स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य ( 455-467 ई. लगभग ) | Skund Gupt Kaun tha
स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य ( 455-467 ई. लगभग )
स्कन्दगुप्त गुप्त वंश का अंतिम महान् सम्राट
- स्कन्दगुप्त गुप्त वंश का अंतिम महान् सम्राट था। उसने अपने पिता द्वारा बनाये गये विशाल साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा, परन्तु उसके समय से ही साम्राज्य पर विपत्ति के बादल मंडराने लगे, जिसके परिणामस्वरूप उसके मृत्यु के कुछ ही वर्षों पश्चात् विशाल गुप्त साम्राज्य को पतन के दिन देखने पड़े।
- डॉ. रमेशचन्द्र मजूमदार का मत था कि कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु के उपरान्त गद्दी पर अधिकार करने के लिए गृह युद्ध हुआ। इस युद्ध में स्कन्दगुप्त ने अपने सभी भाइयों, यहाँ तक कि पुरुगुप्त को भी जिसका सिंहासन पर वैध अधिकार था, को पराजित कर दिया तथा स्वयं सम्राट बन बैठा। इसके बाद उसने स्वयं सम्राट की उपाधि धारण की तथा जैसे भगवान कृष्ण ने देवकी का उद्धार दिया था वैसे ही उसने अपनी माता का उद्धार दिया।
- डॉ. मजूमदार का यह मत भिटारी अभिलेख पर आधारित है जिसकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं, उनका यह भी कहना है कि इस अभिलेख में तथा विहार अभिलेख में जो वंशावली दी गयी है, उसमें स्कन्दगुप्त की माता का नाम नहीं दिया गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि वह मुख्य रानी नहीं थी। इस प्रकार स्कन्दगुप्त सिंहासन का वैध उत्तराधिकारी नहीं था। सिंहासन का वास्तविक उत्तराधिकारी कुमारगुप्त एवं अनन्तदेवी का पुत्र पुरुगुप्त था।
- आधुनिक विद्वान इस मत को नहीं मानते हैं। अनेक साहित्यिक एवं मौद्रिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रथम कुमारगुप्त ने अपने जीवन के अन्तिम काल में राज्य का भार अपने एक पुत्र को सौंप दिया था। यह पुत्र प्रो. गोयल के मतानुसार, स्कन्दगुप्त ही होना चाहिए क्योंकि कथासरितसागर में उसे विक्रमादित्य कहा गया है जो स्कन्दगुप्त की उपाधि थी तथा उसे मलेच्छों पर विजय प्राप्त करने का गौरव प्रदान किया गया है।
- अतः डॉ. मजूमदार की गृह युद्ध की धारणा बहुत तर्कपूर्ण नहीं है। वास्तव में स्कन्दगुप्त की सैनिक प्रतिभा (पुष्यमित्रों का दमन) से प्रसन्न होकर ही कुमारगुप्त ने उसे अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था।
स्कन्दगुप्त के शासन काल की सबसे बड़ी घटना
- स्कन्दगुप्त के शासन काल की सबसे बड़ी घटना भारत पर हूण आक्रमण की है। ये हूण बर्बर जाति के थे और अपनी शक्ति का विस्तार कर वे यूरोप तथा एशिया में लूटमार मचाया करते थे।
- पाँचवीं शताब्दी ई. में हूण मध्य एशिया की एक सशक्त शक्ति बन बैठे थे। इनकी एक शाखा श्वेत हूण ने ऑक्सीस घाटी पर अपना अधिकार जमा लिया था। यहाँ से वे गान्धार तक बढ़ आए तथा अब भारत पर अपनी गिद्ध दृष्टि जमाए हुए थे।
- स्कन्दगुप्त के शासनकाल में हुए हूण आक्रमण का स्पष्ट उल्लेख उसके भिटारी अभिलेख में हुआ है। लेकिन उसकी जूनागढ़ प्रशस्ति में हूण के स्थान पर 'मलेच्छ' नाम का उल्लेख किया गया है।
- यद्यपि कुछ विद्वानों की धारणा है (सुधाकर चट्टोपाध्याय, राधाकृष्ण चौधरी, इत्यादि) कि हूण एवं मलेच्छ अलग-अलग थे, परन्तु ज्यादा विद्वान दोनों को एक ही मानते हैं। हूणों की चर्चा सोमदेव कृत कथासरितसागर में भी की गयी है।
- उपरोक्त वर्णित स्रोतों में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि स्कन्दगुप्त एवं हूणों के बीच संघर्ष कहां हुआ, लेकिन इस आक्रमण की भयंकरता का आभास इनसे अवश्य मिलता है।
- भिटारी अभिलेख में कहा गया है कि जब स्कन्दगुप्त ने हूणों के विरुद्ध युद्ध किया तो उसकी भुजाओं के प्रताप से धरा प्रकम्पित हो उठी और एक भयंकर बवण्डर उठ खड़ा हुआ। परन्तु इस विभीषिका के बावजूद स्कन्दगुप्त की हूणों पर विजय हुई। इस विजय ने हूणों के हौसले को काफी समय तक के लिए पस्त कर दिया। वे पाँचवीं शताब्दी के अन्त तथा छठी शताब्दी के प्रारम्भ तक फिर आक्रमण करने का साहस नहीं प्राप्त कर सके।
- इस प्रकार एक कठिन परिस्थिति में गद्दी पर बैठते हुए भी स्कन्दगुप्त ने इन कठिनाइयों पर सफलता प्राप्त की। उसने अपने पूर्वजों द्वारा प्राप्त साम्राज्य को बनाए रखा यद्यपि वह कोई नयी विजय प्राप्त नहीं कर सका।
- उसके जूनागढ़ लेख तथा गरुड़, वेदी और नन्दी प्रकार की रजत मुद्राओं से उसका अधिकार पश्चिमी प्रान्तों पर सिद्ध होता है। इन्दौर ( बुलन्दशहर), भिटारी (गाजीपुर), कहोम (गोरखपुर) तथा सूपिया (रीवा) लेखों एवं मयूर प्रकार के सिक्कों से स्पष्ट होता है कि उसका अधिकार मध्य प्रदेश पर भी था।
- बंगाल और बिहार से प्राप्त स्वर्णमुद्राओं से इन प्रदेशों पर भी उसके अधिकार होने की पुष्टि होती है। कुमारगुप्त प्रथम के समान ही उसके अधिकार में पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में गुजरात कठियावाड़ तक के क्षेत्र तथा उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा, उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक की विस्तृत भूमि उसके अधीन थी।
स्कन्दगुप्त का प्रशासन
- स्कन्दगुप्त ने साम्राज्य को बचाए रखने के साथ-साथ इसके कुशल प्रशासन की भी व्यवस्था की। उसने इस क्षेत्र में आवश्यक सुधार किए। पुराने प्रातपतियों के स्थान पर सभी प्रांतों में नए गवर्नर नियुक्त किए गए। जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने पर्णदत्त को सौराष्ट्र का गवर्नर नियुक्त किया। चक्रपालित को गिरनार का अधिकारी बनाया गया। इसने 456 ई. में सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण करवाया।
- देवताओं को सन्तुष्ट करने के लिए यज्ञ किये तथा सुदर्शन झील के समीप विष्णु भगवान (चक्रभृत) का एक मन्दिर भी बनवाया। इनके अतिरिक्त शर्व्वनाग एवं प्रभाकर तथा भीम वर्मा भी स्कन्दगुप्त के अधीन शासक या प्रान्तपति थे।
- स्कन्दगुप्त के अभिलेखों से स्थानीय प्रशासन पर भी कुछ प्रकाश पड़ता है। बिहार शिलालेख में अग्रहारिक, सौलिक तथा गौलमिक नामक अधिकारियों का उल्लेख किया गया है। इनमें से पहले शुल्क वसूल करने वाले थे तथा दूसरा जंगलों का अधिकारी था। जूनागढ़ अभिलेख से शहरों के प्रधान नगररक्षक के कार्यों पर भी प्रकाश पड़ता है। चक्रपालित ऐसा ही एक नगररक्षक था, जिसके कार्यों का उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं।
- स्कन्दगुप्त अपनी वीरता, जन कल्याण की भावना एवं चारित्रिक विमलता के लिए विख्यात था। भिटारी अभिलेख में उसे जगतिभूज-बलाढ्यो गुप्तवंशैकेवीरः कहा गया है। उसकी तुलना इन्द्र एवं राम से की गयी है। उसकी धर्मपरायणता और सत्यवादिता की भी चर्चा की गयी है तथा उसकी तुलना धर्मराज युधिष्ठिर से की गयी है। उसकी कुछ मुद्राओं पर उसे 'पराहितकारी' बतलाया गया है। स्कन्दगुप्त धार्मिक दृष्टिकोण से वैष्णव धर्मावलम्बी था लेकिन वह अन्य धर्मावलम्बियों को भी आदर की दृष्टि से देखता था। उसके राज्य में सभी धर्मों के मानने वालों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी।
अतः यह स्पष्ट है कि स्कन्दगुप्त अपने वंश का एक महान सम्राट था। उसने संकट की घड़ी में गुप्त साम्राज्य की रक्षा की। आर्यमंजुश्रीमूलकल्प के लेखक ने उसको 'उस अधम युग' में शासन करने वाला 'श्रेष्ठ', 'बुद्धिमान' और 'धर्मवत्सल' राजा बतलाया है।
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