जलालुद्दीन खिलजी | Jalaluddin Khilji | अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक अभियान
जलालुद्दीन खिलजी Jalaluddin Khilji
जलालुद्दीन खिलजी का राज्यारोहण Ascension of Jalaluddin Khilji
- जलालुद्दीन खिलजी ने बलबन तथा उसके उत्तराधिकारियों के काल में मंगोलों का सामना करते हुए एक कुशल सेनापति के रूप में ख्याति अर्जित की थी। सुल्तान कैकुबाद ने उसे आरिज़-ए मुमालिक का पद तथा शायिस्ता खाँ की उपाधि प्रदान की थी।
- 1290 ईसवी के प्रारम्भ में कैकुबाद के पतन के बाद वह बालक सुल्तान क्यूमर्स का संरक्षक बना किन्तु यह व्यवस्था नितान्त अस्थायी जून, 1290 में जलालुद्दीन खिल्जी सुल्तान क्यूमर्स तथा कैकुबाद की हत्या कर स्वयं जलालुद्दीन फिरोज़ शाह के नाम से सुल्तान बन बैठा।
जलालुद्दीन खिलजी द्वारा बलबन की रक्त एवं लौह की नीति का परित्याग
- इल्बारी तुर्कों के दीर्घकालीन प्रभुत्व के बाद अफ़गानिस्तान में लम्बे समय से बसे हुए खिलजियों (जिनको कि भ्रमवश अफ़गान माना जाता था) द्वारा दिल्ली के तख्त पर अधिकार किए जाने का प्रबल विरोध हुआ।
- असन्तुष्ट इल्बारी अमीरों तथा अपनी प्रजा के तुष्टीकरण के लिए सुल्तान जलालुद्दीन ने सुल्तान बलबन की निरंकुश स्वेच्छाचारी शासन का पोषण करने वाली रक्त एवं लौह की नीति का परित्याग कर दिया। अब राजनीतिक दमन, प्रतिशोध और रक्तपात की अनवरत प्रक्रिया को विराम दे दिया गया और तलवार की शक्ति का प्रदर्शन करने वाले सैनिक अभियानों की आवृत्तियों व उनके आकार को भी बहुत कम कर दिया गया।
- उसने अपने रक्त सम्बन्धियों तथा विश्वस्त अमीरों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया किन्तु इल्बारी तुर्क अमीरों को भी उच्च पदों पर बने रहने दिया। उसने बलबन के भतीजे मलिक छज्जू के अधिकार में कड़ा और मानिकपुर की जागीर बनी रहने दी।
- बलबन व कैकुबाद के शासनकाल के वज़ीर ख्वाजा खातिर और दिल्ली के कोतवाल फ़खरुद्दीन को भी अपने-अपने पदों पर बने रहने दिया गया।
- सत्तर वर्ष की आयु में सुल्तान बने जलालुद्दीन खिलजी में अब मंगोलों का वीरतापूर्वक दमन करने वाले जांबाज़ सेनापति वाला पुराना दमखम नहीं रह गया था। उसने रणथम्भौर के किले का घेरा केवल इसलिए उठवा लिया क्योंकि इससे नाहक मुसलमानों का खून बहता।
- उसने मलिक छज्जू की बगावत का दमन करने के बाद उसको दण्ड देने के स्थान पर क्षमा कर दिया। उसने दुर्दम्य ठगों को पकड़े जाने बाद उन्हें प्राण दण्ड देने के स्थान पर समस्या प्रधान लखनौती निर्वासित कर दिया।
- 1202 ईसवी में के पौत्र अब्दुल्ला के नेतृत्व मंगोलों के आक्रमण को विफल करने के बाद उसने उससे संधि हलाकू कर उसे वापस लौटने के लिए राज़ी कर लिया और चंगेज़ खाँ के वंशज उलगू को इस्लाम में दीक्षित होने के बाद अपने 4000 समर्थकों के साथ दिल्ली में बसने की अनुमति दे दी।
- सुल्तान की उदारता और शिथिलता से इल्बारी तुर्क व खिलजी अमीरों में उसके प्रति असन्तोष पनपने लगा और उसकी प्रजा में भी उसके प्रति भय व श्रद्धा का भाव तिरोहित होने लगा।
जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक अभियान
अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक अभियान-01
- मलिक छज्जू के विद्रोह के दमन के बाद सुल्तान के भतीजे और दामाद अलाउद्दीन को कड़ा और मानिकपुर का सूबेदार बनाया गया था। इस महत्वाकांक्षी एवं साहसी युवक की नज़र दिल्ली के तख्त पर थी परन्तु इसके लिए उसे आवश्यक धन तथा संसाधनों की आवश्यकता थी। अलाउद्दीन को मालवा की राजनीतिक अस्थिरता व उसकी अपार धन-सम्पदा की जानकारी प्राप्त हुई और उसने वहां आक्रमण करने की योजना बनाई दिल्ली के दरबार में स्थित उसके भाई उलुग खाँ ने उसके लिए इस अभियान हेतु सुल्तान की अनुमति प्राप्त कर ली।
- सन् 1293 में अलाउद्दीन ने भिलसा (विदिशा) पर सफल आक्रमण कर अपार धनराशि लूट ली। इस लूट का एक भाग सुल्तान अर्पित कर उसने पुरस्कार में कड़ा व मानिकपुर के अतिरक्त अवध की सूबेदारी भी प्राप्त कर ली और साथ ही साथ उसे कड़ा व मानिकपुर के राजस्व के शाही भाग को चन्देरी अभियान हेतु सैनिकों की भर्ती के लिए खर्च करने का अधिकार भी प्राप्त हो गया।
अलाउद्दीन खिलजी के सैनिक अभियान-02
- भिलसा अभियान के दौरान अलाउद्दीन ने यादव राज्य देवगिरि की अथाह धन-सम्पदा के बारे में सुना था। सफल भिलसा अभियान के बाद उसने सुल्तान से चन्देरी पर आक्रमण करने की अनुमति प्राप्त की थी किन्तु वास्तव में उसकी योजना दक्षिण में देवगिरि पर आक्रमण करने की थी। कड़ा की देखभाल का दायित्व अपने विश्वस्त अला-उल-मुल्क को सौंपकर अलाउद्दीन फ़रवरी, 1296 में चन्देरी पर आक्रमण करने के बहाने एक विशाल सेना लेकर चन्देरी और भिलसा होते हुए की ओर चल पड़ा।
- सुल्तान जलालुद्दीन से इस देवगिरि अभियान को पूर्णरूपेण गुप्त रखा गया। लासुरा के अधिपति को पराजित कर वह देवगिरि पहुंचा। इस राज्य की सेना का एक बड़ा भाग युवराज शंकर के साथ दक्षिण में था। आक्रमणकारी से बचने के लिए देवगिरि के शासक रामचन्द्रदेव के पास किले में छिपने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। अलाउद्दीन ने देवगिरि नगर को जमकर लूटा रामचन्द्रदेव ने अलाउद्दीन से सन्धि करने का प्रस्ताव किया जिसे उसने स्वीकार कर लिया परन्तु देवगिरि के युवराज शंकर की अपनी सेना के साथ वापसी के कारण उसे युद्ध करना पड़ा।
- नुसरत खाँ के सहयोग से अलाउद्दीन यादव सेना को पराजित करने में सफल रहा। 25 दिनों तक देवगिरि अभियान में व्यतीत करने के बाद अलाउद्दीन अथाह धन-सम्पदा तथा वार्षिक पेशकश के आश्वासन के साथ तथा रामचन्द्रदेव की पुत्री से विवाह कर उत्तर भारत वापस लौट आया।
- भिलसा के और देवगिरि के अभियानों से जहां एक ओर अलाउद्दीन का राजनीतिक, सैनिक और आर्थिक कद बहुत ऊँचा हो गया था वहीं सुल्तान जलालुद्दीन को हटाकर अलाउद्दीन को
- सुल्तान बनाए जाने के लिए अनुकूल वातावरण भी तैयार होने लगा था। दक्षिण भारत पर यह पहला मुस्लिम आक्रमण था। इसी आक्रमण से प्राप्त धन-सम्पदा और संसाधनों के कारण अलाउद्दीन का सुल्तान बनने का स्वप्न साकार हो पाया था।
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