मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय भारत की दशा |India at the time of Muhammad Ghori's invasion
मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय भारत की दशा |India at the Time of Muhammad Ghori's invasion
बारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में उत्तर
पश्चिमी भारत में पंजाब, मुल्तान और सिन्ध के तीन विदेशी राज्य
थे।
गजनवी शासन के अन्तर्गत पंजाब Punjab under Ghaznavi rule
- पंजाब को ग्यारहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में महमूद ने जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था तभी से यह राज्य 1186 ई0 तक गजनवी साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहा।
- गिज तुर्कों ने खुसरवशाह को गजनी से मार भगाया था और पंजाब में उसने शरण ली थी। उसके उत्तराधिकारियों ने भी पंजाब को ही अपना घर बनाया और लाहौर उनकी राजधानी थी। इस प्रकार तत्कालीन भारत में सिन्ध के बाद पंजाब दूसरा मुस्लिम राज्य था, जिसमें उत्तर में पेशावर तथा सियालकोट सम्मिलित थे, उत्तर पूरब में उसकी सीमाएँ जम्मू के हिन्दू राज्य तक पहुंचती थी और दक्षिण तथा दक्षिण पश्चिम में उसकी सीमाएं घटती-बढ़ती रहती थी।
- चौहान नरेश पृथ्वीराज प्रथम मुसलमानों से बराबर युद्ध में संलग्न रहा और उसके उत्तराधिकारी अजय राज को गजनी के एक अधिकारी बहलीम ने 1112 ई0 में हराकर नागौर छीन लिया था। परन्तु विग्रहराज तृतीय ने 1167 ई0 में पंजाब में गजनवी सुल्तान से हांसी छीन लिया और उसके उत्तराधिकारी पृथ्वीराज द्वितीय ने तुर्क आक्रमणों से रक्षा करने के लिए हांसी की किलेबन्दी की।
- कालान्तर में पृथ्वीराज द्वितीय ने भटिण्डा पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार चौहान राज्य की सीमाएं उत्तर में आधुनिक फीरोजपुर तक पहुँच गयी थीं।
- महमूद के उत्तराधिकारियों के समय में पंजाब के तुर्की राज्य का पतन होने लगा। चारों ओर भ्रष्टाचार और अयोग्यता का बोलबाला था।
- गजनवी वंश का अन्तिम शासक मलिक खुसरव विलासी तथा निकम्मा था । उसने शासन की बागडोर पूर्णतया अपने पदाधिकारियों के हाथों में छोड़ दी और वे स्वतन्त्र बन बैठे।
- वास्तव में लाहौर के गजनवी सुल्तान को इस काल में सदैव राजपूतों के आक्रमण का भय बन रहता था।
करामाथियों की अधीनता में मुल्तान Multan under the control of the Karamathis
- मुल्तान 'में शिया सम्प्रदाय के अनुयायी करामाथी मुसलमान शासन करते थे। इस प्रान्त को महमूद ने जीत लिया था, किन्तु उसकी मृत्यु के बाद करामारथी शासकों ने फिर स्वयं को स्वतन्त्र कर लिया था। सम्भवतः उच्छ भी करामाथी राज्य में सम्मिलित था।
सुम्त्र शासन के अन्तर्गत सिन्ध Sindh under the sutra regime
- मुल्तान के दक्षिण में निचले सिन्ध का प्रदेश स्थित था। देबल उसकी राजधानी थी। महमूद ने इसको भी जीत लिया था।
- किन्तु उसकी मृत्यु के बाद सुम्त्र नाम की स्थानीय जाति ने पुनः अपनी स्वाधीनता स्थापित कर ली थी।
- सुम्त्र लोग मुसलमान थे, किन्तु उनकी उत्पत्ति के विषय में कुछ ज्ञात नहीं है। करामाथियों की भाँति वे भी शिया थे।
राजपूत- मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय
- उनकी नसों में प्राचीन क्षत्रियों के अतिरिक्त उन विदेशी आक्रमणकारियों का रक्त भी था जो कालान्तर में हिन्दू समाज में विलीन हो गये थे।
- कर्नल टॉड राजपूतों के गुणों की अत्यधिक प्रशंसा करता है। राजपूत शूरवीर थे और निर्भिकता,साहस तथा वीरोचित सम्मान की दृष्टि से उनका चरित्र तुर्कों से कहीं ऊँचा था।
- उन्हें अपनी तलवार चलाने की कला पर घमण्ड था और युद्ध उनके लिए एक मनोरंजन का साधन था। किन्तु जाति श्रेष्ठता पर घमण्ड की भावना ने उनके इन गुणों को ढक लिया था।
- उनके सामाजिक संगठन का आधार मुख्यतया सामन्तवादी था और सैनिक यश प्राप्त करने की भावना उनमें इतनी बलवती थी कि उनके अन्य सभी काम केवल इसी उद्देश्य से किये जाते थे।यही दुर्गुण वास्तव में उनके पतन का कारण सिद्ध हुआ।
अन्हिलवाड़ा के चालुक्य
- पश्चिमी भारत में सबसे अधिक महत्वपूर्ण राजवंश अन्हिलवाड़ा के चालुक्यों का था।
- उनका राज्य मुस्लिमों द्वारा शासित उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों से लगा हुआ था।
- जयसिंह सिद्धराज ( 1102- 1143ई0) के समय में इस वंश का अधिक उत्कर्ष हुआ। उसने मालवा के परमार राज्य का अधिकांश भाग जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। चित्तौड़ के गुहिलौतों को उसने पराजित किया और काठियावाड में गिरनार को जीतकर अपने राज्य का अंग बनाया।
- लेकिन अजमेर के चौहानों से उसका संघर्ष में चालुक्यों को बहुत क्षति उठानी पड़ी थी और चालुक्यों की शक्ति बहुत क्षीण हो गयी थी इसके उपरांत उनकी गणना द्वितीय श्रेणी के राजवंशों में होने लगी धीरे-धीरे मालवा, चित्तौड़,पश्चिमी और दक्षिणी राजपूताना के क्षेत्रों ने पुनः अपनी स्वाधीनता स्थापित कर ली और केवल गुजरात और काठियावाड़ चालुक्यों के अधीन रह गये मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय यहां का शासक मूलराज द्वितीय था।
अजमेर के चौहान
- राजपूतों का दूसरा महत्वपूर्ण राज्य अजमेर के चौहानों का था। इस वंश की स्थापना एक सामन्त ने की थी।
- बीसलदेव (विग्रहराज तृतीय) इस वंश का प्रतापी शासक था, उसने 1151 ई0 में तोमरों से दिल्ली और कुछ समय उपरान्त गजनवी वंश के लोगों से हॉसी छीन ली।
- पृथ्वी राज द्वितीय इस वंश का महत्वपूर्ण शासक हुआ। उसने 1167 से 1169 ई0 तक राज्य किया।
- पृथ्वी राज द्वितीय का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय (1178-1193 ई0) था जो रायपिथौरा के नाम से विख्यात था।
- पृथ्वीराज तृतीय ने चन्देल राजा परमर्दी देव को हराकर महोबा पर अधिकार कर लिया। किन्तु अपने पड़ोसियों से उसके सम्बन्ध अच्छे न थे।
कन्नौज के गहड़वाल
- इस युग 'में सबसे अधिक महत्वपूर्ण राजपूत राजवंश कन्नौज के गहड़वालों का था।
- प्रारम्भ में गहड़वाल राज्य में केवल काशी,कोसल, कौशिक (इलाहाबाद), तथा इन्द्रप्रस्थ सम्मिलित थे।
- किन्तु गहड़वाल राजाओं ने धीरे-धीरे अपने राज्य का विस्तार प्रारम्भ किया। समय के साथ उनकी इस विजय नीति के कारण कन्नौज की गणना देश के सबसे बड़े राज्यों में होने लगी।
- गोविन्दचन्द्र इस वंश का एक प्रतापी शासक था। उसके समय में कन्नौज की पूर्वी सीमा पटना तक पहुंच गयी थी।
- उसका उत्तराधिकारी विजय चन्द्र था जिसने 1155 से 1170 ई0 तक राज्य किया। उसने भी अपने पूर्वजों की नीति जारी रखी। मुहम्मद गोरी का समकालीन जयचन्द्र इस वंश का अन्तिम शासक हुआ।
बुन्देलखण्ड के चन्देल तथा कलचुरी के चेदि
- दो अन्य राजपूत कालिजर और महोबा के चन्देल तथा कलचुरी के चेदि थे।
- चन्देलों ने वंश, 11 वीं शताब्दी में गंगा यमुना दोआब के दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया था ।
- बुन्देलखण्ड भी उनके राज्य में सम्मिलित था मदनवर्मन इस वंश का प्रतापी शासक था। उसने मालवा के परमारों तथा गुजरात के जयसिंह सिद्धराज को पराजित किया।
- त्रिपुरी के कलचुरियों को भी उसने पराजित किया था। लगभग 12 वीं शताब्दी के अन्त में कलचुरी चन्देलों अधीनस्थ सामन्त हो गये थे। किन्तु आगे चलकर चन्देलों को भी गहड़वालों से पराजित होना पड़ा।
- परमार्दी देव इस वंश का अन्तिम महत्वपूर्ण शासक था। अजमेर के पृथ्वीराज द्वितीय ने उसे हराकर उसके राज्य का बड़ा भाग चौहान राज्य में मिला लिया था। इस युग के प्रारम्भ में चन्देल राज्य में महोबा, कालिंजर, खजुराहो तथा अजयगढ़ शामिल थे।
- मालवा के परमारों की राजधानी धार थी। भोज (1010-1055 ई0 के लगभग) के समय में परमार बहुत शक्तिशाली और प्रसिद्ध हो गये थे। किन्तु 12वीं शताब्दी में इस राज्य का अधःपतन हो गया। मुहम्मद गोरी के समय में इस वंश का शासक एक महत्वहीन सामन्त था और गुजरात के चालुक्यों के अधीन था।
उत्तरी बंगाल के पाल
- पूर्वी भारत में पाल और सेन दो प्रसिद्ध राजपूत राज्य थे।
- 12 वीं शताब्दी में पाल वंश के एक राजा रामपाल ने उत्कल, कलिंग और कामरूप को जीतकर कुछ समय के लिए पुनः अपने पूर्वजों की साम्राज्यवादी प्रतिष्ठा की स्थापना की।
- किन्तु उसकी मृत्यु के बाद पुनः पाल राज्य का अधःपतन हो गया, ब्रहमपुत्र की घाटी स्वतन्त्र हो गयी,दक्षिण बंगाल भी पाल राज्य से पृथक हो गया।
- कुमारपाल (1126-1130 ई0), मदनपाल (1130-1150 ई0) आदि परवर्ती शासक अत्यन्त दुर्बल थे। उनके समय में विशाल पाल साम्राज्य संकुचित होकर छोटा सा राज्य रह गया।
- बिहार उनके हाथों से निकल गया तथा हजारीबाग में नये राजवंश ने सत्ता संभाली। पाल राज्य में केवल उत्तरी बंगाल रह गया।
बंगाल का सेन राज्य Sen State of Bengal
- सेन वंश के विषय में यह माना जाता है कि उनका मूल दक्षिण भारत था।
- राजेन्द्र चोल के वे सामन्त थे और राजेन्द्र चोल के दक्षिण वापस चले जाने के बाद वे बंगाल में रह गये और 11 वीं शताब्दी में उन्होंने पूरबी भारत में अपनी सत्ता की नींव डाली थी।
- इस वंश के एक सदस्य विजयसेन (1097-1159 ई0) ने पूर्वी बंगाल पर अधिकार कर लिया। उसने कामरूप, कलिंग और दक्षिण बंगाल से निरन्तर युद्ध किया और मिथिला (उत्तरी बिहार) को भी हराया।
- बल्लाल सेन (1159- 1170 ई0) और लक्ष्मण सेन (1170-1203 ई0) इस वंश के अन्तिम शासक हुए।
- उनके राज्य में उत्तरी तथा पूर्वी बंगाल, मिथिला और पश्चिम में मिथिला से लगे हुए कुछ जिले सम्मिलित थे। लक्ष्मण सेन के समय में उसकी वृद्धावस्था तथा आन्तरिक फूट के कारण सेन राज्य दुर्बल हो गया।
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