सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ | सिंधु घाटी सभ्यता स्थल (Characteristic of Indus Valley Civilization)
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ
(Characteristic of Indus Valley Civilization)
सिन्धु सभ्यता में स्थापत्य एवं नगर निर्माण योजना
- 1946 के बाद से पाये गये पुरातात्विक अवशेषों से यह बात साफतौर पर प्रमाणित हो गयी है कि सिन्धु सभ्यता का प्रसार काफी लम्बे-चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ था।
- 1958 की खुदाइयों से कई रहस्यों पर से पर्दा उठा है। इस समय ही यह पता चला कि पूर्व में आलमगीरपुर तक सिन्धु घाटी की सभ्यता फैली थी। आलमगीरपुर दिल्ली से बीस मील उत्तर-पूर्व और मेरठ से सत्तरह मील पश्चिम में स्थित है।
- लोथल (गुजरात) कालीबंगन (राजस्थान), कोटदिजी (मोहनजोदड़ो से पच्चीस मील पूर्व), चान्हूदड़ो (मोहनजोदड़ो से अस्सी मील दक्षिण और सिन्धु घाटी के बायें मैदानी इलाकों में स्थित) तथा नीमरी सिन्धु सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थान हैं।
- मोहनजोदड़ो (मुर्दों का नगर) और हड़प्पा में प्राप्त वस्तुओं के आधार पर कहा जाता है कि ये दोनों स्थान आज भी इस सभ्यता के प्रमुख केन्द्र माने जाते हैं। अब ये दोनों पाकिस्तान में हैं।
- सिन्धु क्षेत्र में बसे नगरों की बनावट का जहां तक प्रश्न है इसके लिए अलग-अलग नगरों का अध्ययन किया जा सकता है।
सिंधु घाटी सभ्यता स्थल
मोहनजोदड़ो की विशेषताएं बताइए ?
मोहनजोदड़ो-
- यह नगर सिन्ध के लरकाना जिले में स्थित था। वह लगभग एक वर्गमील में फैला हुआ था।
- योजना की सुविधा के लिए इसे पूर्वी और पश्चिमी दो भागों में बांटा गया था। पूर्वी खंड की अपेक्षा पश्चिमी खंड छोटा है।
- यह क्षेत्र चबूतरा बनाकर ऊँचा उठाया गया है। चबूतरा गारे और कच्ची ईंटों से बना है। इसी चबूतरे पर निर्माण कार्य किया गया है। इसके चारों ओर किलेबन्दी की दीवार बनी है। यह दीवार कच्ची ईंटों की बनी है। इसमें मीनारें एवं बुर्ज भी बने हैं।
- इस किले में निश्चित ही कोई मुख्य प्रवेश द्वारा होगा लेकिन इसकी जानकारी अभी तक विद्वानों को नहीं हो पायी है।
- इस पश्चिमी खंड में अनेक सार्वजनिक भवनों की जानकारी होती है। इन भवनों से वहां के समृद्धि की जानकारी मिलती है। अनुमान किया जाता है कि अलग-अलग भवनों के अलग-अलग नाम थे, जैसे कि 'पुरोहितवास', 'अन्न भंडार', 'महाविद्यालय' भवन इत्यादि । लेकिन ऐसा कहना मात्र अटकलबाजी होगी क्योंकि अभी तक वहां की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है।
- यहां के भवनों की विशालता को देखते हुए इतना तो निश्चित ही कहा जा सकता है कि इन भवनों में साधारण किस्म के लोग नहीं रहते थे। मोहनजोदड़ो में एक ऐसे भवन का अवशेष मिला है जो खम्बे के सहारे खड़ा है।
- इसके बारे में अनुमान किया जाता है कि यह शहर का एक सार्वजनिक स्थान था जहां लोग इकटठे होकर सभा इत्यादि करते थे। एक दूसरा अनुमान विद्वानों के द्वारा यह लगाया गया है कि इस विशाल भवन का निर्माण बाजार लगाने के उद्देश्य से किया गया होगा।
- मोहनजोदड़ो के इस पश्चिमी क्षेत्रों में कुछ-कुछ मकानों के बीच में गलियां थीं। सड़कों की भी जानकारी मिलती है जिस पर से होकर एक जगह से दूसरी जगह जाया जा सकता था।
- उत्खनन से यहां कई छोटे-छोटे मकानों के अवशेष भी मिले हैं, जिससे पता चलता है कि यहां साधारण वर्ग के लोग रहते थे।
- मोहनजोदड़ो की इस पश्चिमी खंड में बहुत बड़ा तालाब भी मिला है। यह 39 फुट लम्बा और 23 फुट चौड़ा है। इस तालाब को बनाने के लिए ईंटों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया है। ईंटों को तह लगाकर ऊपर से बिट्मन का लेप कर दिया गया है ताकि पानी तालाब से बाहर नहीं जा सके। इस विशाल तालाब की व्याख्या औपचारिक स्नानागार के रूप में की गई है।
- मोहनजोदड़ो के पश्चिमी हिस्से की तुलना में पूर्वी खंड बड़ा है।
- पश्चिमी खंड के समान यह पूर्वी खंड भी चारो तरफ से दीवार से घिरा था। पश्चिमी खंड का तो सम्पूर्ण नगर ही ऊँचे चबूतरे पर खड़ा था लेकिन पूर्वी खंड में ऐसी बात नहीं। यहां अलग-अलग घर अलग-अलग चबूतरे पर बने थे।
- चबूतरे का इस्तेमाल शायद सुरक्षा के दृष्टिकोण से होता था। चूबतरे के कारण मोहनजोदड़ो का पश्चिमी भाग अधिक ऊँचे पर बसा था और पूर्वी खंड कम ऊँचा था। इसीलिए पूर्वी टीले को निचला टीला भी कहा जाता है। इस खंड में अनेक मकान थे।
- यहां तीन फुट चौड़ी सड़कें पायी गई हैं। मोहनजोदड़ो के पूर्वी खंड, इन सड़कों के कारण वहां के मकान अनेक समूहों में बंट गये थे।
- बहुत ही दिलचस्प बात हम यहां के मकानों के साथ पाते हैं कि ये पक्की ईंटों से बने थे जबकि पश्चिमी खंड के मकान कच्ची ईंटों के पूर्वी खंड के इन मकानों में से कुछ मकान तो दो मंजिले भी थे। इन मकानों में से गंदे जल को बाहर निकालने की भी व्यवस्था थी। यह गंदा जल घर से बाहर निकल कर नालियों में गिरता था। ये बड़ी-बड़ी नालियां मुख्य सड़कों के दोनों ओर थीं। ये नालियाँ ईंटों की बनी होती थीं। बहुत-सी नालियां मुख्य सड़कों के दोनों ओर थीं। बहुत-सी नालियां तो ऊपर से ढकी होती थीं।
- सिन्धु काल में पाई गईं योजनाबद्ध तरीके से ये नालियां आज भी हमारे लिए उदाहरणस्वरूप हैं। जो अवशेष हमें मिले हैं उनसे पता चलता है कि मुख्य सड़क के साथ-साथ जो नालियां थीं उनमें कुछ कुछ दूरी पर गड्ढे होते थे। इनमें जब गंदा पानी भर जाता था तो निकालकर बाहर फेंक दिया जाता था।
- यहां पाये गये पुरातात्विक सामानों से तो साफ पता चलता है कि यहां के मकानों की स्वच्छता पर बहुत ध्यान दिया जाता था। इस पूर्वी खंड में सामान्य नागरिकों के इस्तेमाल के लिए अनेक कुएं भी बने थे। कुएं भी ईंटों के बने थे।
- मोहनजोदड़ो के पूर्वी खंड के मकानों में एक-एक मुख्य दरवाजे होते थे। ये दरवाजे साथ वाली सड़कों पर खुलते थे। आज के समान ही उस काल में भी मकानों के बीच में एक आंगन होता था। इस आंगन के चारों ओर कमरे बने रहते थे।
- अवशेष के रूप में दरवाजे के चिह्न मिले हैं जिनसे अनुमान किया जाता है कि घर के प्रत्येक कमरे में एक-एक दरवाजा होता था। यहां के मकानों के कमरों में खिड़कियां भी होती थीं। ये खिड़कियां आजकल के शहरों के कमरों में लगी खिड़कियों के समान नीची नहीं होती थीं, बल्कि काफी ऊपर में लगी रहती थीं। इस तरह की खिड़कियां आज भी बिहार के गांवों में देखने को मिल सकती हैं जो जमीन से काफी ऊपर हैं।
- निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि मोहनजोदड़ों के घर देखने में काफी आकर्षक तो नहीं लगते लेकिन इन्हें बनाने के लिए जिन तरीकों का प्रयोग किया गया है उनसे एक ऊँचे स्तर की कार्यकुशलता की जानकारी हमें मिलती हैं।
हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं
हड़प्पा
- यह स्थान आधुनिक पाकिस्तान पंजाब में रावी नदी के बायीं ओर पर स्थित था। मोहनजोदड़ो के समान हड़प्पा शहर भी योजना के दृष्टिकोण से दो भागों में बंटा था।
- पहला खंड शहर के पूर्वी भाग में स्थित था तथा पश्चिम में दूसरा भाग।
- खेद की बात है कि ईंट चुराने के उद्देश्य से यहां के आस-पास के लोगों ने हड़प्पा के पूर्वी भाग को उजाड़ दिया है। फलतः इस भाग के अवशेष हमें ठीक से नहीं मिल पाये हैं।
- जहां तक हड़प्पा के पश्चिम खंड का प्रश्न हैं, यह खंड चारों तरफ से दीवारों से घिरा था। यह खंड भी ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। इस खंड की किलेबंदी के सम्बंध में संतोषप्रद रूप से कुछ बताना मुश्किल है क्योंकि इसके भीतरी भाग की दीवार की ईंटों को आस-पास के लोगों द्वारा चुरा लिया गया है। खुदाई से भी कोई ऐसी वस्तु नहीं मिली है जो सूचना हमें दे सके।
- हड़प्पा के इस पश्चिमी खंड की किलेबंदी के अध्ययन से पता चलता है कि इसमें आने और जाने के लिए कई मार्ग बने हुए थे। इसमें एक मुख्य मार्ग होता था जो उत्तर में खुलता था। इस मुख्य प्रवेश द्वारा के सामने उत्तर के कुछ दूरी पर रावी नदी थी।
- इस रावी नदी एवं मुख्य प्रवेश द्वार के बीच खुदाई के द्वारा पता चलता है कि एक 'अन्न भंडार' था और मजदूरों को रहने के लिए घर बने हुए थे। ईंटों से जुड़े हुए गोल चबूतरों की भी जानकारी हमें मिलती है। इन चबूतरों में अनाज रखने के लिए कोटर बने थे।
- इस खंड के जिस भाग में सामान्य नागरिक रहते थे, उसके दक्षिण में एक कब्रिस्तान भी मिला है।
चान्हूदड़ो
- इस स्थान की खुदाई अभी तक ठीक नहीं हो पायी है इसलिए इसमें छिपे बहुत से रहस्यों का उद्घाटन अभी तक नहीं हो पाया है।
- इस स्थान में बहुत से सामानों के निर्माण से सम्बंधित अवशेष मिले हैं। खुदाई से पता चलता है कि यहां मनके बनाने का कारखाना भी था।
कालीबंगा सभ्यता की विशेषता
कालीबंगन
- इस स्थान के भी दो खंड थे। पश्चिमी खंड को पश्चिमी टीला भी कहा जाता था, इस भाग में भी किलेबन्दी थी लेकिन यह किलेबन्दी दो भागों में बंटी थी। इन दोनों किलेबन्दी के बीच आपस में सम्बंध था।
- एक चहारदीवारी से दूसरी चहारदीवारी की किलेबन्दी में जाया जा सकता था। एक भाग में दो-दो किलेबन्दी का होना सम्भवतः यह प्रमाणित करता है कि इस शहर में रह रहे प्रतिष्ठित एवं धनी लोगों के रहने के लिए एक चहारदीवारी में व्यवस्था थी।
- दूसरे भाग का उपयोग ऊँचे-ऊँचे चबूतरों के लिए था। इन चबूतरों के ऊपरी भाग पर हवनकुंडों के अवशेष मिले हैं।
- हड़प्पा के आवास क्षेत्र के दक्षिण में लेकिन कालीबंगन के पश्चिम में कब्रिस्तान का साक्ष्य मिलता है। इस स्थान के पूर्व में कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि पूर्व के हिस्से में पूजा पाठ कार्य सम्पन्न किया जाता था।
- उपर्युक्त विवरण कालीबंगन के पश्चिमी टीले के सम्बंध में है, इस स्थान के पूर्वी टीले के बारे में भी हमें जानकारी मिलती है। अवशेष के रूप में यहां एक दीवार मिली है, जो हमें इस स्थान की योजना के सम्बंध में जानकारी देती है।
- इस स्थान की योजना मोहनजोदड़ो की योजना से बहुत मिलती-जुलती है। फिर भी थोड़ा बहुत अंतर तो देखने को मिलता ही है।
- हम पाते हैं कि कालीबंगन के आवास में कच्ची ईंटों का प्रयोग हुआ है जबकि मोहनजोदड़ो के मकानों में पक्की ईंटों का मोहनजोदड़ो के समान यहां योजनाबद्ध तरीके से घरेलू गन्दे जल को बाहर निकालने की प्रणाली नहीं थी।
- शहरी जल निकास प्रणाली का भी अभाव है। अतः कहा जा सकता है कि कालीबंगन बस्ती की मोहनजोदड़ो की तुलना में काफी गरीब थी।
लोथल क्यों प्रसिद्ध है
लोथल
- सिन्धु क्षेत्र की ही एक प्रमुख बस्ती लोथल भी थी। यह आधुनिक गुजरात में स्थित थी।
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि यहां कालीबंगन आदि बस्तियों के समान दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं थे, अर्थात यह दो खण्डों में विभाजित नहीं था।
- ऐसा ज्ञात होता है कि यह हड़प्पा सभ्यता का एक बन्दरगाह था। नक्शा के अनुसार यह नगर 360 मीटर लम्बा और 210 मीटर चौड़ा उत्तर दक्षिण दिशा में फैला हुआ था।
- यह भी एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था। ऐसा घेरा सम्भवतः नगर को बाहर से सुरक्षित रखने के लिए किया गया था।
- शहर का दक्षिण पूर्व भाग एक बड़े चबूतरे के समान है जो लगभग चार मीटर ऊँचा है। इस चबूतरे के ऊपर छोटे चबूतरों की कई कतारें हैं जिनके बीच से संकीर्ण रास्ते गुजरते हैं।
- इन चबूतरों की बनावट को देखकर मोहनजोदड़ो के अनाज घर का स्मरण होता है। यह चबूतरा 48.5x42.5 मीटर का है।
- नगर के इस भाग के पीछे और भी कई इमारतें हैं और एक ही नाली से जुड़ी हुई हैं। शहर के अन्य भाग में अनेक घर और दुकानें बसी हुई थीं। इनमें से अधिक महत्त्वपूर्ण हार के दाने बनाने वालों का कारखाना, ठठेरों और सोनारों का उद्योग भी शामिल है। इस नगर की मुख्य सड़क उत्तर से दक्षिण की ओर गई थी।
- परन्तु लोथल की सबसे आश्चर्यजनक उपलब्धि ईंट से निर्मित एक विशाल हौज है, जिसकी माप 219 × 27 मीटर है और 4.5 मीटर अपनी सतह से ऊँचा है।
- यह लोथल बस्ती के पूरब में और अनाज भंडार से सटा हुआ है। इस हौज के एक किनारे पर बांध के दरवाजे पर समान पानी के बहाव पर नियंत्रण रखने के लिए किसी प्रकार का फाटक रहा होगा।
- ऐसा लगता है कि यह लोथल का बन्दरगाह होगा, परन्तु यह विचार आमतौर पर स्वीकारा नहीं गया है लेकिन इस हौज बनाने के उद्देश्य को भी अभी तक नहीं समझा गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गोदीबाड़ा कहा है लेकिन इस विचार को भी विद्वानों ने नहीं माना है। अन्य स्थलों की तरह इस शहर के निकट भी एक कब्रिस्तान पाया गया है।
सुरकोटदा के बारे में जानकारी
सुरकोतदा
- यहां केवल एक ही टीला मिला है। कालीबंगन के समान यह भाग भी चहारदीवारी से घिरा था।
- दो अलग-अलग चहारदीवारी मिली हैं जो आपस में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
- यहां भी लगता है कि एक भाग में धनी लोग रहते थे तथा दूसरे भाग में धार्मिक अनुष्ठान होते थे। जिस भाग में धार्मिक अनुष्ठान होने का अनुमान किया जाता है वहां का चबूतरा ऊँचा है। इसके पश्चिम भाग में कब्रिस्तान था।
- इस तरह कालीबंगन के पश्चिम टीले की योजना की पुनरावृत्ति ही यहां दिखाई देती है। इसका कोई पूर्वी टीला नहीं मिला है।
बनवाली
- सिन्धु क्षेत्र में स्थित इस स्थान की योजना सुरकोतदा तथा कालीबंगन के पश्चिमी टीले से मिलती-जुलती है। यहाँ भी दो-दो किलेबन्दियाँ थीं जो आपस में एक-दूसरे से मिली हुई थीं।
- एक भाग में विशिष्ट वर्ग के लोग रहते थे तथा दूसरी चहारदीवारी में पूजा-पाठ का कार्य सम्पन्न किया जाता था।
सिन्धु घाटी सभ्यता में भवन निर्माण
- उपर्युक्त नगरों की योजना के अध्ययन से हमें पता चलता है कि सिन्धु क्षेत्र के निवासी न केवल छोटे-बड़े और कच्चे-पक्के मकानों में रहते थे बल्कि स्वच्छता एवं सुन्दरता पर भी काफी ध्यान देते थे।
- मकानों के निर्माण में जिन ईंटों का प्रयोग होता था वे प्रबल, पक्की तथा लाल रंग की होती थीं। ईंटों को लकड़ी जलाकर पकाया जाता था। उत्खनन से प्राप्त ईंटों को नापने से पता चलता है कि छोटी ईंट सवा दस इंच लम्बी तथा पांच इंच चौड़ी होती थी।
- एक दूसरे प्रकार की भी छोटी ईंट मिली है जो पांच इंच लम्बी तथा सवा दो इंच चौड़ी है। बड़ी साइज की ईंट भी मिली है। यह सवा बीस इंच लम्बी, दस इंच चौड़ी और साढ़े तीन इंच मोटी है।
- पुरातात्विक अन्वेषण से पता चलता है कि सिन्धु घाटी की इमारतें योजनाबद्ध तरीके से बनायी जाती थीं। नगरों में जो मकानों के अवशेष मिले हैं उनके अनुसार एक साधारण मकान प्रायः तीस फीट लंबा और छब्बीस या सत्ताइस फीट चौड़ा होता था। समृद्धशाली लोगों के मकान इससे दुगने और कभी-कभी तिगुने बड़े क्षेत्रफल में पाये जाते थे।
- सिन्धु क्षेत्र में दो मंजिले और तीन मंजिले मकानों के भी अवशेष मिले हैं। सुरक्षा के दृष्टिकोण से मकानों की दीवार बहुत मोटी होती थी। कमरों को पाटने और लकड़ी की कड़ियां पाटने के अवशेष भी मिले हैं।
- योजनाबद्ध तरीके से नगर का निर्माण करने में पानी के निष्कासन के लिए नालियों के निर्माण का बड़ा महत्त्व है। सिन्धु क्षेत्र में हमें नालियों की भी जानकारी होती है। मकान के अन्दर नीचे से ऊपर जाने के लिए लकड़ी या ईंटों की सीढ़ियां भी होती थीं। इन सीढ़ियों की चौड़ाई लगभग सवा फुट होती थी।
- सिन्धु प्रदेश में बाढ़ों का डर हमेशा बने रहने के कारण वहां के मकान प्रायः ऊँचे चबूतरे पर बनाये जाते थे। मकानों में आधुनिक काल जैसा खाना पकाने के लिए मिट्टी तथा ईंटों के चूल्हे होते थे। अलग से रसोई घर की व्यवस्था रहती थी, जिसमें बड़े-बड़े बर्तन भूमि में जड़े रहते थे।
- मकानों में कई कमरे बने रहते थे। इन कमरों में लगभग पौने चार फुट के दरवाजे लगे रहते थे। कुछ बड़े मकानों में लम्बे-चौड़े दरवाजे भी लगाये जाते थे। एक दरवाजा एक पल्ले का होता था ताकि आदमी के अलावा घरेलू पशु या गाड़ियां भी आसानी से भीतर घुस सकें।
- यहां के प्रायः सभी घरों में चौकोर स्नानागर बने होते थे। इसका फर्श चिकना होता था। यह पक्की ईंटों का बना होता था। स्नानागार में नहाने के लिए पानी की भी व्यवस्था रहती थी। पानी एक बड़े बर्तन में रखा रहता था।
- स्नानागार के समीप ही शौचालय बना रहता था। स्नानागार से नाली के सहारे पानी शौचालय में जाता था। इसी पानी से शौचालय स्वच्छ रहता था। शौचालय का पानी सड़क की नाली में जाकर गिरता था।
- स्नानागार और शौचालय के बीच एक नाली होती थी। इसी तरह शौचालय से नाली तक के बीच में भी एक नाली होती थी। नाली से पानी इधर-उधर नहीं निकले इसके लिए नाली के पास के ईंट को घिस कर इतना चिकना कर दिया जाता था कि उसके जोड़ एक-दूसरे से बिल्कुल सट जाते थे।
- सिन्धु घाटी में नगरों के योजनाबद्ध तरीके से निर्माण, पानी की समुचित व्यवस्था, स्वच्छता पर ध्यान आदि से पता चलता है कि नगर के प्रबंध के लिए कोई सार्वजनिक संस्था की अवश्य ही व्यवस्था होगी। सिन्धु सभ्यता से हमारे प्राचीनतम नगर जीवन एवं सभ्यता की जानकारी मिलती है।
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