प्राचीन भारतीय शासकों की भू-राजस्व व्यवस्था
Land revenue system of ancient Indian rulers
- कृषि प्रधान देश भारत में राज्य की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व रहा है।
- भारत का कोई भी शासक भू-राजस्व प्रशासन की उपेक्षा कर अथवा उसका कु प्रबन्ध कर अपने शासन को सफल नहीं बना सकता था। राज्य को कृषि उपज का एक भाग प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार था।
- मौर्य तथा गुप्त काल में आमतौर पर उपज का छठा भाग भू-राजस्व के रूप में लिया जाता था। भू-राजस्व निर्धारण में भूमि की नापजोख किए जाने की व्यवस्था थी।
- प्राचीन भारतीय शासकों के काल में दुर्भिक्ष, अनावृष्टि तथा बाढ़ की स्थिति में भू-राजस्व की वसूली का स्थगन अथवा उसको भयंकर आपदा की स्थिति में पूर्णतया समाप्त करने की व्यवस्था थी ।
- कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए तथा भू राजस्व के माध्यम से राज्य की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से शासकों द्वारा सिंचाई हेतु नहरों, जलाशयों तथा कूपों का निर्माण कराया जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सुचारु भू-राजस्व प्रशासन हेतु अनेक उपायों की चर्चा की गई है ।
दिल्ली सल्तनत काल में भू-राजस्व व्यवस्था
Land revenue system in Delhi Sultanate period
- दिल्ली सल्तनत काल में प्राचीन भारतीय भू-राजस्व व्यवस्था में कोई आमूल परिवर्तन नहीं किया गया किन्तु राज्य की ओर से लिया जाने वाला भू-राजस्व कुल उपज के छठे भाग से बढ़ाकर उपज का तीसरा भाग कर दिया गया।
- सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इसे और बढ़ाकर उपज का आधा भाग कर दिया और भू-राजस्व निर्धारण में भूमि की नापजोख को आधार बनाया। भू-राजस्व के साथ-साथ चारागाह कर तथा गृह कर जैसे अबवाब लगाकर तथा बाज़ार नियन्त्रण नीति लागू कर अलाउद्दीन ने निर्धन किसानों पर और भी अधिक आर्थिक बोझ डाल दिया।
- सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक ने अलाउद्दीन की कठोर भू-राजस्व नीति को बदल कर उसे किसानों के अनुकूल बनाने का प्रयास किया।
- सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा दोआब में कर वृद्धि का प्रयोग पूर्णतया असफल रहा परन्तु उसके उत्तराधिकारी सुल्तान फ़ीरोज़शाह तुगलक ने किसानों की दशा सुधारने तथा कृषि विकास हेतु अनेक ठोस कदम उठाए फ़ीरोज़शाह तुगलक के काल में भू-राजस्व निर्धारण हेतु भूमि की नापजोख करने की व्यवस्था को तथा अबवाबों को समाप्त कर दिया गया।
- सिंचाई के साधनों - नहरों, जलाशयों आदि का निर्माण कर उसने कृषि क्षेत्र का विस्तार किया। सिंचाई के साधनों से लाभान्वित क्षेत्रों में सिंचाई कर लगाकर उसने राज्य की आय में वृद्धि की किन्तु उसने राजस्व संग्रह हेतु ठेका दिए जाने की प्रथा को बढ़ावा देकर किसानों के आर्थिक दोहन का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
- सैयद वंश और लोदी वंश के सुल्तानों ने भू-राजस्व व्यवस्था को लगभग पूर्ववत बने रहने दिया। भू राजस्व प्रशासन के क्षेत्र में उनकी कोई भी उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं थी।
शेरशाह की भू-राजस्व व्यवस्था
Sher Shah's Land Revenue System
शेरशाह की भू-राजस्व प्रशासन की उपलब्धियां
- शेर शाह ने भू-राजस्व प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर कर उसे अधिक सक्षम, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया।
- भू-राजस्व के निर्धारण को वैज्ञानिक आधार देने के लिए उसने भूमि नापजोख तथा औसत उपज के आधार पर ज़मीन का तीन किस्मों (उत्तम, मध्यम और निम्न) में वर्गीकरण किया। उसने अनुमानित लगान (जमा) और वास्तव में वसूला गया लगान ( हासिल ) का अन्तर कम करने के लिए ठोस उपाय किए।
- लगान का भुगतान नकदी में किया जाना निश्चित किया गया। किसानों को भूमि पर अधिकार सम्बन्धी पट्टे दिए गए तथा उनको लगान सम्बन्धी अपने कर्तव्यों के लिए कुबूलियत भी देनी पड़ी।
- सैनिक अभियानों के समय किसानों को उनकी फ़सल के नुक्सान की भरपाई की व्यवस्था की गई तथा आपदा काल में उनको लगान में छूट व अन्य प्रकार की सहायता की व्यवस्था भी की गई।
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