सुल्तान सिकन्दर लोदी | Sultan Sikandar Lodi
सुल्तान सिकन्दर लोदी | Sultan Sikandar Lodi
सिकन्दर लोदी के राज्यारोहण के समय की समस्याएं
- निज़ाम खाँ 16 जुलाई, 1489 को सिकन्दर लोदी के रूप में दिल्ली का सुल्तान बना। बहलोल लोदी ने अपने पुत्र निज़ाम खाँ (सुल्तान बनने के बाद सिकन्दर लोदी) को पंजाब, दिल्ली और दोआब देकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था किन्तु अपनी मृत्यु से पूर्व उसने अपने अन्य सम्बन्धियों तथा अमीरों में अपने शेष राज्य का बटवारा कर दिया था। उसने अपने पुत्र बरबक शाह को जौनपुर का राज्य, आलम खाँ को मानिकपुर, अपने भांजे काला पहाड़ को बहराइच और अपने पौत्र आज़म हुमायूं को लखनऊ एवं कालपी तथा खान जहां लोदी को बदायूं का क्षेत्र दिया था।
- बहलोल की मृत्यु के बाद अमीरों का एक प्रभाशाली वर्ग निज़ाम खाँ के स्थान बरबक शाह यां आज़म हुमायूं को सुल्तान बनाए जाने का पक्षधर था।
- जौनपुर के अपदस्थ शर्की शासक हुसेन शाह ने जौनपुर के बागी अमीरों के सहयोग से उस पर पुनराधिकार का प्रयास किया।
- बहलोल की उदारता के कारण राजकोष रिक्त हो गया था। ग्वालियर तथा बयाना आदि ने खिराज देना बन्द कर दिया था।
सुल्तान सिकन्दर लोदी द्वारा समस्याओं का निराकरण
राज्य के बटवारे को समाप्त करना
- सुल्तान बनते ही सिकन्दर लोदी ने अपने विरोधियों के दमन हेतु आवश्यक कदम उठाए। उसने अपने भाई आलम खाँ को अपनी ओर मिलाया तथा अपने भतीजे आज़म हुमायूं व चाचा ईसा खाँ को पराजित किया। बरबक शाह को अनेक बार पराजित और क्षमा प्रदान करने के बाद उसने उसे अपदस्थ कर जौनपुर अपने अधिकार में कर लिया।
हुसेन शाह शर्की का दमन
- जौनपुर के अपदस्थ शर्की शासक हुसेन शाह को सिकन्दर लोदी ने पराजित किया। शाह बंगाल चला गयया। कुछ वर्षों के अन्तराल के बाद हुसेन शाह ने फिर सर उठाया किन्तु सन् 1494 में सिकन्दर ने एक बार फिर हुसेन शाह को पराजित किया।
अमीरों पर नियन्त्रण तथा राजत्व के सिद्धान्त में बदलाव
- सिकन्दर लोदी के अमीर उसको अपना स्वामी नहीं, अपितु अपना मुखिया मात्र मानते थे। उसके अनेक अमीर उसके स्थान पर बरबक शाह अथवा आज़म हुमायूं को सुल्तान बनाना चाहते थे। सिकन्दर ने बहलोल द्वारा पोषित राजत्व के सिद्धान्त में बदलाव कर सुल्तान पद की गरिमा को बढ़ाया और अमीरों के महत्व को कम किया। सुल्तान ने अपने अमीरों को अपने साथ एक ही मसनद पर बिठाने के स्थान पर उन्हें अपने सामने खड़े रहकर सम्मान प्रदर्शित करने के लिए विवश किया। अमीरों को सुल्तान के आदेश को पैदल चलकर ग्रहण करने के लिए बाध्य कि गया। अनुशासनहीन एवं भ्रष्ट अमीरों को उसने दण्डित किया और उनकी गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए गुप्तचर नियुक्त किए। जौनपुर के सूबेदार मुबारक खाँ लोदी को गबन करने पर दण्डित किया गया और अपने छोटे भाई फ़तेह खाँ को सुल्तान बनाने का षडयन्त्र करने वाले 22 अमीरों को उसने निर्वासित किया। इस प्रकार सिकन्दर ने बहलोल द्वारा पोषित राजत्व के सिद्धान्त में बदलाव कर सुल्तान पद की गरिमा को बढ़ाया और अमीरों के महत्व तथा उनकी महत्वाकांक्षाओं को कम किया किन्तु बुजुर्ग अमीरों के साथ उसने सम्माजनक व्यवहार किया। सिकन्दर लोदी ने विद्रोही अमीरों का कठोरतापूर्वक दमन किया।
सुल्तान सिकन्दर लोदी द्वारा साम्राज्य विस्तार
- हुसेनशाह शर्की ने बिहार में रहकर जौनपुर पर पुनराधिकार करने के लिए सन् 1494 में आक्रमण किया किन्तु सिकन्दर लोदी ने उसे पराजित किया और उसका पीछा करते हुए वह पटना जा पहुंचा। वहां उसने बिहार को अपने अधिकार में किया। इसी अभियान के दौरान उसने तिरहुत के शासक को भी अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
- सन् 1502 में सिकदर ने धौलपुर के शासक विनायक देव को पराजित कर धौलपुर अपने राज्य में मिला लिया। ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर पर उसने कई आक्रमण किए परन्तु वह ग्वालियर पर अधिकार करने में असफल रहा। उसने ग्वालियर राज्य के नरवर, मन्दर तथा उतगिर पर अधिकार करने में अवश्य सफलता प्राप्त की।
- राजपूत राज्यों पर नियन्त्रण रखने के लिए उसने बयाना पर अधिकार किया और उसके एक अंग आगरा को अपनी राजधानी के रूप में विकसित किया। सन् 1509 में सिकन्दर ने नागौर के शास मुहम्मद खाँ को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। सन् 1513 में चन्देरी भी उसके अधिकार में आ गया।
सुल्तान सिकन्दर लोदी की धार्मिक नीति
- सिकन्दर लोदी यद्यपि विवाह से पूर्व हिन्दू रही माँ का पुत्र था, उसने एक हिन्दू कन्या से विवाह भी किया था किन्तु उसने स्वयं को इस्लाम के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।
- बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम प्रजा के साथ उसने दमन की नीति अपनाई नरवर, उतगिर तथा मन्दर पर अधिका के बाद उसने मन्दिरों को ध्वस्त करके उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया।
- नरवर के मन्दिरों की मूर्तियों को खण्डित कर उसने उनके टुकड़ों को बांट के रूप में प्रयुक्त करने के लिए कसाइयों में वितरित कर दिया।
- मथुरा में उसने भक्तों का पवित्र घाटों पर स्नान करना तथा मुण्डन कराना निषिद्ध कर दिया। बोधन नामक ब्राह्मण को उसने केवल इसलिए प्राणदण्ड दिया क्योंकि वह अपने धर्म और इस्लाम में एक ही सत्य का वास मानता था।
- सूफ़ियों की उदार परम्पराओं पर भी उसने प्रतिबन्ध लगाया। मुहर्रम के समय ताज़ियों को निकालने और स्त्रियों के पीरों-फ़कीरों की मज़ार पर जाने पर उसने प्रतिबन्ध लगा दिया।
- जनश्रुति के अनुसार सन्त कबीर से भी उनकी नीतियों को लेकर उसका वाद-विवाद हुआ था। सुल्तान सिकन्दर लोदी की असहिष्णु धार्मिक नीति ने न केवल हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्ध में कटुता को बढ़ावा दिया अपितु राजपूत शासकों को मुस्लिम सत्ता के विरुद्ध संगठित होने के लिए प्रेरित भी किया।
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