स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य, लाभ एवं कार्य |Objective, Benefits and Functions of Self Help Group
स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य Purpose of self help group
1. समूह के सदस्य जो अपनी समस्या का समाधान अकेले नहीं कर पाते। उनकी समस्याओं का समाधान करना।
2. ग्रामीण निर्धनों को आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पूरक ऋण नीतियां बनाना।
3. ग्रामीणों के अन्दर बचत एवं ऋण सम्बन्धी गतिविधियों को बढ़ावा देना।
4. समूह के सदस्यों के भीतर आपसी विश्वास और आस्था स्थापित करना।
5. निर्धन ग्रामीणों तथा बैंकरों के बीच विश्वास बढ़ाना।
6. निर्धन ग्रामीणों को स्वरोजगार का अवसर प्रदान करना।
स्वयं सहायता समूह से लाभ Benefit from Self help group
देश में अनेक नीतिगत निर्णय होने के बावजूद भी आज देश की 10 करोड़ जनता को बैंक ऋण की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इसका प्रमुख कारण था। गरीब की छोटी-छोटी परन्तु बार-बार ऋण राशि की आवश्यकताएं/इस छोटे-छोटे बिना जमानत के ऋणों को परिचालन में (ऋण देना, ऋण की निगरानी करना तथा ऋणों की वसूली) खर्चीला और जोखिम भरा था। अतः इन सब कमियों को दूर करने के लिए स्वयं सहायता समूह की कल्पना की गई। इससे एक ओर तो गरीबों को बिना किसी जमानत रखे ऋण प्राप्त होता है तो दूसरी ओर बैंक की वसूली भी पुरी हो जाती है। इस तरह समूह के सदस्यों को निम्न लाभ होता हैं -
1. आर्थिक कार्य चुनने की स्वतंत्रता।
2. बिना किसी जमानत के ऋण की प्राप्ति।
3. समूह के सदस्यों को परस्पर समुदायिक सहायता।
4. लघु कुटीर उद्देश्यों को बढ़ावा।
5. आसानी से स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण की उपलब्धता।
6. आकस्मिक आवश्यकताओं हेतु ऋण की शीघ्र उपलब्धकता।
स्वयं सहायता समूह के कार्य Self Help Group Functions
1. समूह की बैठक नियमित होनी चाहिए। यह सदस्य नियमित रूप से मिलते हैं तो वे एक-दूसरे की समस्याओं के अच्छे ढंग से समझकर बेहतर तालमेल काम कर सकते है । नियमित बैठकों से आपसी विश्वास एवं सहयोग की भावना पनपाती है।
2.बैठक का संचालन हर बार अलग-अलग सदस्य द्वारा किया जाना चाहिए। इससे सभी सदस्यों को जिम्मेदारी उठाने का मौका मिलता है तथा व्यक्तिगत विकास भी होता है।
3. बैठकों में सभी सदस्यों को अपने विचार प्रकट करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए उन्हें मिलकर निर्णय लेना चाहिए। साथ ही सदस्यों को एक दूसरे के विचार सुनने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
4. समूह की बैठक में सभी सदस्यों के सामने सर्वसम्मति से अपना एक अध्यक्ष/सचिव/कोषाध्यक्ष का चयन करना चाहिए। जहाँ तक कोशिश करनी चाहिए कि कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी पढ़े लिखे व्यक्ति को सौंपी जाये जिससे व रूपये-पैसे का हिसाब रख सके। इसके अलावा यह स्थान रखना चाहिए कि इनका कार्यकाल 6 माह से 01 वर्ष से अधिक न हो ताकि सभी को नेतृत्व व जिम्मेदारी उठाने का मौका मिलता रहे।
5. समूह की बैठकों में सभी सदस्यों को उपस्थित रहना चाहिए तथा समूह में किसी प्रकार का निर्णय लिये जाने के लिए कम से कम दो तिहाई सदस्यों की उपस्थिति होनी चाहिए।
6. बैठक में चर्चा के विषय स्पष्ट होने चाहिए- जिसमें नियमित बैठक की तिथि निश्चत करना, बैठक में अनुपस्थिति पर सदस्यों पर दण्ड निश्चित करना, ऋण का लेन-देन, हिसाब-किताब लेखा-जोखा पर चर्चा, बचत राशि पर ऋण आदि बढ़ाने की चर्चा, समूह की व्यवस्थाओं के लिए नियम, समूह की नई जानकारियाँ प्रदान करना एवं समूह सदस्यों को अपनी नई सोच विकसित करना, कार्य विभाजन एवं जिम्मेदारी लेने की भावना विकसित करना,समूह के पास एकत्रित बचत राशि को बैंक में जमा करने की जिम्मेदारनी बांटना, नये सदस्यों को समूह में शामिल करने की प्रक्रिया पर समूह को सर्वसम्मति से पहले चर्चा कर लेनी चाहिए । आगे चलकर ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं आये और यदि कोई सदस्य समूह छोड़ना चाहता है तो पहले से ही यह आपस में होना चाहिए कि समूह को छोड़ते समय बकाया ऋण चुकाने उसकी बचत राशि की वापसी आदि का क्या तरीका होगा।
7. समूह को स्वयं की एक नियमावली बनानी चाहिए।
8. स्वयं सहायता समूह का नियमित लेखा-जोखा होना चाहिए जिसमें उपस्थिति रजिस्टर, कार्यवाही विवरण लेखा-जोखा तथा पासबुक आदि को अद्यतन पूर्ण होने चाहिए तथा लेन-देन का लेखा रिकार्ड सरल होना चाहिए।
9. लेखा एवं अन्य रजिस्टर में प्रविष्टियाँ जहाँ तक हो सके तो समूह के सदस्यों द्वारा ही की जानी चाहिए। अगर कोई भी सदस्य पढ़ा-लिखा नहीं है तो, गाँव के पढ़े-लिखे व्यक्ति से इसकी प्रवृष्टियाँ करानी चाहिए। सभी प्रवृष्टियाँ बैठक में ही होनी चाहिए। जिससे सभी सदस्यों को इसकी जानकारी रहे।
10. स्वयं सहायता समूह को निम्न पुस्तिकाओं का रख-रखाव करना चाहिए - (1) सदस्यता रजिस्टर (2) उपस्थिति रजिस्टर (3) कार्यवाही रजिस्टर (4) बचत एवं ऋण रजिस्टर (5) बैंक ऋण रजिस्टर (6) सदस्यवार पासबुक
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