सल्तनत का प्रशासन Sultanate Administration in Hindi
सल्तनत का प्रशासन Sultanate Administration in Hindi
सल्तनत काल में धर्म का अत्यधिक प्रभाव था और शरीयत को प्रधान माना जाता था। इस काल में उलेमा वर्ग सबसे प्रभावशाली था और सुल्तान को शरीयत के अनुसार शासन करने के लिए समय-समय पर दबाव डालता था। सुल्तान अपनी सुन्नी प्रजा को दिखाने के लिए खलीफा को नाममात्र का प्रधान मानता था। सल्तनत काल में भारत में नवीन शासन व्यवस्था की नींव डाली गयी.
सल्तनत कालीन प्रशासन को निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है
सुल्तान
- अपने समस्त राज्य का प्रधान सुल्तान था | इस युग में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम नहीं था लेकिन इल्तुतमिश के समय एक ऐसी परंपरा बनी कि सबसे पहले सुल्तान के पुत्र अथवा पुत्री को सिंहासन प्राप्त करने का अधिकार था।
- सुल्तान कानून बनाने, उन्हें लागू करने और न्याय करने में प्रधान था। सेना का सर्वोच्च सेनापति भी वही होता था।
- सभी पदाधिकारियों की नियुक्ति, उन्हें हटाने, उपाधियों का वितरण करने आदि के कार्य वही करता था।
- शासन व्यवस्था लागू करना, शान्ति की स्थापना और बाह्य आक्रमणों से देश की सुरक्षा करने के साथ इस्लाम धर्म का पोषण और विस्तार उसके प्रमुख कार्य थे।
मंत्री तथा अन्य कर्मचारी
सल्तनत काल में सुल्तान की सहायता के लिए कुछ मंत्रियों और अधिकारियों का उल्लेख
भी मिलता है; यथा
1 नाइब या नाइब ए मामलिकत
- यह पद बहरामशाह के समय शुरू हुआ, इस समय शक्तिशाली सरदारों ने अंकुश लगाने के लिए इस पद को प्रारंभ किया। अत: नाइब का पद सुल्तान के पश्चात था और यह सुल्तान पर राज्य के वजीर से भी श्रेष्ठ होता था। शक्तिशाली सुल्तानों के समय या तो यह पद रखा ही नहीं गया या केवल योग्य सरदारों को केवल सम्मान देने के लिए दिया गया।
2 दिवाने वजारत या वजीर
- इस काल में राज्य के प्रधानमंत्री को वजीर कहा जाता था। वह मुख्यत: दिवाने विजारत या राजस्व विभाग का प्रधान था। वह लगान, कर व्यवस्था, दान, , सैनिक रूय इत्यादि की देखभाल करता था। सुल्तान की अनुपस्थिति में राज्य का प्रबंध, विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति करना उसके अधिकार था वजीर की सहायता के लिए नाइब वजीर, मुंसरिफ-ए-मुमालिक, मुस्तौफी-ए मुमालिक जैसे अधिकारी होते थे।
3 आरिज-ए-मुमालिक
- यह सेना विभाग का प्रधान था लेकिन वह सेना का सेनापति नहीं था, सुल्तान समय-समय पर युद्धों के लिए अलग-अलग सेनापतियों की नियुक्ति करता था। सैनिकों की भर्ती, घोड़ों पर दाग लगवाना, सैनिकों का हुलिया रखना,समय-समय पर उनका निरीक्षण करना, उनकी रसद की व्यवस्था करना उसके मुख्य कार्य थे।
4-दीवान-ए-रसालत
- यह विदेश संबधी मामलों का प्रधान था । विदेशी पत्र व्यवहार के साथ ही राजदूतों के आवागमन, देखभाल इत्यादि के कार्य भी करता था।
5 दीवान-ए-इंशा
- यह शाही पत्र व्यवहार का प्रधान था। सुल्तान के सभी आदेशों को राज्य के विभिन्न भागों में भेजना, सरकारी डाक देखना, उनके उत्तर तैयार करना उसी के कार्य थे। उसकी सहायता के लिए अनेक दबीर (लेखक) होते थे।
सल्तनत काल में उपरोक्त चार विभाग ही मुख्य थे, इनके अलावा केन्द्र सरकार में सद्र उस
सदूर धर्म विभाग का प्रधान था। इस्लाम के कानूनों का पालन कराना उसका मुख्य
कर्तव्य था । योग्य व्यक्तियों, कस्जिदों, मकतबों, मदरसों को आर्थिक सहायता तथा शाही खैरात का प्रबंध करना उसका मुख्य
कार्य था। काजी-उल-कजात न्याय विभाग का प्रधान था और बरीए-ए-मुमालिक गुप्तचर विभाग
का संगठन देखता था। इसके अलावा दिल्ली के सुल्तानों ने समय-समय पर अपनी इच्छा के
अनुसार नये विभाग भी खोले थे।
सल्तनत काल में इक्ताओं का शासन
- दिल्ली सुल्तानों ने शासन की सुविधा के लिए एवं अपने सरदारों के वेतन आदि के भुगतान के लिए इक्तादारी व्यवस्था को भी अपनाया था। इक्ता का तात्पर्य प्रांत से है। इनका प्रधान मुक्ती, नाजिम, वली या नाइब सुल्तान पुकारा जाता था। मुक्ती की सहायता के लिए एक प्रांतीय वजीर, एक अरीज और काजी होते थे। 13वीं सदी के पश्चात इक्ता से छोटी इकाइयों अर्थात शिक का अस्तित्व मिलता है, जहां का मुख्य अधिकारी शिकदार होता था। शिक पुन: परगनों में विभाजित थे।
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