मुगल काल में वित्त व्यवस्था Finance in the Mughal period
मुगल काल में वित्त व्यवस्था Finance in the Mughal period
मुगल काल की कर प्रणाली
1 भू राजस्व व्यवस्था
- मुगल साम्राज्य की सुदृढ़ता एवं उसके स्थायित्व का मूल कारण उसकी सक्षम वित्त व्यवस्था थी। इस वित्त व्यवस्था का मुख्य आधार भू-राजस्व व्यवस्था थी।
2 जज़िया क्या है
- इस्लाम के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ विश्व के अनेक भागों में मुस्लिम राज्यों की स्थापना हुई। नव-स्थापित मुस्लिम राज्यों में स्थानीय निवासियों में से अनेक ने इस्लाम धर्म को नहीं अपनाया था। व्यावहारिक दृष्टि से यह सम्भव नहीं हो सकता था कि समस्त प्रजाजनों को इस्लाम कुबूल करने के लिए बाध्य किया जाए अतः मुस्लिम राज्यों द्वारा गैर-मुस्लिम प्रजा से उनके अस्तित्व की रक्षार्थ एक प्रकार का धार्मिक कर वसूल किया जाता था जिसको कि जज़िया कहा जाता था।
- जज़िया की राशि खज़ाना ए जज़िया में जमा की जाती थी। जज़िया देने वाले को जिम्मी कहा जाता था।
- स्त्रियां, बच्चे, गुलाम, सन्त, पुरोहित, अपंग, भिखारी, अन्धे, विक्षिप्त तथा दिवालिए इस कर से राज्य में सैनिक एव नागरिक सेवा में नियुक्त गैर-मुस्लिम भी इस कर से मुक्त थे। मुगलों ने भारत में इस कर को सन् 1564 लागू रखा।
- सन् 1564 बादशाह अकबर ने अपनी धार्मिक सहिष्णुता व उदारता का परिचय देते हुए इस कर को समाप्त कर दिया।
- जहांगीर, शाहजहां ने इस विषय में अकबर का अनुकरण किया। औरंगज़ेब ने भी अपने शासन के प्रथम 21 वर्ष तक गैर-मुस्लिमों पर जज़िया मुक्त थे। नहीं लगाया किन्तु सन् 1679 में उसने अपने साम्राज्य में गैर-मुस्लिमों पर जज़िया फिर से लगा दिया। औरंगज़ेब ने जज़िया कर राज्य के आर्थिक संसाधनों में वृद्धि करने के उद्देश्य से नहीं लगाया था अपित? इस निर्णय के पीछे उसके राजनीतिक एवं धार्मिक उद्देश्य थे।
3 ज़कात क्या है
- मुगल साम्राज्य मूलतः मुस्लिम राज्य था अतः धर्मार्थ व्यय हेतु मुसलमानों की व्यक्तिगत आय का कुल 2.5 प्रतिशत भाग (चालीसवां भाग) लिए जाने वाले कर ज़कात पर उनका हक़ बनता था किन्तु मुगलों ने इस कर की अदायगी के लिए मुसलमानों को बाध्य नहीं किया और इसे उनके विवेक पर छोड़ दिया। दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की खरीद-फरोख्त पर भी लगाया जाता था परन्तु अकबर, जहांगीर व शाहजहां ने इसे समाप्त कर दिया था।
- औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल में मूल्यवान वस्तुओं की खरीद-फरोख्त पर ज़कात लगा दिया था। ज़कात की राशि खजाना-ए-सदाक़त में जमा की जाती थी।
4 खम्स क्या है
- खनिज पदार्थों, खजाने की प्राप्ति तथा सैनिकों द्वारा युद्ध में प्राप्त लूट का पाँचवां भाग खम्स के रूप में लिया जाता था। चूंकि मुगल सैनिकों राज्य की ओर से नियमित वेतन मिलता था इसलिए लूट की राशि में उन्हें कोई हिस्सा नहीं दिया जाता था।
5 अबवाब ( अतिरिक्त कर )
- सबसे अधिक राजस्व दिलाने वाला अबवाब - राहदारी होता था जो कि माल के आवागमन पर लगाया जाता था। ए
- क अन्य अबवाब चोरी के सामान की पुलिस द्वारा बरामदगी के बाद उसे उसके स्वामी को लौटाते समय वसूला जाता था।
- इसी प्रकार कर्ज़ में डूबी रकम को कर्जदार से कर्ज़ देने वाले को वापस दिलाने में राज्य की भूमिका के बदले में कुल प्राप्त रकम का एक चौथाई भाग तक अबवाब के रूप में लिया जाता था। समय-समय पर आवश्यकताओं के अनुसार अन्य अबवाब भी लगाए जाते थे।
- अबवाबों की वसूली में अधिकारीगण निजी स्वार्थों के कारण प्रायः जनता पर मनमानी कर उनका भरपूर शोषण करते थे।
मुगल काल की मुद्रा प्रणाली
- मुगल काल में शाही टकसालों में सोने, चाँदी तथा तांबे के सिक्के ढाले जाते थे।
- शुद्धता और सुघड़पन की दृष्टि से मुगल सिक्के अपने समकालीन यूरोपीय शासकों के सिक्कों की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ थे।
- मुगलकालीन सोने के सिक्कों में 164 ग्रेन की मुहर अथवा अशर्फ़ी सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
- शेरशाह के 178 ग्रेन के चाँदी के सिक्के को आधार मानकर अकबर ने भी चाँदी का रूपया चलाया था।
- एक रुपया 64 दामों के बराबर होता था और एक दाम दो अधेलों या चार पावलो या आठ दमड़ियों के बराबर होता था।
- दाम, अधेला, पावला तथा दमड़ी, तांबे के होते थे। सोने-चाँदी के सिक्कों की शुद्धता व उनकी मापतौल की जांच की समुचित व्यवस्था की जाती थी।
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