बौद्धधर्म का भारतीय कला पर प्रभाव |Buddhism's Influence on Indian art
बौद्धधर्म का भारतीय कला पर प्रभाव
बौद्धधर्म का भारतीय कला पर प्रभाव
Baudh Dharm Ka Bhartiya kala par Prabhav
- कला के क्षेत्र में बौद्धधर्म की देन अभूतपूर्व है। कला के सभी क्षेत्र भवन निर्माण कला, शिल्प कला, चित्रकला आदि बौद्ध धर्म के ऋणी हैं। अति प्राचीन काल की कलाकृतियाँ आज उपलब्ध नहीं हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उस कला के निर्माण में लकड़ी या मिट्टी का प्रयोग किया जाता था जो कुछ समय बाद ही नष्ट हो जाती थीं। इस काम के लिए पाषाण का प्रयोग सर्वप्रथम अशोक ने किया।
- अशोक के लेखों से स्पष्ट होता है कि पाषाण का उपयोग इसलिए किया गया कि जिससे बौद्ध धर्म के सिद्धांत अमर हो जायें। इस प्रकार सर्वप्रथम पाषाण के उपयोग में बौद्ध धर्म का ही हाथ था। अशोक ने चौरासी हजार स्तूपों का निर्माण कराया था जिसमें से सांची स्तूप आज भी कला के दृष्टिकोण से उच्च कोटि का माना जाता है। इसके अतिरिक्त अनेक स्तम्भों को उसने बौद्ध तीर्थ स्थानों में बनवाया था तथा भिक्षुओं के निवास के लिए सुन्दर पालिश की हुई गुफाओं का निर्माण भी उसके काल में हुआ। इन निर्मित वस्तुओं में उच्च कोटि की कला झलकती है जो बौद्धधर्म की ही देन मानी जा सकती है।
- अशोक के पश्चात् अन्य सम्राटों तथा धनिकों ने अनेक स्तूप तथा विहारों का निर्माण कराकर भवन निर्माण कला को जीवित बनाये रखा। बौद्ध स्थापत्य कला की कुछ कृतियाँ तो विश्व में कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। सांची, भारहुत और अमरावती में बौद्धधर्म की उच्च कोटि की कलाकृतियों का निर्माण हुआ। अशोक द्वारा निर्मित सांची के स्तूप का प्रवेश द्वार तथा उसकी रेलिंग कला की अमूल्य कृतियाँ हैं।
शिल्पकला और बौद्ध धर्म
- शिल्पकला का जन्म भी बौद्धधर्म के कारण ही सम्भव हो सका। महायान धर्म के अभ्युदय के पश्चात् महात्मा बुद्ध की प्रतिमाओं का निर्माण किया जाने लगा तथा इन मूर्तियों की स्थापना गाँव-गाँव में की जाने लगी। महात्मा बुद्ध की इतनी मूर्तियाँ बनीं कि आज हजारों वर्षों के उपरान्त भी उनमें से अनेक मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं और विश्व का कोई भी संग्रहालय ऐसा नहीं है जहाँ बुद्ध की प्रतिमा न मिलती हो। इन मूर्तियों ने शिल्प कला को जन्म दिया। कनिष्क के काल में गांधार कला के जन्म का श्रेय बौद्धधर्म को ही है।
- गुप्त काल में भी शिल्प कला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण महात्मा बुद्ध की तीन मूर्तियों से ही प्राप्त होते हैं। पाषाण प्रतिमाओं के अतिरिक्त धातु की प्रतिमाएँ भी बनी जिसमें सुल्तानगंज की ताम्र मूर्ति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त नालन्दा में बुद्ध की सत्तर फीट ऊँची मूर्ति प्राप्त हुई है। इन मूर्तियों ने भारत की शिल्पकला को अत्यन्त विकसित किया।
चित्रकला और बौद्ध धर्म
- चित्रकला के क्षेत्र में बौद्धधर्म की महत्त्वपूर्ण देन है। गुफाओं और मन्दिरों की दीवारों पर सुन्दर चित्रकला के नमूने प्राप्त होते हैं तथा अजन्ता एवं ऐलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाओं में चित्रकला का मुख्य विषय महात्मा बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृश्य अथवा बोधिसत्वों का चित्रण ही है। इसके अतिरिक्त बादामी, बाघ, सित्तन बासल तथा बराबर की गुफा में बौद्ध चित्रकारी के सुन्दर उदाहरण आज भी उपलब्ध होते हैं।
बौद्ध धर्म में साहित्य संवर्द्धन
साहित्य संवर्द्धन- बौद्ध धर्म ने जन साधारण की भाषा में जन साधारण के लिए ही एक विशाल साहित्य की सृष्टि की। इन ग्रन्थों के पढ़ने के लिए पुरोहितों की आवश्यकता नहीं थी। इस कारण प्राकृत और पाली भाषा की बड़ी उन्नति हुई। इस तरह के कुछ उदाहरण आज भी उपलब्ध होते हैं ।
(1) अभिधम्मपिटक
- इस ग्रन्थ में बौद्ध दर्शन और इससे सम्बन्धित धार्मिक तत्वों का विवेचन है। इसे सात उपभागों में बाँट कर प्रत्येक उपभाग को एक ग्रन्थ के रूप में संग्रहित किया गया है। इस भाग में सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ कथावस्तु का संकलन सम्राट अशोक के धर्मगुरू मोग्गलिपुत्त ने लिया था।
(2) विनयपिटक
- इस ग्रन्थ में उन नैतिक नियमों का विश्लेषण किया गया है जिनको मानना बौद्ध भिक्षु तथा भिक्षुणियों के लिए अनिवार्य था। यह तीन भागों सूत विभंग, परिवार तथा खन्दक- नाम के भागों में विभक्त है। सूत विभंग को भिक्षु विभंग और भिक्षुणी विभंग नामक दो और उपविभागों में बाँटा गया है। परिवार में सम्पूर्ण विनयपिटक का सारांश है। खन्दक को दो उपभागों महावग्य और चुल्यवग्य में बाँटा गया है। इन दोनों में भिक्षु संघ सम्बन्धी प्रायः सभी बातों को कथा के रूप में समझाया गया है। संघ प्रवेश, भिक्षुओं के वस्त्र, शय्या, व्रत एवं उपस्थित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों और समस्याओं के सुलझाने की विधि आदि सभी बातों का विशद् विवरण इन दोनों भागों में दिया गया है। इन बातों को बुद्ध का उदाहरण देकर समझाया गया है कि उस समय जब बुद्ध अमुक स्थान पर थे तो उनके सम्मुख वह प्रश्न अथवा समस्या आयी और उन्होंने उनका इस प्रकार समाधान करके यह नियम बनाया। अतः खन्दक से बुद्ध के जीवन और तत्कालीन राजनीतिक एवं सामाजिक दशा पर अच्छा प्रकाश पड़ता है।
( 3 ) सुत्तपिटक
सुत्तपिटक ग्रन्थ के पाँच भाग हैं- अंगुत्तर निकाय, दीर्घ निकाय, खुद्दक निकाय, मज्झिम निकाय तथा संयुक्त निकाय ।
इन पाँचों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
(क) अंगुत्तर निकाय
- इसमें तेइस सौ सूक्त हैं। इन सूक्तों को ग्यारह खण्डों में विभक्त किया गया है।
(ख) दीर्घ निकाय
- इसमें बहुत बड़े-बड़े चौतीस सूक्त हैं, जिन्हें खण्डों में विभक्त किया गया है। इन सूक्तों में महात्मा बुद्ध के वार्तालाप के रूप में प्रायः सभी प्रकार के विषयों की व्याख्या की गयी है। जो इस प्रकार हैं- मनुष्य की उच्चता वंश, जन्म और कर्म से किस प्रकार निर्भर है; पुनर्जन्म और निर्वाण प्राप्ति तथा ईश्वर और उसकी सत्ता आदि। इन दीर्घ सूक्तों में सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध "महापरिनिर्वाण सूक्त" है।
(ग) खुद्दक निकाय
- इसमें पन्द्रह पुस्तकें हैं जिनमें विविध प्रकार के विषयों के ऊपर छोटे-छोटे सूक्त हैं। इसमें धम्मपद और जातक सबसे अधिक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। धम्मपद बौद्धों की गीता कहलाती है। जातक में भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की लगभग पाँच सौ कथाएँ दी हुई हैं।
(च) मज्झिम निकाय
- इसमें एक सौ पच्चीस सूक्त हैं। इन सूक्तों में दीर्घ निकाय के बड़े-बड़े सूक्तों का संक्षिप्त रूप में उनसे कुछ छोटे-छोटे सूक्तों में विवरण दिया गया है।
(ङ) संयुक्त निकाय
- इसमें छप्पन सूक्त हैं। इन सूक्तों को पाँच भागों में बाँटा गया है, जिनमें से एक भाग में एक विषय से सम्बन्धित दूसरे भाग में दूसरे विषय से सम्बन्धित और इसी प्रकार अन्य भागों में अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित सूक्तों का संकलन किया गया है।
बौद्ध भिक्षुओं ने साहित्य ग्रन्थों के प्रणयन पर भी ध्यान दिया। बुद्धचरित्र नामक महाकाव्य तथा सारिपुत्र प्रकरण नामक नाटक बौद्धों की देन है। मंजुश्रीमूलकल्प तथा दिव्यावदान नामक ग्रन्थ बौद्ध ग्रन्थ हैं। बौद्धों में धार्मिक ग्रन्थों की उपयोगिता केवल इसलिए नहीं है कि उनके द्वारा हमें इस धर्म के सिद्धांतों का परिचय प्राप्त होता है वरन् उन्होंने प्राचीन भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण जैसे दुरुह कार्य में विद्वानों की बड़ी सहायता की है। मिलिन्दपन्हों तथा महावस्तु नामक ग्रन्थों में काफी ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त हुई है।
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