सिन्ध पर मुहम्मद बिन-कासिम का आक्रमण | Mohammad Bin-Qasim's Invasion of Sindh
सिन्ध पर मुहम्मद बिन-कासिम का आक्रमण
Mohammad Bin-Qasim's Invasion of
Sindh
- डा. ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि “सिन्ध पर मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण की कहानी इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है। उसकी खिलती जवानी उसका साहस और शौर्य, चढ़ाई के बीच उसका उत्तम आचरण और उसका घातक पतन-इन सब बातों ने उसके जीवन को शहादत की क्रांति से प्रज्वलित कर दिया है।"
- मुहम्मद बिन कासिम 15000 सैनिक लेकर चला था जिनमें 6000 सीरियाई घुड़सवार थे और 1000 ऊँट सवार। मार्ग में मरकान के निकट मुहम्मद हारूँ के नेतृत्व में कुछ और सेनाएँ उसके साथ आ मिलीं। सिन्ध पर उसके आक्रमण के समय उसके पास लगभग 35000 सैनिक थे।
- जब अरब नेता देबल की ओर बढ़ा तब बहुत से जाट और मेव लोग जो अधिकतर बुद्ध धर्म को मानने वाले थे और जो अपने ब्राह्मण राजा दाहिर के व्यवहार से खिन्न थे उसके साथ मिल गये और उसकी सेना की संख्या को और भी अधिक बढ़ा दिया।
देबल की विजय
- जब मुहम्मद की सेना देबल की ओर बढ़ी तो राजा ने निष्क्रिय रहने की घातक गलती की । उसने आक्रमणकारी सेना की प्रगति को रोकने का कोई प्रयत्न नहीं किया। परिणाम यह हुआ कि 25000 से अधिक आक्रमणकारियों का केवल 4000 सैनिकों ने सामना किया । निस्संदेह भारतीय सेना बड़ी वीरता से लड़ी परन्तु वह शत्रु के हजारों सैनिकों के सामने टिक न सकी।
- देबल के ब्राह्मणों ने एक बड़े मन्दिर की चोटी पर लहरा रहे लाल झण्डे के नीचे एक तावीज बाँध रखा था जब घेरा पड़ा हुआ था तो एक ब्राह्मण ने दाहिर से विश्वासघात किया और जाकर तावीज का रहस्य अरबों को बता दिया जिन्होंने झण्डे के बाँस को निशाना बनाकर झण्डे और तावीज को झट नष्ट कर दिया। इस बात ने अंधविश्वासी भारतीयों की निरुत्साहित और निराश कर दिया।
- आखिरकार अरब लोगों ने देबल पर अधिकार जमा लिया और वहाँ एक भयानक रक्तपात आरंभ हुआ जो तीन दिन तक चलता रहा लोगों को कहा गया कि इस्लाम स्वीकार करो, नहीं तो मार डाले जाओगे और बहुतों ने मरना स्वीकार किया।
- कहा जाता है कि 17 वर्ष के ऊपर के सब पुरुष मौत के घाट उतार दिये गये और उनकी स्त्रियाँ और बच्चे दास बना लिये गये। लूटमार का बहुत-सा माल अरबों के हाथ लगा। जिसका पाँचवाँ हिस्सा हजाज के द्वारा खलीफा को भिजवा दिया गया।
निरुन, सेहवन और सीसम पर अधिकार (Capture of Nirun, Sehwan and Sisam)
- देबल को जीतने और लूटने के बाद मुहम्मद बिन-कासिम निरुन की ओर बढ़ा, जो कि उस समय देवल के उत्तर पूर्व में एक महानगर था।
- इस नगर के निवासियों को जब राजा दाहिर से किसी प्रकार की कोई सहायता न मिली तो वे विवश हो बिना किसी विरोध के झुक गये और उन्होंने हथियार डाल दिये।
- विदेशी अब सेहवन की ओर बढ़े जिस पर दाहिर के चचेरे भाई बाझरा का अधिकार था। वह कोई एक सप्ताह तक लड़ता रहा परन्तु अन्त में उसे किला छोड़ना पड़ा।
- सेहवन से अरब लोग सीसम की ओर बढ़े और वहाँ भी दो दिन लड़ाई के बाद जाट लोग हार गये।
रावड़ की लड़ाई (20 जून, 712 ई.)
- अरबों की तीव्र गति से उन्नति और सफलता पर दाहिर चौंके बिना न रह सका। उसने 50,000 सैनिक इकट्ठे किये और शत्रु का सामना करने के लिए ब्राह्मणावाद से चल पड़ा।
- मुहम्मद-बिन-कासिम भी अपनी सफलता से उत्साहित होकर और नशे में आकर सिन्धु नदी पार करके ब्राह्मणावाद की ओर बढ़ा।
- रावड़ पहुँचकर दोनों सेनाओं का आमना-सामना हुआ और 20 जून, 712 ई. को एक निर्णायक लड़ाई हुई।
- दाहिर और उसके सैनिक बड़ी वीरता से लड़े और उन्होंने बहुत से अरबों को मार डाला। परन्तु दुर्भाग्यवश लड़ाई के बीच राजा दाहिर के हाथी पर एक तीर आकर लगा जिससे हौदे को आग लग गई और वह हाथी भागकर नदी में चला गया। इससे यह बात फैल गई कि राजा या तो मार डाला गया है या युद्धभूमि से भाग गया है । परिणाम यह हुआ कि सिन्ध के लोग निराश तथा निरुत्साहित हो गये।
- दाहिर जब अपने हाथी को लेकर युद्धक्षेत्र में लौटा तो क्या देखता है कि उसके बहुत से सैनिक भाग खड़े हुए वह बड़ा घबराया तो भी बड़ी वीरता से लड़ा परन्तु अन्त में हार खाई और वीरगति को प्राप्त हुआ।
- दाहिर की विधवा पत्नी रवी बाई ने 15.000 सैनिक लेकर रावड़ के किले के अंदर से डटकर मुकाबला किया परन्तु आखिरकार यह महसूस करके कि शत्रुओं के विरुद्ध अधिक डटे रहना सम्भव रहीं, उसने दूसरी स्त्रियों के साथ जौहर की परम्परा को पूरा किया तथा अपमान की अपेक्षा मृत्यु को गले लगाया। इस प्रकार अरब लोगों को एक पूर्ण विजय प्राप्त हुई और वे ब्राह्मणावाद की ओर बढ़े।
ब्राह्मणावाद की विजय
- जब अरब ब्राह्मणावाद पहुँचे तब दाहिर के बेटे जयसिंह ने ब्राह्मणावाद की प्रतिरक्षा में सैनिक जुटाए और शत्रुओं का डटकर मुकाबला किया।
- कोई 8000 हिन्दू मारे गये परन्तु कम-से-कम उतने ही शत्रु भी नष्ट हुए। जयसिंह किसी तरह बचकर निकल गया।
- मुहम्मद ने नगर पर अधिकार कर लिया और सारे धनकोष को अपने कब्जे में ले लिया। यहीं ब्राह्मणावाद में ही दाहिर की एक और विधवा रविलादी और उसकी दो सुन्दर लड़कियाँ सूर्यदेवी और परमलदेवी शत्रुओं के हाथ लगीं।
एलोर पर अधिकार
- अब मुहम्मद-बिन-कासिम एलोर जिसे एरोड़ भी कहते थे, की ओर बढ़ा। वह उस समय सिन्ध की राजधानी था।
- यहाँ दाहिर के एक और बेटे फूजी ने शत्रु का सामना किया परन्तु उसकी हार हुई।
- एलोर की विजय के साथ सारे सिन्ध की विजय मुकम्मल हो गई।
मुलतान की विजय
- 713 ई. के आरंभ में मुहम्मद-बिन-कासिम मुलतान की ओर बढ़ा।
- राह में जिस किसी ने उसका विरोध किया उन सबको हराते हुए वह अन्त में मुलतान के द्वार पर जा पहुँचा। कहते हैं कि देबल की तरह इस महत्त्वपूर्ण नगर की भी हार इस कारण हुई कि एक गद्दार ने धोखा दिया और शत्रु को वह नदी बता दी जहाँ मुलतान के लोग पानी पिया करते थे।
- मुहम्मद ने बड़ी चालाकी से जल-प्राप्ति का वह स्रोत काट डाला और लोग प्यासे मरने लगे।
- इस प्रकार उसे बड़ी सुगमता से नगर पर विजय प्राप्त हो गई और उसने खूब लूटमार मचाई, लोगों को मारा और कितनों को दास बना लिया।
- अरब लोगों को यहाँ से इतनी दौलत मिली कि वे मुलतान को सोने का नगर समझने लगे।
- मुलतान की विजय के बाद मुहम्मद बिन कासिम ने कन्नौज को जीतने की तैयारी आरंभ कर दी परन्तु उसकी अचानक दुःखदायी मौत ने भारत में अरबों की अधिक विजय पर रोक लगा दी ।
मुहम्मद-बिन-कासिम की मौत कैसे हुई
मुहम्मद की मौत
मुहम्मद-बिन-कासिम की मौत की कहानी कुछ इस प्रकार है-ब्राह्मणावाद की विजय के बाद मुहम्मद ने दाहिर की दोनों सुन्दर लड़कियाँ सूर्यदेवी और परमलदेवी खलीफा वालिद के पास भेज दीं।
- लड़कियों ने खलीफा को बताया कि हमें तो कासिम ने पहले ही अपमानित तथा दूषित कर दिया है । इस पर खलीफा क्रोध से भभक उठा और उसने आज्ञा दी कि मुहम्मद बिन-कासिम को एक बैल की कच्ची खाल में मढ़वाकर मेरे पास भेज को सता-सताकर मार डाला गया तो दोनों लड़कियों ने खलीफा को बता दिया जाए। जब ऐसा हो चुका और मुहम्मद को सता कर मार डाला गया । तो दोनों लड़कियों ने बता दिया कि मुहम्मद बिन कासिम निर्दोष था और हमने यह कहानी अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए गढ़ी थी। खलीफा क्रोध से लाल-पीला हो गया और उसने आज्ञा दी कि दोनों राजकुमारियों को एक-एक घोड़े की दुम के साथ बाँधकर तब तक घसीटा जाए जब तक वे मर नहीं जातीं।
परन्तु अब कासिम की मौत की यह कहानी झूठी मानी जाती है।
- असली कारण यह था कि कासिम का महान संरक्षक खलीफा वालिद हजाज और उसका परिवार 715 ई. में मर चुके थे और नया खलीफा सुलेमान हजाज का बड़ा विरोधी था,।
- मुहम्मद को जो हजाज का चचेरा भाई और दामाद था खलीफा की आज्ञा से सिन्ध से निकाल दिया गया और उसे कैदी बनाकर इराक भेज दिया गया, जहाँ उसे सता-सताकर मार डाला गया।
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