बिन्दुसार Bindusar | बिन्दुसार के समय की मुख्य घटनाएँ
बिन्दुसार ( Bindusara)बिन्दुसार के समय की मुख्य घटनाएँ
बिन्दुसार के बारे में जानकारी
- चन्द्रगुप्त के उपरांत उसका पुत्र बिन्दुसार 300 ई.पू. मगध के सिंहासन पर आरुढ़ हुआ। उसका शासनकाल भारतीय इतिहास में कोई महत्त्व नहीं रखता। इसका एक कारण यह भी है कि उसके सम्बन्ध में हमारी जानकारी बहुत कम है।
- जैन और बौद्ध अनुश्रुतियों से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् भी कुछ समय के लिए चाणक्य जीवित रहा और बिन्दुसार के शासनकाल के प्रारम्भिक दिनों में उसी की नीति चलती रही।
बिन्दुसार के समय की मुख्य घटनाएँ
- बिन्दुसार ने अपने पिता की दिग्विजय नीति का अनुसरण किया। उसने लगभग सोलह राजधानियों के राजाओं तथा मंत्रियों को नष्ट कर दिया और लम्बे युद्ध के उपरांत पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्रों के बीच की सम्पूर्ण भूमि पर कब्जा कर लिया। इस नीति में चाणक्य ने उसकी पूरी मदद की थी। कुछ विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि दक्षिण भारत पर बिन्दुसार ने ही विजय प्राप्त की थी परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि सम्राट चन्द्रगुप्त के शासनकाल में ही पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्रों के बीच के विस्तृत क्षेत्र पर मौर्यों का आधिपत्य हो गया था। अतएव, सोलह नगरों के दमन का केवल यही अर्थ हो सकता है कि इन नगरों में विद्रोह हो गया था, परन्तु नीतिनिपुण चाणक्य ने इसका दमन कर दिया।
उत्तरापथ में विद्रोह
- दिव्यावदान के अनुसार बिन्दुसार के शासनकाल में उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला तथा उसके आस-पास के प्रदेशों में भीषण विद्रोह उठ खड़ा हुआ था। उस समय बिन्दुसार का ज्येष्ठ पुत्र सुसीम उत्तरापथ में अपने पिता का प्रतिनिधि तथा प्रांतीय शासक था। सुसीम उक्त विद्रोह को नहीं दबा सका। जब पाटलिपुत्र में बिन्दुसार को इस विद्रोह की सूचना मिली तब उसने उज्जैयनी के शासक अशोक को इस विद्रोह का दमन करने के लिए तक्षशिला भेजा। अशोक ने तक्षशिला जाकर विद्रोह का दमन किया।
- इस विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि बिन्दुसार अपने पिता से प्राप्त विशाल साम्राज्य की रक्षा करने में सफल रहा। चाहे उसने अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किसी नवीन स्वतंत्र राज्य को जीतकर न भी किया हो, परन्तु वह समस्त उत्तरी भारत के साथ-साथ दक्षिणी भारत का भी स्वामी था।
बिन्दुसार की विदेश नीति
- बिन्दुसार ने अपने पिता की ही विदेश नीति का अनुगमन किया। पश्चिम के यूनानी शासकों के साथ उसने मित्रता का संबंध कायम रखा। सीरिया के राजा ने मेगस्थनीज के स्थान पर डाइमेक्स को अपना राजदूत बनाकर बिन्दुसार के दरबार में भेजा प्लिनी ने लिखा है कि मिस्र के राजा टालमी द्वितीय ने भी भारतीय सम्राट के दरबार में डायोनिसस नामक व्यक्ति को राजदूत के रूप में भेजा था। बिन्दुसार और सीरिया के राजा एटिओकस प्रथम के बीच एक मित्रतापूर्ण पत्रव्यवहार की एक विभिन्न कहानी एथेनेअस नामक एक यूनानी ने लिखी है। इन सारी बातों से यह स्पष्ट होता है कि सम्राट बिन्दुसार की नीति पड़ोसी राजाओं के साथ सम्पर्क बनाये रखने की थी।
बिन्दुसार के पुत्र
- बिन्दुसार के कई पुत्र तथा कन्याएँ थीं। उसके पुत्रों में अशोक बड़ा वीर तथा योग्य था। बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में अशोक के दो भाइयों सुसीम तथा विगताशोक का उल्लेख मिलता है। सुसीम अशोक का सौतेला भाई था और विगताशोक कनिष्ठ तथा सहोदर था। 273 ई. पू. बिन्दुसार की मृत्यु हो गयी।
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