सिन्धु सभ्यता में कला कौशल Art skills in indus civilization
सिन्धु सभ्यता में कला कौशल Art skills in indus civilization
सिन्धु घाटी के खंडहरों से कला के अनेक प्रमाण मिले हैं। इन उपलब्धियों का अपना अलग महत्त्व है। इसके सहारे उस काल के लोगों के जीवन, सोचने के ढंग तथा धार्मिक विश्वास के विषय में जानकारी मिलती है।
सिन्धु सभ्यता में संगीत एवं नृत्यकला
- सिन्धुवासी संगीत एवं नृत्यकला के बहुत प्रेमी थे, इसकी जानकारी हमें नृत्य करती हुई एक स्त्री की मूर्ति से होती है। धातु की बनी यह मूर्ति नृत्यकला की विशेष उन्नति पर प्रकाश डालती है। बालों की सुन्दरता के लिए इसे संवारा भी जाता था। प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि यहां के लोग वाद्ययंत्र के भी प्रेमी थे। कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जो पत्तियों की हैं। इन पत्तियों की पूंछ से सीटी या बांसुरी बजाई जा सकती है। तबले एवं ढोल के भी चित्र मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता में बर्तन निर्माण कला
- अवशेष बताते हैं कि सिन्धुवासी बर्तनों का इस्तेमाल घरेलू कार्यों में करते थे। सुन्दर सुन्दर
- बर्तनों का निर्माण चाक के सहारे किया जाता था। कुम्हारों के आधुनिक चाक के समान यह चाक होता था। इस समय जो बर्तन बनते थे उनको रंगने की कला भी इन्हें मालूम थी। इन बर्तनों को सुन्दर एवं टिकाऊ बनाने के लिए चमकाया भी जाता था।
- बर्तनों के रंगने के लिए काले, नीले तथा पीले रंग का प्रयोग होता था। बर्तन चमकाने की कला उस समय मिस्र, सुमेर आदि देशों के लिए आश्चर्यजनक बात थी।
- बर्तन रंगने एवं चमकाने के अलावा ये लोग उस पर नक्काशी भी करते थे। तरह-तरह के चित्रों वाले टूटे बर्तन अवशेष के रूप में मिले हैं। कुछ ऐसे भी बर्तन मिले हैं जिन पर कुछ लिखा है। शायद उन बर्तनों पर कारीगरों के नाम हों।
सिन्धु सभ्यता में चित्रकला- सिन्धु प्रदेश में कुछ ऐसी सामग्रियाँ मिली हैं जिनके आधार पर यह मानना पड़ता है कि यहाँ के लोग चित्रकला से भी परिचित थे। कुछ ऐसी मुहरें मिली हैं जिन पर अनेक तरह के आकर्षक चित्र बने हैं।
- भैंसों एवं सांडों के चित्र तो कला के जीते-जागते उदाहरण हैं। यहाँ के चित्रों को देखकर ऐसा लगता है कि चित्रकार ने बड़ी दृढ़ता एवं विश्वास के साथ चित्रों को बनाया है। इसमें भावनाओं की कोमलता का अभाव तो बिल्कुल दिखाई ही नहीं देता है।
- अलग-अलग मुहरों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्रों को देखकर विद्वानों का कहना है कि ये भिन्न-भिन्न आर्थिक व्यवसायों की पहचान हैं।
- मुहरों के कुछ चित्र तो धार्मिक महत्त्व के भी लगते हैं। ताबीजों पर भी अनेक चित्रों के प्रमाण मिले हैं।
सिन्धु सभ्यता में मुहर निर्माण कला
- सिन्धु प्रदेश के लगभग विभिन्न स्थानों से पांच सौ से अधिक मुहरें मिली हैं।
- इन मुहरों का महत्त्व कई दृष्टिकोणों से है। जानवरों के अध्ययन के दृष्टिकोण से यहां की मुहरों में दो प्रकार के पशुओं का चित्र पाया गया है। पहले प्रकार के पशु कूबड़ वाले हैं। ये विशेष भारतीय जेबू या ककुदमान प्रकार के हैं।
- दूसरे प्रकार के पशुओं की पीठ सपाट है। ये पशु उस्स भी कहे जाते हैं, जो भारत में प्राय: लुप्त हो चुके हैं। मुहरों पर भैंसों के भी चित्र और एक मुहर पर पशुओं से घिरे हुए शिव का चित्र मिला है। कुछ अन्य मुहरों पर देवी के चित्र बने हुए हैं।
- चप्पू और पतवार सहित जहाज का चित्र भी मुहरों पर मिला है। दो ऐसी मुहरें मिली हैं जिनमें बाघ का गला घोंटते हुए एक वीर पुरुष की आकृति है। लगता है, सिंहों का गला दबाते हुए सुमेर के गिलगमेश से यह बाघ वाला चित्र नकल किया गया है।
- इराक में पाये गये वृषभमानव एनकिडु की आकृति भी सिन्धु सभ्यता की एक मुहर पर मिली है। इससे भारत और इराक के बीच सम्बंध स्थापित होने का पता चलता है। उपर्युक्त बातों से मुहरों की धार्मिक सार्थकता का भी आभास मिलता है।
- कुछ छाप लगाने वाली मुहरें भी मिली हैं। लगता है, इनका प्रयोग माल की पेटियों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता था। ऐसी मुहरों से भरे हुए कलश भी सुरक्षित रखे जाते थे।
- चीन एवं इराक में तो कागज पर दस्तखत करने के उद्देश्य से मुहरों का उपयोग होता था लेकिन सिन्धु घाटी में इस उद्देश्य से मुहरों के प्रयोग की बात हम नहीं पाते हैं।
- सिन्धु क्षेत्र में मिली मुहरों में किसी तरह की रस्सियों या गांठों के चिह्न नहीं मिले हैं। इससे पता चलता है कि मुहर पेटियों पर नहीं लगायी जाती होगी।
सिन्धु सभ्यता में लेखनकला
- सिन्धु क्षेत्र में खुदाई से प्राप्त कई मुहरों पर कुछ न कुछ लिखा हुआ है, जिसके आधार पर विद्वानों का कहना है कि सिन्धु घाटी की अपनी लिपि थी।
- वैसे तो इस लिपि को पढ़ने का प्रयत्न आज भी जारी है लेकिन विद्वानों को इसमें अभी तक सफलता नहीं मिल पायी है। यह भाषा इन्डोयूरोपियन समूह की लगती ही नहीं है। यह सुमेरियन, हुरियन या इलामाइट भाषाओं से भी सम्बंध नहीं रखती है।
- भारत की आधुनिक मुंडा भाषा से भी इसका कोई सम्बंध नहीं लगता। अनुमान किया जाता है कि इस लिपि का सम्बंध कुछ हद तक भारत की द्रविड़ भाषा से है।
- उर्दू की तरह हड़प्पा लिपि भी दाँयें से बाँये की ओर लिखी जाती थी। इस बात की पुष्टि हमें दो हजार अभिलेखों के अध्ययन से मिलती है।
- इस भाषा के लगभग चार सौ चिह्न अक्षर थे लेकिन यह अभी तक पता नहीं चल पाया कि ये इन्डोग्राफिक थे या लोगोग्राफिक या और किसी तीसरे प्रकार की लिपि थी।
- स्केनडिनेविया के ए० परपोला नामक एक विद्वान ने दावा किया है कि प्राचीन तमिल भाषा के आधार पर कई अभिलेखों को पढ़ लिया गया है लेकिन इनकी खोज विद्वानों को मान्य नहीं हो पायी है।
सिन्धु सभ्यता में कताई तथा रंगाई
- सिन्धु प्रदेश की खुदाई से टेकुये तथा टेकुओं की मेखलाएं मिली हैं। इससे पता चलता है कि यहां के लोग कताई एवं बुनाई के काम में दिलचस्पी रखते थे। सिन्धुवासी रंगाई की कला से भी परिचित थे खुदाई से रंगीन बर्तन एवं रंगीन वस्त्रों की जानकारी होती है। कपड़ों को रंगसाजों द्वारा कठौतियों में रंगा जाता था।
सिन्धु सभ्यता में भवन निर्माण
- ऊपर बताये गये तथ्यों के आधार पर साफ पता चलता है कि सिन्धु निवासी गृह निर्माण की कला में निपुण थे। भवनों की बनावट के कला का अभाव होने के बावजूद भी यहां के घर सुन्दर एवं स्वच्छ होते थे। भवन निर्माण योजना की जानकारी यहां के लोगों को थी, इसका ज्वलन्त उदाहरण बड़े-बड़े हॉल, स्नानागार आदि हैं।
सिन्धु सभ्यता में मूर्तिकला
- यहां के लोग मूर्तिकला के महत्त्व को भी समझते थे। अवशेष के रूप में पायी गयी मूर्तियों के द्वारा यहां के लोगों के जीवन, सोचने विचारने का ढंग और धार्मिक विश्वास की जानकारी होती है। पत्थर की मूर्तियां यहां बहुत कम पायी गई हैं।
- अधिकतर मूर्तियों का धार्मिक महत्त्व ही ज्यादा झलकता है। इन मूर्तियों के रूप में बैठे हुए आदमी, जानवरों एवं नृत्य की मुद्राएं चित्रित की गयी हैं। इनमें से कुछ मूर्तियां उत्तम कोटि की हैं। छोटी-छोटी कुछ मूर्तियां पीतल को ढालकर बनायी जाती थीं। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण नाचती हुई लड़की, रथ एवं बैलगाड़ियां तथा कुछ जानवर भी हैं।
- लेकिन इस सभ्यता की लोकप्रिय कला पकाई गयी मिट्टी की मूर्तियाँ जान पड़ती हैं। इनमें से अधिकांश खड़ी हुई स्त्रियों की मूर्तियाँ हैं जिन्हें आभूषण पहने हुए दिखाया गया है। इनमें से कुछ मूर्तियां खड़े हुए पुरुषों की हैं जिनमें से कुछ को दाढ़ी और सींग के साथ दिखाया गया है।
- इतिहासकार इस बात पर सहमत हैं कि मूर्तियां महान देवी और देवताओं की हैं। इनमें से जो स्त्रियां बच्चों के साथ दिखाई गयी हैं वे खिलौने सी लगती हैं। आग में पकाई गई या टेराकोटा के अनेक जानवर, गाड़ियां एवं खिलौने मिले हैं।
- एक बन्दर को धागे पर चढ़ता हुआ दिखाया गया है। एक बैल को सर हिलाते हुए भी दिखाया गया है।
सिन्धु सभ्यता में आमोद-प्रमोद
- जुआ खेलने में हड़प्पा वालों की रुचि अवश्य रही होगी, इसकी जानकारी खण्डहरों से प्राप्त पाशों से मिलती है।
- फिर शतरंज के समान किसी खेल का भी प्रमाण मिला है।
- नृत्य में भी ये लोग विशेष रुचि रखते थे। यह बात नाचती हुई लड़की की मूर्ति मिलने से प्रमाणित होती है।
सिन्धु सभ्यता में कब्रें
- सिन्धु प्रदेश में कब्रें भी मिली हैं। इससे पता चलता है कि हड़प्पावासी मरने के बाद भी एक अन्य जीवन में विश्वास करते थे।
- अधिकतर मुर्दों को सीधा चित्तकर गाड़ा जाता था।
- मुर्दे का सिर उत्तर दिशा की ओर रखा जाता था।
- लोथल में कुछ कब्रों में दो-दो हड्डियां पायी गयी हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सम्भवतः सती प्रथा इसी सभ्यता से आरम्भ हुई थी।
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