मुगल काल में प्रान्तीय शासन Provincial rule in the Mughal period
मुगल काल में प्रान्तीय शासन Provincial rule in the Mughal period
साम्राज्य का प्रान्तों में विभाजन
- मुगल काल में सूबों का प्रशासन केन्द्रीय प्रशासन के अनुरूप ही किया जाता था। शेरशाह के काल में सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई सरकार थी।
- बादशाह अकबर ने प्रान्तों को सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई बना दिया था।
- अकबर के शासनकाल में पहले 12 सूबे थे जो कि दक्षिण भारत में साम्राज्य विस्तार के बाद खानदेश, बरार और अहमदनगर मिलाकर 15 हो गए थे।
- शाहजहां के काल में काश्मीर, थट्टा, उड़ीसा, दौलताबाद व कान्धार को सूबे का दर्जा देने के कारण इनकी संख्या 20 तथा बाद में कान्धार के साम्राज्य से निकल जाने के कारण इनकी संख्या 19 रह गई थी ।
- औरंगज़ेब के काल में बीजापुर और गोलकुण्डा विजय के बाद इनकी संख्या 21 हो गई थी।
1 सूबेदार
सूबेदार क्या होता है
- प्रान्त के सर्वोच्च अधिकारी को सूबेदार अथवा निज़ाम कहा जाता था जिसकी कि नियुक्ति बादशाह के द्वारा की जाती थी।
- सूबेदार प्रान्त में बादशाह का प्रतिनिधित्व करता था और अपने सूबे में उसके फ़रमानों को लागू करता था। सूबेदार अपने प्रान्त का सर्वोच्च प्रशासनिक तथा सैनिक अधिकारी होता था। वह एक उच्च श्रेणी का मनसबदार भी होता था।
- सूबेदार को अपने तथा अपनी सेना के व्यय के लिए एक जागीर आवंटित की जाती थी। अपने प्रान्त में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखना, उद्योग, व्यापार एवं कृषि को प्रोत्साहन देना, अपनी सेना में अनुशासन बनाए रखना तथा प्रान्त की गतिविधियों से बादशाह को नियमित रूप से अवगत कराना सूबेदार का दायित्व होता था।
- एक ही प्रान्त में अधिक समय व्यतीत करके सूबेदार अपनी शक्ति और संसाधनों में वृद्धि कर स्वतन्त्र शासक बनने के लिए बादशाह के विरुद्ध द्रोह न कर बैठें, इसको ध्यान में रखते हुए सूबेदारों का समय-समय पर एक सूबे से दूसरे सूबे में स्थानान्तरण कर दिया जाता था।
- प्रान्त में सूबेदार की देखरेख में दीवान, बख्शी, सद्र आदि कार्य करते थे किन्तु वे केन्द्र में अपने उच्चस्थ अधिकारियों क्रमशः दीवान-ए-आला/दीवान-ए-कुल, मीरबख्शी तथा सद्र-उस-सुदूर के प्रति भी उत्तरदायी होते थे।
2 दीवान
मुगल काल में दीवान का पद
- प्रान्तीय वित्त विभाग का प्रमुख दीवान होता था।
- वैसे तो दीवान सूबेदार के आधीन होता था किन्तु उसे वित्तीय मामलों में सूबेदार से स्वतन्त्र शक्तियां प्राप्त थीं और उसकी नियुक्ति भी सीधे बादशाह के द्वारा की जाती थी।
- सूबेदार को दीवान पर नियन्त्रण की शक्ति न देने के पीछे शक्ति सन्तुलन तथा शक्ति-विभाजन के सिद्धान्त थे।
- सूबेदार और दीवान दोनों ही एक-दूसरे की महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाने का कार्य करते थे।
3 बख्शी
मुगल काल में बख्शी के पद का महत्व
- प्रान्त में सैन्य विभाग का प्रमुख बख्शी होता था। प्रान्त में मौजूद मनसबदारों की व्यवस्था का दायित्व उसका होता था। वह मीर बख्शी को वर्ष में दो बार अपने विभाग की विस्तृत रिपोर्ट भेजता था।
4 सद्र तथा काज़ी
- प्रान्तीय स्तर पर अपने उच्चस्थ केन्द्रीय अधिकारी सद्र-उस-सुदूर तथा काज़ी-उल-कज़ात के कर्तव्यों तथा अधिकारों का निर्वाहन इन अधिकारियों द्वारा किया जाता था।
5 वाकियानवीस
- प्रान्तीय गुप्तचर विभाग का प्रमुख वाकियानवीस होता था। इसका दायित्व अपने गुप्तचरों के माध्यम से प्रान्त की प्रमुख गतिविधियों की खबर केन्द्र तक पहुंचाना था। अपने दायित्व निर्वाहन में वह सूबेदार तथा दीवान के आधीन न होकर स्वतन्त्र रूप से कार्य करता था।
6 कोतवाल
- प्रान्तीय राजधानियों में शान्ति एव सुरक्षा बनाए रखने का दायित्व कोतवाल का होता था। उसे एक न्यायधीश की भूमिका भी निभानी होती थी और नगर में देह व्यापार पर भी नियन्त्रण रखना होता था।
7 दारोगा- ए- डाक चौकी
- प्रान्त के प्रत्येक भाग से केन्द्र तक और केन्द्र से प्रान्त तक आवश्यक सूचना पहुंचाने का दायित्व डाक विभाग के अध्यक्ष दारोगा-ए-डाक चौकी का होता था।
8 मीर- ए- बहर
- मीर-ए-बहर का दायित्व पुलों तथा नौकाओं की देखभाल, सीमा शुल्क तथा पत्तन शुल्क पर नज़र रखना होता था।
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