राज्य में व्यापार कर केवल दो बार साम्राज्य में प्रवेश करते समय तथा सामान की बिक्री के समय लिया जाना सीमित किया। व्यापारिक केन्द्रों तक पहुंचने के लिए सड़कों तथा सरायों के निर्माण और मार्ग की समुचित सुरक्षा द्वारा भी व्यापारियों को सुविधाएं दी गईं।
शेर शाह के सार्वजनिक निर्माण के कार्य
- शेर शाह एक महान निर्माता था। उसने झेलम नदी पर रोहतासगढ़ का निर्माण करवाया। दिल्ली में उसने एक नगर बसाया। चार प्रमुख राजमार्गों, सैकड़ों अन्य मार्गों तथा 1700 सरायों के निर्माण व मरम्मत के अतिरिक्त उसने हज़ारों कुओं, सैकड़ों तालाबों, मस्जिदों, दवाखानों और मदरसों का निर्माण कराया। दिल्ली की किला-ए कोहना मस्जिद तथा सहसराम में उसका मक़बरा मध्यकालीन उसने सड़कों के किनारे लाखों पेड़ लगवाए। वास्तुकला की अनुपम धरोहर हैं।
शासक के रूप में शेर शाह का आकलन
- शेर शाह ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, लगन, सदाशयता, कठोर अनुशासन, न्याय प्रियता तथा दूरदृष्ट अपने पाँच वर्ष के शासनकाल में अविश्वसनीय शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित की। उसने साम्राज्य विस्तार के साथ उसकी सुरक्षा के भी समुचित प्रबन्ध किए। शेर शाह हमेशा ज़मीन से जुड़ा रहने के कारण व्यावहारिक बुद्धि का प्रयोग करता था। उसने लोक-कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को साकार करने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की। शेर शाह की उपलब्धियां अशोक महान अथवा अकबर महान की उपलब्धियों के समकक्ष नहीं रखी जा सकतीं पर इसमें सन्देह नहीं कि वह मध्यकालीन भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक था।
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