मध्य कालीन भारत की भू-राजस्व प्रणालियां |Land Revenue Systems of Central India
मध्य कालीन भारत की भू-राजस्व प्रणालियां
अन्य भू-राजस्व प्रणालियां
1. कनकूत प्रणाली
- इस प्रणाली में उपज का अनुमान लगाकर लगान का निर्धारण किया जाता था। इसमें लगान गल्ले के रूप में वसूला जाता था।
2. नस्क प्रणाली
- यह प्रथा काश्मीर तथा गुजरात में प्रचलित थी । मोरलैण्ड के अनुसार इस प्रथा के अन्तर्गत भूमि कर किसानों से व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु उनके समूह से वसूली जाती थी। प्रोफ़ेसर ए0 एल0 श्रीवास्तव के अनुसार इस व्यवस्था में प्रति हल के हिसाब से लगान निर्धारित किया जाता था।
3. गल्लाबख्शी
- इस परम्परागत भू-राजस्व प्रणाली में खेत में ही कटी फ़सल में से किसान और राज्य के हिस्से का बटवारा कर लिया जाता था किन्तु इस प्रणाली में राजस्व अधिकारियों द्वारा किसानों का शोषण करने तथा किसानों के साथ मिलीभगत कर राज्य को भू-राजस्व में नुकसान पहुंचाने की सम्भावना बनी रहती थी। इसके अतिरिक्त भू-राजस्व के रूप में प्राप्त गल्ले को रखने की व्यवस्था का खर्च भी राज्य को उठाना पड़ता था।
अबवाब क्या होता है
- मुगल काल में किसान को लगान के अतिरिक्त राजस्व कर्मचारियों को पैमाइश करने की एवज़ में एक दाम प्रति बीघा जाबिताना भी देना पड़ता था।
- किसानों को स्थानीय पुजारी, बढ़ई, धोबी, लुहार, नाई आदि को उनकी सेवाओं के बदले में अनाज के रूप में खुराकी देनी पड़ती थी। पशुओं, चारागाहों तथा बागों पर भी अबवाब लगाए जात थे।
- अनेक बार बादशाहों को अबवाबों को समाप्त करना पड़ता था किन्तु स्थानीय अधिकारी बार-बार किसी न किसी बहाने उन्हें फिर से लगा देते थे।
किसानों को राहत तथा कृषि योग्य भूमि के विकास को प्रोत्साहन
- अकाल, अनावृष्टि अथवा बाढ़ की स्थिति में किसानों को लगान में राहत दिए जाने की व्यवस्था थी। शाहजहां द्वारा 1630-31 के दुर्भिक्ष के समय खालसा भूमि पर 70 लाख का लगान माफ़ किया गया था।
- सन् 1641 में काश्मीर में अकाल के दौरान किसानों को 1 लाख रुपये की सहायता देने के साथ लंगरों में मुफ़्त भोजन की व्यवस्था भी की गई थी। किसानों को कृषि योग्य भूमि में विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था और उन्हें बंजर या वनाच्छादित भूमि को खेती योग्य बनाने पर लगान में 5 वर्ष तक की पूरी अथवा आंशिक छूट दी जाती थी।
- ज़रूरत पड़ने पर किसानों को बीज तथा पशु खरीदने के लिए ब्याज मुक्त तकावी (अग्रिम धन) दी जाती थी जिसे आसान किश्तों में उन्हें चुकाना होता था। राज्य की ओर से सिंचाई हेतु बांधों, नहरों, जलाशयों तथा कूपों का निर्माण किया जाता था।
अकबर के परवर्ती मुगल बादशाहों की भू-राजस्व व्यवस्था
- अकबर के परवर्ती मुगल बादशाहों ने उसकी भू-राजस्व व्यवस्था को लगभग ज्यों का त्यों लागू रखा परन्तु शाहजहां की विलासिता और औरंगज़ेब के निरन्तर युद्धों में व्यस्त रहने के कारण राज्य पर बहुत अधिक आर्थिक बोझ पड़ा। इस कारण भू-राजस्व को उपज के तीसरे भाग से बढ़ाकर आधा भाग कर दिया गया। मुगल साम्राज्य के पतन के समय भू-राजस्व प्रशासन पूर्णतया अव्यवस्थित हो गया तथा किसानों का शोषण निरन्तर बढ़ने के कारण उनकी हालत बद से बदतर होती चली गई।
किसानों पर ऋण का बोझ
- आमतौर पर लगान तथा अबवाब चुकाने के लिए तथा भ्रष्ट राजस्व अधिका ताल्लुकदार, ज़मींदार, चौधरी, खुत, मुकद्दम, कानूनगो, पटवारी आदि की नाजायज़ मांगों को पूरा करने के लिए किसानों को बार-बार महाजनों से ऊँची ब्याज दरों पर ऋण लेना पड़ता था और फिर वे आजीवन ऋण के बोझ तले दब जाते थे। अन्नदाता किसान को दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब हो पाती थी।
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