भारत में आर्यों का आगमन |आर्यों का भारत में विस्तार | Arrival of Aryans in India
भारत में आर्यों का आगमन|
आर्यों का भारत में विस्तार
Aaryon Ka Bharat Me Aagman
- पश्चिमी एशिया के बोगाजकोई (एशिया माइनर) से प्राप्त चौदहवीं शताद्धी ई० पू० के कुछ अभिलेखों में ऐसे राजाओं का उल्लेख आया है, जिनके नाम आर्यों जैसे थे और जो सन्धियों की साक्षी तथा रक्षा के लिए इन्द्र, मित्र, वरूण और नासत्य जैसे देवताओं का आहवान करते थे।
- यह निश्चित है कि ये अभिलेख आर्य धर्म की विकासावस्था के हैं, जबकि उनके इन्द्र, वरूण और उनसे सम्बद्ध अन्य देवता भी अपनी प्रारम्भिक वैदिक प्रधानता कायम रखे हुए अपने पहले के निवास स्थान सिन्धु की तराई से एशिया माइनर चले गये या इसकी क्रिया ठीक इसके विपरीत थी ।
- इस सम्बन्ध में ऋग्वेद की एक ऋचा में एक उपासक अपने प्रत्न ओकस् यानी प्राचीन निवास स्थान से उन्हीं इन्द्रदेव का आहवान करता है, जिन्हें उसके पूर्वज भी पूजते थे।
- यह भी ज्ञात है कि यदु और तुर्वश ऋग्वेद के दो प्रधान जन थे, इन्द्र जिन्हें किसी दूर देश से लाये थे। कई ऋचाओं में यदु का विशेष सम्बन्ध पशु या पशु से जो नाम पर्शिया के प्राचीन निवासियों का था, स्थापित किया गया है। तुर्वश ने एक राजा से युद्ध में भाग लिया था, जिसका नाम पार्थव कहा गया है।
1 ऋग्वेद कालीन आर्यों का भारत में विस्तार
- दोनों इन्द्रोपासक आर्य दल आपस में संघर्ष करते रहते थे परन्तु अनार्यों के साथ उनकी लडाई महत्वपूर्ण है जिसके परिणामस्वरूप क्रमशः आर्यों का राज्य विस्तार पर्याप्त परिमाण में पूरब की ओर हुआ।
- शम्बर नामक दासों के सरदार से लडने का श्रेय दिवोदास को है ।
- सुदास ने उसकी नीति को जारी रखा और यमुना के किनारे देशी जातियों के शत्रुतापूर्ण गिरोह को कुचल डाला।
- विश्वामित्र नामक पुरोहित के पथ प्रर्दशन में भरत लोग कीकट नामक एक अनार्य जाति के विरोध भावना रखते हुए मालूम पड़ते हैं जिसका परम्परा मगध (दक्षिण बिहार) से सम्बन्ध था।
- ऋग्वेद की जातियों ने अन्त में जिस भौगोलिक क्षेत्र पर अपना अधिकार कायम किया था, उसका साफ-साफ संकेत कुछ नदियों के नामों के उल्लेख से मिलता है जिन्हें कि बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है। उनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण कुभा, सुवास्तु, क्रुम, गोमती (गुमल) सिन्धु, सुषोमा (सोहान), वितस्ता (झेलम), असिक्नी (चनाब), मरूद्वृधा, परूष्णी (रावी), विपाश (व्यास), सरस्वती, दृषद्वती (रक्षी या चितांग), यमुना, गंगा और सरयू है। इन नदियों का उल्लेख यह बताता है कि पूर्वी अफगानिस्तान से गंगा की ऊपरी तराई तक का बड़ा भू-भाग आर्यों के अधिकार में था।
- इस क्षेत्र का बडा भाग सप्तसिन्धु के नाम से प्रचलित था। इस बृहत प्रदेश का सारा भाग आर्य जातियों से पूर्णतः अधिकृत नहीं हो सका था, क्योंकि यहाँ दासों की जातियों (विशः) की चर्चा मिलती हैं, जिन्होंने इस भू-भाग का कुछ न कुछ भाग अवश्य ही अपने अधिकार में रखा होगा और जिनका निष्कासन अवश्य ही मन्द और क्रमिक गति से हुआ होगा।
- देश का बडा भाग या तो अरण्यानी से आच्छादित था या बिल्कुल ही बंजर था, जिसमें कहीं-कहीं पर कुछ कूऐं (प्रपा) थे।
2 उत्तर वैदिक कालीन आर्यों का भारत में विस्तार
- उत्तर वैदिक काल में 'विश्वजनीन राजा ' की धारणा प्रबल होने लगी। बडे-बडे राज्यों के बढ़ने के साथ ही हमें आर्यों के राजनीतिक और सांस्कृतिक आधिपत्य का फैलाव पूर्व और दक्षिण में मिलता है।
- यह जितना ही राजाओं और राजकुमारों के साहसपूर्ण उत्साह के कारण हुआ, उतना ही पुरोहितों की इच्छा के कारण भी, जो यज्ञों के द्वारा अग्नि देवता को नये देशों का स्वाद चखाना चाहते थे।
- उत्तर वैदिक काल के अन्त के पहले आर्यों ने यमुना, उपरी गंगा और सदानीरा (राप्ती या गंडक) से सिंचित उर्वरा मैदानों को पूर्णरूपेण जीत लिया। विन्ध्य जंगल में साहसी दल घुस गये और उन्होंने दक्खन में गोदावरी के उत्तर शक्तिशाली राज्य स्थापित किये।
- इस काल की जातियों में सबसे अधिक मुख्य पहले कुरू और पांचाल थे जिनकी राजधानियाँ क्रमशः आसन्दीवत् और काम्पिल थी।
- कुरूओं ने सरस्वती और दृषद्धती के अग्रभाग कुरूक्षेत्र और दिल्ली तथा मेरठ के जिलों को अधिकार में किया।
- पांचालों ने बरेली, बदायूं और फर्रूखाबाद जिलों और आस पास के कुछ भू-भागों में अपना अधिकार जमाया।
- आर्य जगत् का केन्द्र 'मध्यदेश' (धुरवा मध्यमा दिश) था। यह सरस्वती से लेकर गंगा के दोआब तक फैला और कुरू, पांचाल एवं निकट की कुछ जातियों के द्वारा अधिकृत था।
- यह वही भू-भाग था, जहाँ से ब्राहमण सभ्यता बाहर के प्रदेशों में सरयू और वरणावती से सिंचित कोसल एंव काशी में, विदेहों के उपनिवेश गंडक के पूरब वाली दलदलों में, और विद्रों से अधिकृत वर्धा की तराई में फैली इनके बाहर, पूर्व बिहार में बंग और दक्षिण बिहार में मौगध जैसी मिश्रित जातियाँ रहती थी और उत्तर बंगाल में पुण्ड्र, विध्य के जंगल में पुलिन्द और शबर तथा गोदावरी की तराई में आन्ध्र लोग रहते थे जो दस्यु या आदिवासी थे।
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