सिन्धु सभ्यता की देन (Contribution of Indus Valley Civilization)
सिन्धु सभ्यता की देन(Contribution of Indus Valley Civilization)
- सिन्धु सभ्यता के काल में शहरी सभ्यता की ओर तीव्र गति से विकास की प्रक्रिया को देखा जाता है।
- यह विकास बहुत हद तक आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक स्थानीय समस्याओं को सुलझाने के कारण हुआ।
- मेसोपोटामिया के साथ प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क होने के कारण सिन्धु सभ्यता के विकास में मेसोपोटामिया के नागरिक जीवन का प्रभाव तो कुछ न कुछ पड़ा ही, लेकिन विकास की प्रक्रिया स्वदेशी ही थी। अ
- नेक विद्वानों ने भी इस मत को स्वीकारा है। घरेलू स्नानगृहों और नालियों पर इस सभ्यता में विशेष बल डाला जाता है।
- इन तत्वों का और मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानगृहों (हमाम) का उत्तर भारतीय संस्कृति पर काफी असर पड़ा।
- इस सभ्यता में जैसी बैलगाड़ी और नाव पायी गई है उनमें आज भी कोई परिवर्तन नहीं पाया जाता है।
- रथ और चूड़ियों का प्रयोग भी इसी सभ्यता से शुरू हुआ हड़प्पावासियों द्वारा इस्तेमाल किया गया
- गुणा; जैसे– 1, 2, 4, 8 16 इत्यादि आज भी हिसाब में पढ़ाया जाता है। इसी समय पायी गयी दशमलव प्रणाली हमें आज भी देखने को मिलती है।
- आज भी गांवों में मन, सेर, आधा सेर, पाव और छटांक तौलने के लिए प्रयोग किया जाता है, जो सिन्धु सभ्यता की देन है।
सिंधु सभ्यता की देन समझाइए
सिन्धु सभ्यता का धार्मिक क्षेत्र में प्रभाव
- इस सभ्यता का प्रभाव आज भी देखने को मिलता है। उस काल में शुरू हुई शिव-पार्वती, चण्डी, काली, सरस्वती, लक्ष्मी आदि की पूजा आज के समाज में भी हमें देखने को मिलती है।
- पवित्र और लम्बी उम्र एवं स्वस्थ रहने के उद्देश्य से शुरू हुई वृक्षों; जैसे- पीपल, तुलसी आदि की पूजा भी समाज में स्थान बनाये हुई है।
- सर्पों की पूजा सिन्धु सभ्यता की ही देन है। आज के समाज में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही जादू-टोना, तंत्र-मंत्र तथा ताबीज में विश्वास करते हैं।
- अनेक प्रकार के आभूषण पहनने के पीछे समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यही उद्देश्य रहता है कि किसी की बुरी नजर न लगे या किसी तरह के प्रकोप का शिकार न हों। गहना को तांत्रिक प्रभाव से सम्पन्न समझा जाता है।
- अतः अदृश्य शक्ति के प्रकोपों एवं अनेक खतरों, जादू-टोनों आदि में रक्षा करना ही आज भी बहुत से आभूषण पहनने का मुख्य उद्देश्य रहा है।
- उपर्युक्त सारी बातें सिन्धु सभ्यता के काल से ही पायी जाती रही है। सिन्धुवासी भूत-प्रेतों में भी विश्वास करते थे और इनसे अपनी रक्षा के लिए रक्षात्मक ताबीज पहनते थे जो कुछ समय के अनेक आभूषणों के रूप में सुन्दरता के प्रतीक बन गये।
- हड़प्पाकाल के ताबीज से तो प्रत्यक्ष रूप से आज भी हम परिचित हैं ही।
- सिन्धुकाल से आ रही इस तंत्र मंत्र के सम्बंध में विस्तृत जानकारी हमें अथर्ववेद में भी मिलती है और बताया गया है कि कैसे तंत्रमंत्र के द्वारा अनेक रोगों एवं भूत-प्रेतों को समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए ताबीज धारण करने का भी सुझाव दिया गया है।
- सिन्धुकाल में आरम्भ हुई काली, चंडी आदि विविध मातृ-देवियों की चर्चा पुरानी एवं तांत्रिक साहित्यों में मिलती है। यह बहुत ही दिलचस्प बात है कि सिन्धुकाल या आधुनिककाल दोनों में ताबीज या आभूषण ज्यादातर औरतों और बच्चों को ही पहनाया जाता था और आज भी पहनाया जाता है।
- इसका निश्चित कारण बताना तो मुश्किल है लेकिन लगता है कि औसत औरतों के शारीरिक रूप से कमजोर एवं समाज में उन्हें घुलने-मिलने की पर्याप्त स्वतंत्रता नहीं रहने के कारण वे स्वतः काफी अंधविश्वासी हो जाती हैं और अदृश्य शक्तियों के षड्यंत्रों से डरी रहती हैं। इसी तरह की बात बच्चों के साथ भी पायी जाती है। बहुत कोमल एवं सुकुमार होने के कारण बच्चे आसानी से बीमारग्रस्त हो जाते हैं।
- इसका आरोप सिन्धुकाल की तरह आज भी केवल बुरी आत्माओं अथवा भूत-प्रेतों पर ही लगाया जाता है। इन्हीं खतरों से बचाने के लिए सिन्धुवासी स्त्रियों एवं बच्चों को ताबीज पहनाते थे तथा विभिन्न आभूषणों से पहले भी सजाते थे और आज भी सजाते हैं।
- चूहा, हाथी, बैल, भैंसा, मोर, गरूड़, सिंह आदि अनेक प्रकार पशु-पक्षी सिन्धुकाल में पूजे जाते थे और आज भी अनेक देवी-देवताओं के वाहन माने जाने के कारण ये पूजे जाते हैं।
- विवाह एवं धार्मिक उत्सवों के समय ढोल बजाना सिन्धु सभ्यता की ही देन है।
- सोने, चाँदी, हाथीदांत, मोती, नीलम आदि के आभूषण सिन्धुकाल की तरह आज के समाज में प्रचलित हैं।
- अनेक प्रकार के अभूषण शरीर के विभिन्न भागों की भूत-प्रेत से रक्षा करने के लिए धारण किये जाते थे। सबसे ज्यादा आभूषण सिन्धुवासी गले में धारण करते थे : जैसे- कंठा, हार, माला इत्यादि।
- आज भी गले का आभूषण सबसे ज्यादा पाया जाता है। लगता है कंठ की रक्षा करने के लिए कंठा तथा सम्पूर्ण गले की रक्षा के लिए हार, माला आदि पहने जाते हैं और यह सिंधु सभ्यता की ही देन है।
- आज का शतरंज एवं पासों का खेल सिन्धु सभ्यता की ही देन है। हिन्दू धर्म में प्रचलित पुनर्जन्म का सिद्धान्त भी सिन्धुकाल से ही पाया जाता है।
- इस तरह हम पाते हैं कि जीवन को अधिक आकर्षक बनाने के लिए सिन्धुवासियों ने अथक प्रयास किये और अपने उद्देश्य में सफल भी रहे हैं।
- इनके द्वारा अपनाये गये सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक तौर तरीके आज तक हम भारतीयों को प्रभावित किये हुए हैं।
- नगरों की योजना और मकान की बनावट तो आज भी हमारे लिए अद्वितीय है। यहां के लोगों का शहरीकरण कितना ज्यादा हो चुका था, वह इसी से प्रमाणित होता है कि प्रत्येक वस्तु को ये उपयोगिता के दृष्टि से देखते थे।
- आधुनिक युग के समान अपने आर्थिक विकास के लिए ये लोग देश-विदेश से अपना सम्बन्ध बनाये हुए थे।
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