कुतबुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना |Establishment of slave dynasty by Qutbuddin Aibak
कुतबुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना
- सन् 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में मुहम्मद गोरी की निर्णायक विजय तथा भारत में राजनीतिक सत्ता के परिवर्तन के फलस्वरूप दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ईसवी में हुई थी।
- दिल्ली सल्तनत के प्रारम्भिक चरण तीन राज्य वंशों के संस्थापक अपने प्रारम्भिक जीवन में गुलाम रह चुके थे इसलिए भ्रमवश इन तीन राज्य वंशों को एक साथ मिलाकर प्रायः गुलाम वंश के नाम से जाना जाता है।
- दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान कुतबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत को गज़नी साम्राज्य से अलग कर व्यावहारिक दृष्टि से एक स्वतन्त्र राज्य का रूप प्रदान किया परन्तु उसको ठोस प्रशासनिक ढांचा व राजनीतिक स्थायित्व प्रदान करने का श्रेय इल्तुतमिश को जाता है।
- इल्तुतमिश की पुत्री रज़िया ने सुल्तान के रूप में अपनी योग्यता का परिचय दिया परन्तु अमीरों के प्रबल विरोध के कारण उसका पतन हो गया।
- सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में वास्तविक शक्ति उसके वज़ीर गियासुद्दीन बलबन के हाथों में रही।
- सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद बलबन खुद सुल्तान बन बैठा। बलबन तथाकथित गुलाम वंश का सबसे शक्तिशाली एवं सफल शासक था, उसने लौह एवं रक्त की नीति को अपना कर अपने राज्य को सुदृढ़ किया। बलबन ने अपने राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उसने राजत्व के दैविक सिद्धान्त का पोषण कर सुल्तान के पद और उसकी प्रतिष्ठा में अपार वृद्धि की और शासक के अधिकार व उसके कर्तव्य को एक नया आयाम प्रदान किया।
- तथाकथित गुलाम वंश के शासकों ने 13 वीं शताब्दी में उत्तर भारत में मुस्लिम शासन को स्थायित्व प्रदान करने में आंशिक सफलता अवश्य प्राप्त की किन्तु प्रशासनिक दृष्टि से उनकी उपलब्धियां बहुत सीमित रहीं। इस काल में आन्तरिक विद्रोह तथा वाह्य आक्रमणों की समस्या निरन्तर बनी रही। इस काल में शासकों ने प्रजा के हित में कार्य करने का कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं किया और न ही प्रशासनिक ढांचे को सुदृढ़ करने में कोई सफलता प्राप्त की, उनको प्रजा के हृदय पर राज करने में तनिक भी सफलता नहीं मिली और उनका अस्तित्व केवल तलवार के बल पर बना रह सका।
सुल्तान बनने से पहले कुतबुद्दीन ऐबक के कार्य
कुतबुद्दीन ऐबक के बारे में जानकारी
- तुर्क माता-पिता की संतान कुतबुद्दीन ऐबक पहले काज़ी फखरुद्दीन का गुलाम था। उसके स्वामी ने उसे शिक्षित किया।
- उसके स्वामी की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने कुतबुद्दीन को बेच दिया और वह मुहम्मद गोरी का गुलाम बन गया और अपनी प्रतिभा के बल पर वह मुहम्मद गोरी का महत्वपूर्ण अमीर बन गया।
- ऐबक ने तराइन के युद्ध में मुहम्मद गोरी को विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- मुहम्मद गोरी ने उसे अपने साम्राज्य के भारतीय भाग का वाइसराय नियुक्त किया और अपने प्रतिनिधि के रूप में उसे राजकाज चलाने का अधिकार प्रदान किया।
- मुहम्मद गोरी की अनुपस्थिति में ऐबक ने अजमेर व मेरठ में विद्रोहियों का दमन कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। जयचन्द के विरुद्ध हुए युद्ध में मुहम्मद गोरी की विजय में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही ।
- ऐबक ने कोइल, अजमेर, अन्हिलवाड़, बदायूं, चन्दवार, कन्नौज, बुन्देलखण्ड पर अधिकार कर गोरी के साम्राज्य का विस्तार किया। इसी दौरान बख्तियार खल्जी ने बिहार तथा बंगाल के एक भाग पर अधिकार कर गोरी के साम्राज्य का विस्तार किया ।
- मुहम्मद गोरी ने ऐबक को 'मलिक' की उपाधि से विभूषित किया। मुहम्मद गोरी ऐबक को ही अपने साम्राज्य के भारतीय भाग का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था।
- उसकी सन् 1206 में जब मृत्यु हुई तो गज़नी साम्राज्य के भारतीय अंग पर शासन करने का दायित्व कुतबुद्दीन ऐबक को ही सौंपा गया।
कुतबुद्दीन ऐबक के सुल्तान बनने के समय की राजनीतिक दशा
- मुहम्मद गौरी की उत्तर भारत की विजय को स्थायित्व प्रदान करने के लिए यह आवश्यक था कि और भी अधिक सैनिक अभियानों से इसे सर्वदर्द्धित किया जाए परन्तु उसकी आकस्मिक मृत्यु ने उसके ग़ज़नी साम्राज्य की जड़ें भी हिला दी थीं|
- ख्वारिज़्म का शाह अब हिन्दू कुश के पार अपने साम्राज्य की सीमा बढ़ाकर गौर साम्राज्य पर भी अपने अधिकार के लिए अग्रसर हो सकता था। चूंकि भारतीय प्रान्त इसी गौर साम्राज्य का अंग थे इसलिए मध्य एशिया की अस्थिर राजनीतिक दशा का उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इधर भारत में तुर्क शासन का निरन्तर विरोध हो रहा था।
- कालिन्जर पर चन्देलों ने तथा दोआब पर गहड़वालों ने पुनराधिकार कर लिया था। आसाम में बख्तियार खल्जी की पराजय हुई थी। भारत में इस समय संगठित तुर्क शक्ति-प्रदर्शन की अतीव आवश्यकता थी।
- पुत्रहीन मुहम्मद गौरी का विलासी भतीजा गियासुद्दीन महमूद फ़ीरोज़कोह के आसपास के क्षेत्र पर अधिकार तथा अन्य प्रान्त पतियों पर नाम मात्र के आधिपत्य से संतुष्ट था।
- मुहम्मद गौरी की राजधानी गज़नी पर उसके गुलाम ताजुद्दीन एल्दौज़ ने अधिकार कर लिया था और इस आधार पर वह उसके अन्य गुलामों - सिंध के सूबेदार नासिरुद्दीन कुबाचा और भारतीय प्रान्तों के लिए नियुक्त वाइसराय कुतबुद्दीन ऐबक की तुलना में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता था।
सुल्तान के रूप में कुतबुद्दीन ऐबक Qutbuddin Aibak as Sultan
- जून, 1206 में, लाहौर में ऐबक ने सत्ता सम्भाली किन्तु उसने न तो कोई राजसीय उपाधि धारण की और न ही अपने नाम के सिक्के ढलवाए परन्तु उसने अपने अधीन क्षेत्र का गज़नी साम्राज्य से सम्बन्ध विच्छेद कर उसे व्यावहारिक दृष्टि से एक स्वतन्त्र राज्य का दर्जा दिलाने का उल्लेखनीय कार्य अवश्य किया।
- ऐबक का ऐसा साहसिक कदम एल्दौज़ की उस पर नाराज़गी का कारण बना। एल्दौज़ से निपटने के लिए कुतबुद्दीन मुख्यतः लाहौर में ही बना रहा और उसने अपने राज्य-विस्तार से अधिक महत्व उसकी सुरक्षा को दिया।
- उसने बंगाल में खिल्जियों के विद्रोह का दमन कर अली मर्दान को वहां अपना सूबेदार नियुक्त किया। राज्य के पश्चिम में परिस्थितियों के बदलने से कुतबुद्दीन को लाभ हुआ।
- ख्वारिज़्म के शाह ने 1208 ईसवी में एल्दौज़ को गज़नी से निकाल बाहर किया। एल्दौज़ ने पंजाब में शरण ली किन्तु कुतबुद्दीन ने उसे वहां से खदेड़ दिया।
- कुतबुद्दीन ने कुबाचा को सिंध से निकालने का कोई प्रयास नहीं किया अपितु उससे समझौता कर उसे सिंध तथा मुल्तान का गवर्नर नियुक्त कर दिया।
- सन् 1210 में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर चोट लगने से जब उसकी आकस्मिक मृत्यु हुई तब तक उसका राज्य राजनीतिक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सका था।
- उसे अपनी बहुसंख्यक प्रजा के विरोध और राजपूत प्रतिरोध का मुकाबला करते हुए इसके लिए समय ही नहीं मिल पाया था परन्तु अपनी दान-प्रियता और न्यायप्रियता के कारण एक शासक के रूप में उसकी ख्याति निर्विवाद है। अपने राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में भी उसने सार्थक प्रयास किए।
- उसके द्वारा बनाए गए अमीरों को कुतबी अमीर कहा गया।
- दिल्ली की कुव्वत-उल इस्लाम' मस्जिद, अजमेर की अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद और विश्व प्रसिद्ध कुतुब मीनार के निर्माण का प्रारम्भ उसी के काल में हुआ।
- इतिहाकार मिनहाज़-उद्दीन सिराज़ तथा हसन निज़ामी कुतबुद्दीन ऐबक को एक शासक के रूप में सफल मानते हैं।
कुतबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद आरामशाह का सुल्तान के पद पर प्रतिष्ठित होना
- कुतबुद्दीन ऐबक के पुत्र आरामशाह को उसकी मृत्यु के बाद लाहौर में सुल्तान बनाया गया।
- आरामशाह एक अयोग्य सुल्तान सिद्ध हुआ।
- दिल्ली में उसके राज्य के अधिकांश अमीर बरनं के मुक्ती (सूबेदार) और कुतबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश को सुल्तान बनाना चाहते थे।
- आरामशाह एक वर्ष से भी कम समय के लिए सुल्तान रह पाया। विद्रोहियों के दमन हेतु दिल्ली की ओर अभियान करते समय वह मारा गया और कुतबुद्दीन द्वारा स्थापित राज्य वंश अपनी स्थापना के पाँच वर्ष बाद ही समाप्त हो गया।
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