हुमायूं का पतन और हिन्दुस्तान से निष्कासन |शासक के रूप में हुमायूं का आकलन Humayun's fall and expulsion from India

हुमायूं का पतन और हिन्दुस्तान से निष्कासन
Humayun's fall and expulsion from India

 

हुमायूं का पतन और हिन्दुस्तान से निष्कासन Humayun's fall and expulsion from India


  • शेरशाह से पराजितअपनी बादशाहत खो चुका और दिल्ली तथा आगरा से निर्वासित हुमायूं लाहौर पहुंचा किन्तु कामरान मिर्ज़ा के असहयोग के कारण वह वहां भी टिक नहीं सका। 
  • शेर शाह ने मुगलों के विरुद्ध अभियान कर लाहौर पर अधिकार कर लिया और उनको हिन्दुस्तान छोड़ने के लिए विवश किया। 
  • बादशाह शेर शाह ने पश्चिमोत्तर प्रदेश में मुगलों की वापसी की सभी सम्भावनाओं को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए और हुमायूं को निर्वासित जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूरकिया।


हुमायूं का हिन्दुस्तान पर पुनराधिकार एवं मृत्यु

 

  • ईरान के बादशाह की सहायता हुमायूं ने अस्करी को पराजित करने के बाद कान्धार पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने काबुल पर भी अधिकार कर लिया। 
  • उसने कामरान मिर्ज़ा को अपने विरुद्ध इस्लाम शाह सूर से सहायता प्राप्त करने के लिए दिल्ली की ओर प्रस्थान करने से पहले ही पकड़ कर उसको अंधा कर दिया। हिन्दाल की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी ।
  • भाइयों की समस्याओं से मुक्त होकर अब हुमायूं हिन्दुस्तान की अराजकतापूर्ण स्थिति का लाभ उठा कर उसे फिर से जीतने की योजना बनाई ।
  • सन् 1554 में हुमायूं ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। 
  • 27 अप्रैल, 1555 को सरहिन्द में उसने अफ़गान सेना को पराजित किया और 27 जुलाई, 1555 को एक विजेता के रूप में उसने दिल्ली में फिर से प्रवेश किया । 
  • किन्तु ठीक छह महीने बाद 27 जनवरी, 1556 को सीढ़ियों से लुढ़कने से गम्भीर रूप से घायल होने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

  

शासक के रूप में हुमायूं का आकलन

 

  • भावुक प्रकृति के हुमायूं में व्यावहारिकता की कमी थी। उसने अपने पिता बाबर द्वारा अपने भाइयों में राज्य के बटवारे की वसीयत को स्वीकार कर अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं और स्वधर्मी शत्रु गुजरात के शासक बहादुर शाह को चित्तौड़ विजय का अवसर प्रदान कर दिया था।

 

  • अपनी क्षमाशीलता से उसने अपने भाइयोंविशेषकर कामरान मिर्ज़ा को बार-बार विद्रोह और षडयन्त्र करने का मौका दिया।

 

  • अपनी विलासप्रियतानशा करने की लत और आलसी स्वभाव के दुर्गुणों के कारण उसने शेर खाँ को अपनी शक्ति पुनर्संगठित करने का अवसर दिया।

 

  • शत्रुओं और षडयन्त्रकारियों के आश्वासनों पर भरोसा कर हुमायूं ने बार-बार अपनी जड़ें खुद ही खोदी थीं। शेर खाँबहादुर शाह और कामरान मिर्ज़ा की बातों पर विश्वास कर उसने अपना भारी किया था।

 

  • हुमायूं एक वीर सैनिक था किन्तु उसका यह दुर्भाग्य था कि उसे बहादुर शाह और शेर खाँ जैसे योग्य शत्रु मिले थे।

 

  • हुमायूं में दूरदर्शिता की कमी थी और प्रशासनिक कार्यों में उसकी कोई अभिरुचि नहीं थी। सन् 1530 से 1540 तक के अपने शासनकाल में वह नवोदित मुगल साम्राज्य को सुसंगठित एवं सुदृढ़ करने में नितान्त असफल रहा।

 

  •  ‘हुमायूं’ का शाब्दिक अर्थ 'भाग्यशालीहोता है किन्तु दुर्भाग्य ने कभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ा। अपनी चारित्रिक दुर्बलताओं के कारण वह जीवन भर भटकता रहा और उसका अन्त भी सीढ़ियों से लुढ़कने के कारण हुआ।

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