वैदिक सभ्यता सामान्य परिचय | आर्यों का प्रसरण | Bharat Me Aarya
आर्यों का प्रसरण
प्रस्तावना
- वर्तमान भारतीय संस्कृति का आधार वैदिक सभ्यता को माना जाता है। इस सभ्यता के एक प्रमुख कबीले के आधार पर ही भारतवर्ष का नाम पड़ा है।
- यह सभ्यता सिन्धु सभ्यता के बाद की सभ्यता है |
- पिछली इकाइयों में आपने सिन्धु सभ्यता के विषय में जानकारी प्राप्त की थी, सिन्धु सभ्यता एक नगर प्रधान सभ्यता थी, लेकिन वैदिक सभ्यता सिन्धु सभ्यता के विपरीत एक कबिलाई सभ्यता थी जिसमें नगरों की कोई जानकारी नहीं थी।
- वेद में आर्यों के आदि-देश, उनके प्रयाण स्थल, प्रस्थान का काल, मार्ग आदि का विवरण नहीं है, जिस प्रदेश में ऋग्वेद की रचना हुई उसका उल्लेख आर्यों ने किया है।
- ऋग्वेद की रचना भारत में आर्यों के प्रविष्ट होने के पश्चात ही हुई और इसका रचना स्थल सिन्धु प्रदेश था। प्रारम्भ में आर्यों का प्रसार इसी प्रदेश में हुआ।
आर्यों का प्रसरण
- प्राचीनतम आर्य भाषाभाषी पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रदेश, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती स्थानों तक फैले हुए थे।
- अफगानिस्तान की कुछ नदियाँ जैसे कुभा नदी और सिंधु नदी तथा उसकी पांच शाखाऐं ऋग्वेद में उल्लिखित हैं। सिंधु नदी, जिसकी पहचान अंग्रेजी के 'इंडस' से की जाती है, आर्यों की विशिष्ट नदी है, और इसका बार-बार उल्लेख होता है ।
- दूसरी नदी 'सरस्वती' ऋग्वेद में सबसे अच्छी नदी (नवीतम) कही गई है। इसकी पहचान हरियाणा और राजस्थान में स्थित घग्गर-हाकरा की धार से की जाती है। लेकिन इसके ऋग्वैदिक वर्णन से पता चलता है कि यह अवेस्ता में अंकित हरख्वती नदी है जो आजकल दक्षिण अफगानिस्तान की हेलमंद नदी है।
- यहां से सरस्वती नाम भारत में स्थानांतरित किया गया। भारतीय उपमहाद्वीप के अंतर्गत जहां आर्य भाषाभाषी पहले पहल बसे वह संपूर्ण क्षेत्र सात नदियों का देश कहलाता था।
- ऋग्वेद से हम भारतीय आर्यों के बारे में जानते हैं।
- ऋग्वेद में आर्य शब्द का 363 बार उल्लेख है, और इससे सामान्यतया हिंद-आर्य भाषा बोलने वाले सांस्कृतिक समाज का संकेत मिलता है।
- ऋग्वेद हिंद-आर्य भाषाओं का प्राचीनतम ग्रंथ है। यह वैदिक संस्कृत में लिखा गया है लेकिन इसमें अनेक मुंडा और द्रविड शब्द भी मिलते हैं। शायद ये शब्द हड़प्पा लोगों की भाषाओं से ऋग्वेद में चले आए।
- ऋग्वेद में अग्नि, इंद्र, मित्र, वरूण आदि देवताओं की स्तुतियाँ संगृहित हैं जिनकी रचना विभिन्न गोत्रों के ऋषियों और मंत्रस्रष्टाओं ने की है। इसमें दस मंडल या भाग हैं, जिनमें मंडल 2 से 7 तक प्राचीनतम अंश हैं।
- प्रथम और दशम मंडल सबसे बाद में जोड़े गए मालूम होते हैं। ऋग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता से मिलती हैं। अवेस्ता ईरानी भाषा का प्राचीनतम गंथ हैं। दोनों में बहुत से देवताओं और सामाजिक वर्गों के नाम भी समान हैं।
- पर हिंद-यूरोपीय भाषा का सबसे पुराना नमूना इराक में पाए गए लगभग 2200 ई0 पू0 के एक अभिलेख में मिला है। बाद में इस तरह के नमूने अनातोलिया (तुर्की) में उन्नीसवीं से सत्रहवीं सदी ईसा पूर्व के हत्ती (Hittite) अभिलेखों में मिलते है ।
- इराक में मिले लगभग 1600 ई० पू० के कस्सी (Kassite) अभिलेखों में तथा सीरिया में मितानी (Mitanni) अभिलेखों में आर्य नामों का उल्लेख मिलता है। उनसे पश्चिम एशिया में आर्य भाषाभाषियों की उपस्थिति का पता चलता है। लेकिन भारत में अभी तक इस तरह का कोई अभिलेख नहीं मिला है।
- भारत में आर्य जन कई खेपों में आए। सबसे पहले की खेप में जो आए वे हैं ऋग्वैदिक आर्य, जो इस उपमहादेश में 1500 ई0 पू० के आसपास दिखाई देते हैं। उनका दास, दस्यु आदि नाम के स्थानीय जनों से संघर्ष हुआ। चूंकि दास जनों का उल्लेख प्राचीन ईरानी साहित्य में भी मिलता है, इसलिए प्रतीत होता है कि वे पूर्ववर्ती आर्यों की ही एक शाखा में पड़ते थे।
- ऋग्वेद में कहा गया है कि भरत वंश के राजा दिवादास ने शंबर को हराया। यहाँ दास शब्द दिवोदास के नाम में लगता है। ऋग्वेद में जो दस्यु कहे गए हैं वे संभवतः इस देश के मूलवासी थे और आर्यों के जिस राजा ने उन्हें पराजित किया था वह त्रसदस्यु कहलाया।
- वह राजा दासों के प्रति तो कोमल था, पर दस्युओं का परम शत्रु था। ऋग्वेद में दस्युहत्या शब्द का बार बार उल्लेख मिलता है, पर दासहत्या का नहीं।
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