इस्लाम की प्रगति और विस्तार Progress
and Expansion of Islam
632 ई. में मुहम्मद साहिब की मृत्यु के पश्चात्
इस्लाम संसार के भिन्न-भिन्न देशों में फैलने लगा।
इस्लाम को फैलाने का काम
खलीफाओं ने अपने ऊपर ले लिया।
632 ई. से 749 ई. तक उमैयद खलीफाओं का प्रमुख रहा ।
परन्तु 749 ई. से 1256 ई. तक अबासीद खलीफा बने रहे और वे ही इस्लाम के वास्तविक
नेता भी थे।
उमैयद खलीफे (The Omayyads)
अबुबक्र, 632-34 ई. (Abu
Bakr):
पैगम्बर
साहिब की मौत के बाद अरब लोगों ने अबुबक्र को अपना खलीफा चुना। वह पैगम्बर साहिब
के परिवार के एक मुख्य सदस्य थे तथा ससुर भी। पैगम्बर साहिब के जमाता अली साहिब को इस अधिकार से वंचित रखा गया।
इस प्रकार यह स्पष्ट तथा स्थापित कर दिया गया
कि खिलाफत लोकमत के अनुसार ही मानी जायेगी। अबुबक्र बहुत ही नेक मनुष्य थे जो बहुत
सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करते थे और जिन्होंने इस्लाम का प्रचार तथा प्रसार के
लिये बहुत कुछ किया। उनके दो वर्ष के अवधिकाल में इस्लाम धर्म इराक तथा सीरिया तक
फैला गया। 634 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
उमर साहिब, 634-44 ई. (Omar):
अबुबक्र की मृत्यु के बाद खिलाफत उमर
साहिब के हाथों में आ गई जो पैगम्बर साहिब के बहनोई तथा परिवार के सबसे
बड़े सदस्य थे उमर साहिब के अधीन ही खिलाफत की पदवी का महत्त्व बढ़ा।
उन्होंने
इस्लाम के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया। उन्हीं के नेतृत्व में ईरान
के सम्राट की हार हुई। उनकी सेनाएँ उत्तरी अफ्रीका की ओर त्रिपोली तक जा पहुँचीं
संक्षेप में, उमर
साहिब की मृत्यु 644 ई. में हुई परन्तु उससे पहले इराक, बेबीलोन, ईरान, मिस्र और अफ्रीका के कुछ भाग जीत लिए
गये थे और वहाँ इस्लाम का झंडा गाड़ दिया गया था।
उस्मान, 644-656 ई. (Osman):
उमर के बाद उस्मान साहिब 644 ई. में
गद्दी पर बैठे। उनके अधीन मुसलमान सेनाओं ने काबुल, गजनी, बल्ख और हैरात को जीत लिया और तुर्की
को मुसलमान बना दिया। परन्तु 656 ई. में इस खलीफा के विरुद्ध एक षड्यंत्र हुआ और
उनकी हत्या कर दी गई ।
अली, 656-661 ई. (Ali):
उस्मान साहिब की हत्या के पश्चात्
पैगम्बर साहिब के जमाता तथा चचेरे भाई अली साहिब को खलीफा बना दिया गया। परन्तु
कुछ ऐसे बिगड़े हुए लोग निकल आये जिन्होंने उनकी सत्ता को चुनौती दी, उनके चुनाव को अवैध माना और उनके
विरुद्ध षड्यंत्र करना आरंभ कर दिया। सीरिया के राज्यपाल मुआविया ने उनकी सत्ता
मानने से इंकार कर दिया। उसने अपनी सेनाएँ इकट्ठी कीं और अली साहिब के विरुद्ध
चढ़ाई कर दी। युद्ध में अली साहिब मार डाले गये और इस प्रकार मुआविया खलीफा बन
गया।
मुआविया (Muawiya):
मुआविया के खलीफा बन जाने से बड़ा भारी
परिवर्तन पैदा हो गया। उसने खुले रूप से घोषणा कर दी कि मैं ही इस्लाम का पहला
सम्राट और इस्लाम के मानने वालों का पहला सेनापति हूँ। खिलाफत अब चुनाव की बात न
रह गई और उनके स्थान पर पैतृक अधिकार का नियम लागू कर दिया गया। खलीफत का केन्द्र
मदीना से हटाकर दमश्क बना दिया गया। मुआविया के अधीन मुसलमानों ने ट्यूनिस, मोराको इत्यादि दूर-दूर स्थानों को जीत
लिया और इस्लाम धर्म इन सब देशों में फैल गया। पूरा स्पेन और फ्रांस का भी एक भाग
जीत लिए गये।
इतिहासकार गिब्बन का कहना है कि 'हिजरत की पहली शताब्दी के अन्त तक
खलीफा लोग पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली और निरंकुश सम्राट बन चुके थे।' ऐसा लगता था कि क्रिस्तानी साम्राज्य
के स्थान पर इस्लामी साम्राज्य स्थापित होने वाला है।
उमैयद लोग
उमैयद लोग मौलिक रूप से अरबी विचारधारा के थे।
उनके सेनापति व राज्यपाल अरब जाति के थे और उन्होंने अरबी भाषा तथा अरबी मुद्रा का प्रयोग किया।
उन्होंने एक बड़ा इस्लामी साम्राज्य बना डाला। वे ठाट-बाट के बड़े प्रेमी थे और अपनी प्रतिष्ठा का बड़ा ध्यान
रखते थे।
आठवीं शताब्दी की दूसरी चौथाई में उमैयदों की
शक्ति घटने लगी। कारण यह था कि उन्होंने उन लोगों के साथ जो अरब जाति के नहीं थे
घृणा व्यवहार किया और अन्तिम उमैयद उत्साही, सच्चे और दृढ़ लोग नहीं थे।
अन्तिम
उमैयद खलीफा को अब मुसलमानों ने हरा दिया और बगदाद में अब्बास की सत्ता स्थापित कर
दी। 749 ई. से उमैयदों की जगह अबासिदों ने ले ली।
अबासीद खलीफे (The Abbasids):
अबासिदों ने 749 ई. से 1256 ई. तक
राज्य किया । उन्होंने दमश्क के स्थान पर बगदाद को अपनी राजधानी बनाया अबासिदों के
आने से अरबी तत्व पिछड़ गये। अब ईरानी आगे आये।
खलीफा के दरबार में ईरानी
रीति-रिवाज अपना लिए गये।
अबासीद धर्म के शिया थे जबकि उमैयद सुन्नी थे।
अबासीद
खलीफाओं में सबसे प्रसिद्ध हारूँ अल- रशीद हुआ है जिसके राज्यकाल में बगदाद कला और
ज्ञान का केन्द्र बना।
तुर्कों को सेना में नौकरियाँ मिलीं। समय पड़ने पर यही
तुर्क पकड़े गये और व्यावहारिक रूप से खलीफा उनके हाथ की कठपुतली बनकर रह गया।
1256 ई. में चंगेज
के पोते हलाकू ने बगदाद पर चढ़ाई कर दी और अन्तिम खलीफा अल- मुस्तसीम को मार डाला।
इस प्रकार बगदाद में खिलाफत का अन्त हो गया.
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