मुसलमानों के आक्रमण के पहले भारत की स्थिति| Position of India before the invasion of Muslims
मुसलमानों के आक्रमण के पहले भारत की स्थिति
The Position of India before the invasion of Muslims
ग्यारहवीं शताब्दी में जब मुसलमानों ने भारत पर आक्रमण करने शुरू किये तब भारत विभिन्न राज्यों में बंटा हुआ था। इन राज्यों के शासक आपस में सर्वोच्च शक्ति स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे आपसी ईर्ष्या और द्वेष के कारण वे विदेशी आक्रमणकारियों का संगठित होकर सामना न कर सके। उनकी पराजय का यह एक मुख्य कारण था।
मुल्तान और सिंध
- 612 ई. में अरबों ने सिन्ध और मुलतान दोनों राज्यों को विजय कर लिया।
- ये दोनों हिन्दू राज्य यदि संगठित होकर विदेशियों द्वारा विजय किये जाने का विरोध करते तो अवश्य सफल होते। परस्पर शत्रुता के कारण ये राज्य मुसलमानों की अधीनता में रहे।
- 871 ई. में इन राज्यों ने खलीफा के आधिपत्य का अन्त कर दिया और स्वतंत्र हो गये।
- ये राज्य अपनी विशेष स्थिति के कारण समय-समय पर खलीफा के प्रति नाम-मात्र की स्वामि - भक्ति प्रदर्शित करते रहे। कई राजवंश आये और चले गये।
- ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में मुलतान में कारमाथियन जाति का शासक फतेह दाऊद राज्य करता था। वह अपनी योग्यता के लिए लोकप्रिय था। सिंध में अरब के मुसलमान राज्य करते थे।
हिन्दूशाही साम्राज्य
- इस राज्य की सीमाएँ चनाब नदी से लेकर हिन्दूकुश पर्वत तक थीं। काबुल इस राज्य के अन्तर्गत था।
- अरब के शासक इस राज्य को 200 साल के भरसक प्रयत्नों से भी विजय न कर सके। अन्त में इन्हें अफगानिस्तान, काबुल सहित छोड़ना पड़ा। नई राजधानी उदभंदपुर (Udbhandpur) अथवा Okbgan (Waihand) बनाई गई।
- जयपाल दसवीं शताब्दी के अन्त में यहाँ का शासक था। वह अपनी वीरता और योग्यता के लिए प्रसिद्ध था। किन्तु विदेशी विजेताओं का सामना करने में असफल रहा।
कश्मीर
- कश्मीर का राज्य मुख्य राज्यों में से एक था। इसके शासक को हिन्दुस्तानी साम्राज्य और कन्नौज के साथ युद्ध लड़ना पड़ा।
- कश्मीर का एक प्रसिद्ध शासक शंकरवर्मन था। उसकी अधीनता में राज्य की सीमा का अनेक दिशाओं में विस्तार हुआ। ऐसा कहा जाता है कि उसने आधुनिक हजारा जिले व प्राचीन उरासा के लोगों के साथ युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। उसका स्थान कुछ संघर्ष के बाद यशसकारा ने लिया। उसके उपरान्त पर्वगुप्त और क्षेमगुप्त शासक बने। क्षेमगुप्त की पत्नी दीदा वास्तव में राज्य की संचालक थी। कुछ समय के बाद उसने क्षेमगुप्त को उतार कर स्वयं सिंहासन संभाल लिया।
- दीदा के राज्य का अन्त 1003 ई. में हुआ। लोहारा वंश के शासक संग्राम राजा ने नये वंश की नींव डाली। मुसलमानों के पंजाब पर आक्रमण के समय कश्मीर का शासन एक नारी के अधीन था।
कन्नौज
- नौवीं शताब्दी के मध्य से कन्नौज में प्रतिहार वंश राज्य कर रहा था वे श्रीराम के भ्राता लक्ष्मण को अपने वंश का संस्थापक मानते थे।
- कई विद्वानों का मत है कि वे गुर्जर जाति की सन्तान हैं उनके राजा वत्स को सम्राट की उपाधि से सुशोभित किया गया था उसका उत्तराधिकारी राजा नागभट्ट द्वितीय था।
- धर्मपाल, बंगाल के शासक को नागभट्ट से पराजय स्वीकार करनी पड़ी परन्तु राष्ट्रकूटों से वह स्वयं हार गया। अपने पड़ोसी राज्यों से कन्नौज को निरन्तर युद्ध लड़ने पड़े।
- राष्ट्रकूटों के शासक, इन्द्र तृतीय ने कन्नौज के प्रतिहार राजा महिपाल को युद्ध में इतनी बुरी तरह से खदेड़ा कि उसकी राजधानी कन्नौज भी छिन गई।
- प्रतिहार राज्य क्षीण हो गया और उसकी सीमा संकुचित गई। उत्तरी गंगा घाटी, राजस्थान का कुछ अंश और मालवा उनके अधीन रह गये। उनके अधीनस्थ राज्य, बुन्देलखंड के चन्देल, गुजरात के चालुक्य और मालवा के परमार सब स्वतंत्र हो गये राज्यपाल प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक था जिसके शासनकाल में 1018 ई. में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया।
- तदुपरान्त गहड़वाल कन्नौज के नये शासक बने जिनका संस्थापक चन्द्रदेव था उसने काशी, कन्नौज. अयोध्या और इन्द्रस्थना आदि धार्मिक स्थानों की रक्षा की। सम्भव है कि उसने उरुशदंड नामक कर लगाकर उस धन से सीमा की रक्षा के लिए स्थायी सेना बनाई।
- चन्द्रदेव का पौत्र, गोविंद चन्द्र अपने पड़ोसी राज्यों के साथ निरन्तर युद्ध लड़ता रहा और उसने अपने राज्य की पूर्वी सीमा मुंघेर तक बढ़ा ली।
- ऐसा अनुमान किया जाता है कि उसे मुसलमानों का सामना करने में अधिक सफलता नहीं मिली। विजय चन्द्र ने गोविन्द चन्द्र का स्थान लिया। मुसलमानों से फिर युद्ध छिड़ गया। उसका स्थान जयचन्द्र ने लिया।
- जयचन्द्र को पूर्व में सेन वंश और पश्चिम में अजमेर और साम्भर के चौहान वंशों के साथ संघर्ष करना पड़ा। उसने 'उरुशदंड' नामक कर बन्द कर दिया। जयचन्द्र और पृथ्वीराज का परस्पर द्वेष दोनों के पतन का कारण बना।
चन्देल
- खजुराहो में चन्देलों का राज्य कन्नौज के दक्षिण में था उसके शासक विद्याधर ने महमूद गजनवी का सामना किया। उसके उपरांत इस राज्य को कई कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं।
- मदन वर्मन (1129-1163 ई. ) ने विदेशी शत्रुओं का सामना करने के साथ-साथ अपनी सीमा का विस्तार भी किया।
- 1165 से 1201 ईसवी तक उसके पौत्र परमार्दिन ने शासन किया।
- 1182 ई. के लगभग पृथ्वीराज चौहान ने उसे हराया परमार्दिन साहसी नहीं था वह चौहानों से शत्रुता रखता था और सम्भवतः गहड़वालों से मित्रता चाहता था।
दिल्ली के तोमर
- गंगा-घाटी के द्वार पर दिल्ली के तोमर-वंश ने अनेक बार सफलतापूर्वक रक्षा का अधिकार प्राप्त किया।
- महिपाल तोमर ने हांसी, थानेश्वर, नगरकोट आदि किलों को विजय किया परन्तु वे लाहौर न ले सके। उनके पड़ोसी शत्रु राजपूतों ने उन्हें शान्ति से न बैठने दिया।
- परिस्थितियों से विवश होकर अपनी रक्षा के लिए तोमरों ने मुसलमानों से राजपूतों के विरुद्ध सन्धि कर ली।
चौहान
- चौहान तोमर वंश के शत्रु थे। 11वीं और 12वीं सदी में उन्होंने अपनी शक्ति बढ़ा ली।
- 1079 ई. में दुर्लभ राजा तृतीय मुसलमानों से युद्ध लड़ता हुआ अमर हो गया। उसका कार्य पृथ्वीराज प्रथम ने जारी रखा।
- अजयराज को गजनी के मुसलमानों को हराने का श्रेय दिया जाता है। अरुणोराजा, अजयराज के पुत्र ने अजमेर के निकट न केवल मुसलमानों को पराजित किया अपितु उनके राज्य पर भी आक्रमण किये। उसके पुत्र विशाल व विग्रहराज चतुर्थ के अधीन मुसलमानों के आक्रमण को रोका गया और साथ ही हांसी तथा दिल्ली को भी अपने राज्य में मिला लिया।
- तोमर वंश ने चौहान वंश की अधीनता स्वीकार कर ली।
- विग्रहराज को एक सतर्क शासक माना जाता है क्योंकि उसने अपने राज्य की विदेशी शत्रुओं से रक्षा की ।
- आर्यावर्त को केवल आर्यों का निवास स्थान बनाना और हिन्दुओं के मन्दिरों की मुसलमानों से रक्षा करना विग्रहराज ने अपने जीवन का ध्येय बनाया था। यह प्रमाण हमें शिवालिक स्तम्भ-प्रशस्ति और ललित-विग्रह राज नाटक से मिलता है।
- चालुक्यों और चौहानों की शत्रुता का वर्णन किये बिना यह गाथा अधूरी रह जाती है चालुक्य राजा मूलराज को विग्रहराज द्वितीय ने पराजित किया। गुजरात के राजा जयसिंह सिद्धार्थ ने अपनी पुत्री का विवाह अरुणोराजा से कर के शत्रुता को मित्रता में बदलने का प्रयास किया.
- कुमारपाल चालुक्य के राज्य में एक बार फिर युद्ध की दुन्दुभी बज उठी। उसने अजमेर के पास अरुणोराजा को हराकर अपमानजनक शर्ते मानने के लिए बाध्य किया।
- विग्रहराज चतुर्थ ने चालुक्यों से उनके राज्य को रौंद कर और चित्तौड़ को विजय करके अपने पूर्वज के अपमान का बदला लिया। संघर्ष चलता रहा।
- 1187 ई. में दोनों पक्षों ने थक कर सन्धि कर ली। दुर्भाग्य की बात है कि इतना सहन करने पर भी दोनों वंश मुसलमान आक्रमणकारियों का सामना करने के लिए संगठित न हो सके।
- उत्तरी भारत में सर्वोच्च राजनैतिक सत्ता हथियाने के उद्देश्य से चौहान वंश ने महोबा-खजुराहो के चन्देलों, बयाना के भडनका वंश (Bhadanaka), मालवा और आबू के परमार और बनारस तथा कन्नौज के गहड़वालों के राज्यों पर आक्रमण किये।
- मालवा के परमार वंश के साथ भी उनकी शत्रुता थी। चालुक्य और चौहान प्रभुत्व के लिए शत्रुता रखते थे। जयचन्द्र गहड़वाल और पृथ्वीराज तृतीय चौहानों के वंशज शत्रु थे।
- पृथ्वीराज ने जयचन्द्र की पुत्री का अपहरण कर लिया। इससे शत्रुता ने और भी भीषण रूप ले लिया।
गुजरात के चालुक्य
- दसवीं सदी के मध्य में मूलराज ने गुजरात में चालुक्य वंश का राज्य स्थापित किया जयसिंह सिद्धार्थ और कुमारपाल के प्रयत्नों से यह राज्य पश्चिमी भारत का एक महान शक्तिशाली राज्य बन गया।
- इस राज्य की सीमा के अन्दर गुजरात, सौराष्ट्र, मालवा, आबू, नदौल और कोनकण स्थित थे।
- इस राज्य के शासकों का क्रम इस प्रकार था-कुमारपाल, अजयराज, मूलराज द्वितीय, भीम द्वितीय।
- मूलराज द्वितीय की माता ने अपने अधीनस्थ राजाओं के सहयोग से मुहम्मद गौरी के आक्रमण को पछाड़ दिया।
- भीम द्वितीय के शासन काल में उसके अधीन राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और उसे सिंहासन से उतार दिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि भीम द्वितीय एक साहसी वीर शासक था परन्तु वह और उसके पड़ोसी राजा मुहम्मद गौरी की असीम और भयंकर सैनिक शक्ति का अनुमान न लगा सके। जब तक शत्रु उसकी सीमा पर न आ पहुँचा भीम द्वितीय और उसकी सेनाएँ टस से मस न हुई। उन्होंने एक शुभ अवसर हाथ से खो दिया।
मालवा के परमार
- दक्षिणी और उत्तरी भारत के लगभग सभी राज्यों साथ परमार वंश को अपनी स्थिति के कारण युद्ध करने पड़े। भोज महान ने हिन्दू जाति में एक नयी जीवन-ज्योति प्रेरित कर दी। उसने मुसलमानों का विरोध किया।
- 1028 ई. में जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर पर आक्रमण किया तो सम्भवत: वह भोज की शक्ति के भय से पहला मार्ग छोड़कर दूसरे रास्ते से वापिस गया।
- भोज के शत्रुओं की मुसलमानों के प्रति क्या नीति थी. कुछ ऐसे प्रमाण नहीं मिलते। 12वीं सदी में मालवा की स्थिति अच्छी न रह सकी।
कलचुरि
- गोरखपुर में कलचुरि की दो शाखाएँ राज्य करती थीं।
- एक शाखा त्रिपुरी में थी। त्रिपुरी के राजा कोकल ने त्रुषका (Turushkas) राज्य में लूट मचा दी।
- 1034 ई. में बनारस के राजा गांगेयदेव विक्रमादित्य ने नयालतगीन के आक्रमण के समय मुसलमानों के साथ भीषण युद्ध लड़ा। इसके उपरांत कलचुरि वंश, चन्देल और परमार वंशों के विरुद्ध प्रभुसत्ता के लिए लड़ता रहा।
- 1139 ई. में जयसिंह कलचुरि सिंहासन पर बैठा। उसने गजनवी के शासक खुसरो मलिक के आक्रमण को खदेड़ दिया।
- जयसिंह ने 1177 से 1180 ई. तक राज्य किया। उसका उत्तराधिकारी विजयसिंह 1195 ई. तक शासक रहा। उसने अपने पूर्वजों की नीति के अनुसार पड़ोसी राज्यों से युद्ध किये।
बंगाल का पाल वंश
- पाल वंश के राजा देवपाल ने बहुत समय तक राज्य किया चूंकि उसके उत्तराधिकारी कमजोर थे इसलिए उसके राज्य की अवनति हो गई।
- पाल वंश के राजाओं को कन्नौज के प्रतिहारों से युद्ध करना पड़ा और उनकी प्रजा की दुर्दशा हुई।
- 11वीं शताब्दी के प्रारम्भ में महिपाल प्रथम ने बंगाल पर राज्य किया, वह महमूद का समकालीन था। वह अपने वंश के नाम को ऊँचा उठा सका । ऐसा प्रतीत होता है कि बंगाल का कुछ भाग स्वतन्त्र हो गया था और उसके राजा नाम मात्र ही अधीन थे।
- जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया, उसी समय राजेन्द्र चोल ने बंगाल पर आक्रमण किया। इस कारण बंगाल के लोगों की बहुत हानि हुई।
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